खेल को खेल ही रहने दो....
तनवीर जांफरी
(सदस्य, हरियाणा साहित्य अकादमी, शासी परिषद)
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क्रिकेट हालांकि भारतीय जनमानस का लोकप्रिय खेल ारूर रहा है। परंतु इसमें भी कोई दो राय नहीं कि देश में दूरदर्शन के पांव पसारने के बाद तथा उसके पश्चात कुछ वर्षों से प्राईवेट टी वी चैनल्स की भरमार के बाद तो गोया ऐसा लगता है कि देश का अब कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं रह गया जो क्रिकेट के खेल के विषय में कुछ न कुछ दिलचस्पी न रखता हो। क्रिकेट को लेकर एक नकारात्मक बात ारूर सुनी जाती थी कि पहले 6 दिन तक चलने वाला टेस्ट मैच दर्शकों का अत्याधिक समय व पैसा ंखराब करता था। और यही दर्शक स्वयं को उस समय मायूस सा भी महसूस करते थे जबकि 6 दिन खेले जाने के बाद भी वह मैच हार-जीत के ंफैसले के बगैर ही ड्रा हो जाया करता था। संक्षेप में हम यूं समझ सकते हैं कि पहले इस मनोरंजनपूर्ण खेल में भी नीरसता का भी ाबरदस्त समावेश था। कुछ समय बाद एकदिवसीय क्रिकेट मैच शुरु हुए। उसके पश्चात ंफिंफ्टी-ंफिंफ्टी और टवेंटी-टवेंटी जैसे आकर्षक, आक्रामक, मनोरंजक एवं परिणामदायक क्रिकेट का सिलसिला शुरु हुआ। निश्चित रूप से कम समय में भरपूर मनोरंजन व हारजीत का परिणाम देने वाले इस प्रकार के आधुनिक क्रिकेट ने आम लोगों का इस ंकद्र मन मोह लिया कि क्रिकेट की हर ख़ासो-आम से गहरी 'रिश्तेदारी' स्थापित हो गई। क्रिकेटके इस नए स्वरूप ने न केवल क्रिकेट को ग्लैमरस बना दिया बल्कि इसने क्रिकेट खिलाड़ियों को भी दुनिया के समक्ष एक स्टार के रूप में स्थापित कर दिया। और आगे चलकर इसी ग्लैमर से जुड़ गया विज्ञापन कारोबार,पैसा,सट्टा,मैच ंफिक्सिंग,कारपोरेट जगत वग़ैरह-वग़ैरह....।
अभी भारत में आम लोगों पर क्रिकेट का जुनून पूरी तरह चढ़ा ही था कि भारतीय क्रिेकेट कंट्रोल बोर्ड के साथ-साथ एक और क्रिकेट संगठन सामने आया आई पी एल अर्थात इंडियन प्रीमियर लीग। अपने नए तेवर और नए अंदाा के साथ-साथ आई पी एल ने क्रिकेट प्रेमियों के समक्ष खेल के साथ-साथ कुछ और नई चीों पेश कीं। यानि न तो 6 दिवसीय क्रिकेट, न एक दिवसीय, न तो ंफिंफ्टी-ंफिंफ्टी और न ही टवंटी-टवेंटी। टीम का स्वरूप भी पारंपरिक ंकतई नहीं। अर्थात् एक टीम में कई देशों के प्रमुख खिलाड़ियों को आप खेलते हुए देख सकते हैं। इसमें मैच की समय सीमा मात्र तीन घंटे की निर्धारित की गई है। आई पी एल ने अपने साथ सीधे तौर पर देश के बड़े से बड़े कारपोरेट हाऊस,ंफिल्म स्टार,उद्योगतियों तथा राजघराने के लोगों को जोड़ने का भी सफल प्रयास किया है। ााहिर है ऐसी नामी-गिरामी हस्तियों के क्रिकेट के साथ सीधे तौर पर जुड़ने से तथा मैच के दौरान क्रिकेट टीम के मालिक या शेयर होल्डर की हैसियत से उनकी स्टेडियम में उपस्थिति भी दर्शकों के लिए आकर्षण बनी रहती है। क्रिकेट व दर्शकों के मध्य मनोरंजन को और अधिक ग्लैमरस करने हेतु चियर्स गर्ल्स का प्रदर्शन भी भारत में आई पी एल में ही पहली बार आामाया गया। कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि आई पी एल ने क्रिकेट,कारपोरेटस, उद्योगपति, ंफिल्म स्टार तथा मनोरंजन के बीच जो नया रिश्ता ंकायम किया है निश्चित रूप से भारतीय जनता ने विशेषकर क्रिकेट प्रेमियों ने इसकी भरपूर सराहना की है।
जो लोग आई पी एल तथा इसके वजूद के विषय में थोड़ा बहुत दिलचस्पी रखते हैं वे आई पी एल के सूत्रधार तथा आई पी एल कमिश्र ललित मोदी को भी ारूर जानते होंगे। देश के एक प्राचीन उद्योगपति घराने अर्थात् गूजरमल मोदी यानि मोदी नगर ंकस्बे के संस्थापक के पौत्र ललित मोदी निश्चित रूप से आई पी एल आयोजन के मास्टर मांईंड रहे हैं। परंतु पिछले दिनों जब इसी आई पी एल ने एक केंद्रीय विदेश राय मंत्री शशी थरूर की कुर्सी की 'बलि' ले ली उस समय एक बार फिर भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को गहरा झटका लगा तथा जो मीडिया क्रिकेट में कम दिलचस्पी लेता था उसे भी आई पी एल, ललित मोदी,शशी थरूर तथा इनसे जुड़े विवादित मुद्दों व इनकी गहराई में झांकने का अवसर मिल गया। परिणामस्वरूप देश की संसद के दोनों सदनों से लेकर आम जनता के मुंह तक बस एक ही विवाद सुनने को मिला और वह था आई पी एल से जुड़ा मोदी -थरूर विवाद। इस विवाद की असली वजह क्या थी यह तो ललित मोदी व शशी थरूर तथा इससे जुड़ी एक और विवादित शख्सियत सुनंदा पुष्कर को पता होगी। परंतु इस विषय में जो कुछ सामने नार आ रहा है तथा देखा सुना जा रहा है वही अपने आप में कम चिंताजनक व शर्मनाक नहीं है।
इन विवादों में अब तक जो कुछ सामने आया है उनमें भारतीय विदेश राय मंत्री शशी थरूर का एक महिला के साथ अंतरंग संबंध होना, उसके नाम से एक बड़ी रंकम आई पी एल की कोच्चि क्रिकेट टीम में लगी होना तथा भरपूर दौलत का वारा-न्यारा करने वाले इस टूर्नामेंट का आयकर विभाग की आंखों में धूल झोंकना जैसी बातें मुख्य रूप से शामिल हैं। इंटरनेट के माध्यम से चलने वाली टि्वटर नामक एक सोशल नेटवर्किंग साईट पर यदि मोदी बनाम शशी थरूर 'जंग' न छिड़ी होती तो शायद देश के लोगों को अभी तक यह भी न पता चल पाता कि ललित मोदी कौन हैं, इनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या है तथा यह कैसे चरित्र के स्वामी हैं। इन दोनों के मतभेदों से ही यह भी ााहिर हुआ कि शशी थरूर की ािंदगी में उनकी तीसरी हमसंफर बनने की बाट जोह रही सुनंदा पुष्कर नाम की भी कोई हसीना इस देश में रहती है। इस विवाद ने ही हमें यह जानने का मौंका दिया कि शशी थरूर एक शिक्षित,बुध्दिजीवी, बेबाक तरींके से अपने विशेष अंदाा में अपनी बात रखने वाले नेता मात्र ही नहीं बल्कि एक आशिक़ मिज़ाज,हुस्न परस्त तथा अपनी महिला मित्र के आर्थिक हितों का भी बंखूबी ध्यान रखने वाले एक दिलफेंक नेता भी हैं। शायद उनकी यह आशिक़ी व बेबाकी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व यू पी ए प्रमुख सोनिया गांधी को नहीं भाई इसीलिए शशी थरूर को विदेश राय मंत्री के पद से इन्हीं विवादों के चलते इस्तींफा तक देना पड़ा।
इसी विवाद ने हमें ललित मोदी के बचपन से लेकर अब तक का पूरा परिचय भी करा दिया। देश के विकास में मोदी घराने का निश्चित रूप से बहुत बड़ा योगदान है। अत:ललित मोदी की किसी नकारात्मक कारगाुारी का ािम्मा मोदी परिवार पर मढ़ना तो ंकतई मुनासिब नहीं है। परंतु ललित मोदी की जवानी की कुछ घटनाओं तथा उनकी शादी के मुद्दे को लेकर जो ख़बरें मीडिया में प्रकाशित हो रही हैं वे यंकीनन शर्मसार करने वाली हैं। परंतु इन सब के बावजूद ललित मोदी को आई पी एल का सुत्रधार एवं एक करिश्माई आयोजक मानने से संभवत: कोई इंकार नहीं कर सकता। फिर भी जब मोदी-थरूर विवाद इतना बढ़ गया है कि थरूर की विदेश मंत्री पद से छुट्टी तक हो चुकी हैे। अत: ऐसे में ललित मोदी की अपनी 'कुसी' अर्थात् आई पी एल कमिश्र के उनके पद पर भी आंच पहुंचना लाामी है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि सुनंदा की आशिक़ी की आग में केवल शशी थरूर ही नहीं झुलसे हैं बल्कि इसकी सेक से ललित मोदी भी नहीं बच पाएंगे।
अब रहा सवाल आयकर विभाग की आंखों में धूल झोंकने का तो इस बड़े ंफर्ाीवाड़े का खुलासा तो आयकर विभाग द्वारा अपनी जांच पूरी करने के बाद ही किया जाएगा। परंतु इस संबंध में एक बात तो कही ही जा सकती है कि जिस खेल को बढ़ावा देने तथा जिस खेल में आयकर,मनोरंजन कर तथा बिक्रीकर जैसे करों की छूट की बात की जा रही है, आई पी एल दरअसल अब उस प्रकार का खेल ही नहीं रहा। जो क्रिकेट आई पी एल के रूप में हाारों करोड़ रुपये का मात्र तीन घंटों में वारा-न्यारा कर देता हो उसे आयकर द्वारा छूट दिए जाने का सवाल ही नहीं पैदा होना चाहिए। भारत सरकार तथा राय की सरकारें जहां अपनी आय के स्त्रोत को बढ़ाने के लिए तरह-तरह के उपायों की तलाश करती रहती हैं वहीं आई पी एल द्वारा आयकर विभाग को आयकर के नाम पर ठेंगा दिखाना या मात्र आयकर बचाने के लिए ंकानूनी दांवपेंच का सहारा लेना बिल्कुल अनुचित है।
बहरहाल क्रिकेट की आड़ में धन,हुस्न, व्यापार,वर्चस्व तथा सत्ता का जो खेल खेला जा रहा है उसने क्रिकेट को तो शर्मसार किया ही है साथ ही साथ इससे कई संफेदपोश लगने वाले चेहरे भी बेनंकाब हुए हैं। शशी थरूर के बाद अब केंद्रीय मंत्री शरद पवार एवं प्रफुल्ल पटेल तथा इनके परिवार के सदस्यों के नाम भी आई पी एल से लाभ अर्जित करने वाले नेताओं में लिए जाने लगे हैं। इन चेहरों के बेनंकाब होने के बाद आई पी एल नेटवर्क अब पूरी तरह सांफ सुथरा हो गया है यह भी नहीं कहा जा सकता। परंतु यदि क्रिकेट को मात्र क्रिकेट के रूप में तथा मनोरंजन के माध्यम के रूप में देखना है तो इसे राजनीति व राजनीतिज्ञों से मुक्त कर केवल क्रिकेट के जानकारों के हाथों में सौंपना ही मुनासिब होगा। अन्यथा आश्चर्य में डालने वाले इससे भी गंभीर रहस्योदघाट्न की संभावनाएं भविष्य में भी बनी रह सकती हैं। तनवीर जांफरी
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