मानव अस्तित्व बनाये रखने के लिये जैव विविधता को बचाना जरूरी
जैव विविधता विभाग के सचिव श्री ढ़ाकवाला ने ली बैठक
ग्वालियर 06 नवम्बर 09। जैव विविधता विभाग के सचिव श्री जब्बार ढ़ाकवाला ने यहां आयोजित बैठक में अधिकारियों को निर्देश दिये हैं कि जैव विविधता खतरे में हैं, इसलिये मानव का अस्तित्व भी संकट में पड़ सकता है। इसे बचाने के लिये लोगों को जागरूक किया जाय तथा अधिक से अधिक आम आदमी को इससे जोड़ा जाये। ये निर्देश श्री ढ़ाकवाला ने आज कलेक्ट्रेट सभाकक्ष में आयोजित बैठक में दिये। बैठक में अपर कलेक्टर श्री वेदप्रकाश, जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी श्री विनोद शर्मा , वन सरंक्षक श्रीमती समिता राजौरा सहित अन्य संबंधित अधिकारी भी उपस्थित थे।
जैव विविधिता विभाग के सचिव श्री ढ़ाकवाला ने कहा कि जैव विविधता के क्षेत्र में ग्वालियर जिले में उल्लेखनीय कार्य हो रहा है। इसके लिये उन्होंने मुख्य कार्यपालन अधिकारी एवं वन सरंक्षक को बधाई दी। उन्होंने कहा कि मानव जीवन का अस्तित्व बनाये रखने के लिये जैव विविधता को बचाना जरूरी है। इसके लिये कार्ययोजना बनाई जाये। इसके लिये आवश्यक धनराशि उपलब्ध कराई जायेगी। साथ ही इस संबंध में प्रशिक्षण आयोजित किये जायें तथा प्रचार-प्रसार पर विशेष ध्यान दिया जाये। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार ने जैव विविधता बोर्ड का गठन किया है। साथ ही बायो टेक्नोलॉजी परिषद बनाई है। लेकिन अब जैव विविधता समितियों को सक्रिय करने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि भारत में सर्वश्रेष्ठ जैव विविधता है। देश में भी म प्र. मे इस पर बहुत अच्छा काम हो रहा है। प्रदेश के होशंगाबाद, बालाघाट एवं रीवा जिलों को प्रथम चरण में शामिल किया गया है। श्री ढ़ाकवाला ने बताया कि जंगलों से लगे गांवों में जैव विविधता पंजी संधारित की जा रही है। जिसमें उस क्षेत्र के जंगल में पाई जाने वाली जैव विविधता को दर्ज किया जायेगा। अब तक 100 पंजी रखी जा चुकी हैं। माह के अंत तक 500 पंजी संधारित हो जायेंगीं। कुल 1100 गांवों में पंजी संधारित की जायेंगी।
जीवाजी विश्वविद्यालय के वनस्पति शास्त्र के प्राध्यापक श्री अशोक जैन ने बताया कि देश में फूलदार पौधों की 18500 प्रजातियां, फफूंद की 21 हजार एवं काई की 18 हजार प्रजातियां मौजूद हैं। साथ ही पौधों की 5 हजार प्रजातियां ऐसी हैं जो भारत के अलावा पूरे विश्व में कहीं नहीं मिलतीं हैं। ग्वालियर चंबल संभाग के संदर्भ में उन्होंने कहा कि क्षेत्र जैव विविधता से परिपूर्ण है। यहां 900 नई प्रजातियां खोजी गई हैं। इनमें से 500 औषधीय उपयोग की हैं। उन्होंने बताया कि संभाग में 36 प्रजातियाँ संकटापन्न स्थिति में हैं। इनमें घोंघची, कलिहारी, खिरनी, शमी एवं कालमेघ आदि शामिल हैं। उन्होंने बताया कि स्वर्ण पलाश का पौधा जो केवल झाबुआ जिले में पाया जाता है, इसे जीवाजी विश्वविद्यालय में लगाया गया है। इसी प्रकार जीव जंतुओं में घड़ियाल, डॉलफिन, सोन चिड़िया क्षेत्र में पाये जाने वाले विशेष प्राणी हैं। डॉलफिन को राष्ट्रीय जलचर घोषित किया गया है। क्षेत्र के झील एवं तालाबों में 500-600 प्रकार के प्रवासी पक्षी आते हैं।
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