शनिवार, 7 नवंबर 2009

ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित करने में पौधरोपण महत्वपूर्ण माध्यम- श्री बिसारिया, वनसंरक्षक

ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित करने में पौधरोपण महत्वपूर्ण माध्यम- श्री बिसारिया, वनसंरक्षक

ग्वालियर 06 नवम्बर 09। क्लीन डेव्हलपमेंट मेकेनिज्म के तहत पौधरोपण के माध्यम से किस प्रकार नियंत्रण किया जावे तथा कार्बन क्रेडिट को किस प्रकार भारत वर्ष में व्यापारिक स्वरूप प्रदान किया जा सकेगा इस उद्देश्य से एक कार्यशाला वन अनुसंधान एवं विस्तार केन्द्र तपोवन ग्वालियर में आयोजित की गई। ''रोपण के क्षेत्र में आधुनिक अवधारणायें' विषय पर आयोजित इस कार्यशाला में मुख्य वनसंरक्षक श्री आर वी. सिन्हा, मुख्य वनसंरक्षक अनुसंधान एवं विस्तार श्री ए के. बिसारिया, पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय के सेवानिवृत प्रोफेसर डॉ. राजपूत सहित अन्य विषय विशेषज्ञ श्री दिलीप कुमार, श्री वी पी. उपाध्याय, अन्य विभागीय अधिकारी कृषक बंधु उपस्थित थे।

      श्री बिसारिया ने कहा कि सम्पूर्ण विश्व में औद्यौगिकीकरण की अंधाधुंध दौड़ के कारण पृथ्वी का बढ़ता तापमान, पिघलते ग्लेशियरों के कारण सम्पूर्ण विश्व चिंतित है। बड़े-बड़े कल कारखानों, रेफ्रिजरेटर ईकाइयों के कारण निकलने वाली कार्बनडाई आक्साइड, कार्बन मोनो आक्साइड, मिथेन, नाइट्रस आक्साइड, हाइड्रो/फ्लोरो कार्बन्स, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन्स, सल्फर हैक्सोफ्लोराइड जैसी गैसें पृथ्वी के पर्यावरण के लगातार गर्म करतीं जा रहीं हैं। एक शोध के अनुसार विछले 100 वर्षों में पृथ्वी के तापमान में एक डिग्री सेन्ट्रीग्रेड की बढ़ोत्तरी हो गई है जिसके परिणाम स्वरूप हम महसूस करते हैं हमारी जलवायु और मौसमों की समय सीमा में परिवर्तन हो गया है यह तापमान और अधिक बढ़ता है तो परिणाम और भी घातक हो सकते हैं। इस पर विचार किया जाना आवश्यक है।

      श्री बिसारिया ने बताया कि पृथ्वी के 97 प्रतिशत भाग में पानी है लेकिन मात्र 3 प्रतिशत पानी ही पीने व खेती के योग्य है जो विश्व के विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त होती है। उन्होंने बताया कि 1.98 प्रतिशत ग्लेशियरों से तथा 0.5 प्रतिशत पानी भू-जल से प्राप्त होता है। उन्होंने कहा कि सन् 2050 तक पृथ्वी के तापमान में 3 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो जायेगी जिसके परिणाम स्वरूप सभी छोटी बड़ी नदियों सूख जायेंगीं, गंगोत्री ग्लेशियर का एक तिहाई हिस्सा पिघल जायेगा, सर्दी व बरसात का मौसम अनियंत्रित हो जायेगा। उन्होंने कहा कि इन सभी दुष्परिणामों के विषय में आमजन को  जागरूक करना आवश्यक है। उन्होंने आगे बताया कि ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित करने के लिये आवश्यक है कि कार्बन की बढ़ती मात्रा को नियंत्रित किया जावे। इसी उद्देश्य से मध्य प्रदेश शासन इस विकास प्रक्रिया की अवधारणा पर विचार कर रहा है। इसके लिये पौधरोपण के दौरान एसे पौधों को प्राथमिकता दी जावे जिनसे वायो डीजल का उत्पादन किया जा सके। इसमें रतनजोत, नीम, करंज, लक्ष्मीतरू, महुआ के पौधों को प्राथमिकता दी जाये। वायोडीजल के उपयोग से पर्यावरण में जाने वाली जहरीली गैसों की मात्रा को कम किया जा सकता है। इस प्रकार व्यक्ति या संस्था या सरकार कार्बन क्रेडिट का कार्य कर सकती है। विकसित देशों में कार्बन क्रेडिट व्यवसाय का स्वरूप ले चुका है। विश्व बैककोष, नीदरलैण्ड सी डी एम., फेसिलिटी, इटालियन कार्बन फण्ड, नीदरलैण्ड कार्बन क्रेडिट की अन्तराष्ट्रीय खरीददार संस्थायें हैं। उन्होंने बताया कि विश्व में 32 लाख करोड़ रूपये का कार्बन क्रेडिट का व्यापार प्रतिवर्ष किया जाता है। भारत वर्ष में यह एक नवीन विषय है। लेकिन भारत सरकार के साथ साथ राज्य सरकारों व अनेक संस्थायें इस क्षेत्र में आगे आ रहीं हैं।

      कार्यशाला में डॉ. राजपूत ने बताया कि वनीकरण के माध्यम से किस प्रकार कार्बन के दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है। उन्होंने बताया कि एक वृक्ष अपने 50 वर्षों के जीवनकाल में 20 लाख रूपये की जन उपोगी सामग्री समाज को प्रदान करता है।

 

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