आलेख- साधू-संतों के 'कारनामों' से शर्मसार हुआ महाकुंभ 2010
निर्मल रानी
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हिंदू धर्म की मान्याताओं के अनुसार सहस्त्राब्दियों पूर्व देवताओं तथा असुरों के मध्य हुए सागर मंथन के परिणामस्वरूप अमृत की कुछ बूंदे जिन चार प्रमुख स्थलों पा ज गिरी थीं उनमें प्रयागराज(इलाहाबाद )हरिद्वार, उौन तथा नासिक स्थान शामिल थे। इसी अवसर की स्मृति में प्रत्येक 12 वर्ष पर उक्त चारों तीर्थ स्थलों पर बारी-बारी से महाकुंभ का आयोजन किया जाता है। जबकि प्रत्येक तीन वर्ष पर क्रमबध्द रूप में इन्हीं स्थानों पर कुंभ मेला भी आयोजित होता है। वैसे तो कुंभ का आयोजन राष्ट्रीय स्तर पर श्रध्दालुओं को आकर्षित करता है। परंतु महाकुंभ एक ऐसा आयोजन है जो केवल भारत वर्ष के हिंदु समाज को ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के सभी धर्मों और समुदायों के लोगों को तथा अंतर्राष्ट्रीय मीडिया को भी अपनी ओर खींचता है। नि:संदेह महाकुंभ में शिरकत करने वाली साधु-संतों की विशाल भीड़ तथा उनके दर्शन को आए श्रध्दालुओं का असीमित हुजूम कुंभ के अतिरिक्त पूरी दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलता। कहा जा सकता है कि धर्म,श्रध्दा,आस्था तथा विश्वास का इतना बड़ा प्रदर्शन तथा आयोजन विश्व में अन्यत्र कहीं भी नहीं होता। इस वर्ष 2010 में हरिद्वार में आयोजित हुआ महाकुंभ भी श्रध्दा और विश्वास का एक ऐसा ही समागम था जो पिछले दिनों लगभग 4 महीने निरंतर चलने के बाद सम्पन्न हुआ।
नि:संदेह धर्म नगरी हरिद्वार इस आयोजन के दौरान पूरी तरह धार्मिक आस्था एवं विश्वास में डूबी नार आई। हालांकि श्रध्दालुओं की संख्या का कोई सही अंदााा नहीं हैे फिर भी एक अनुमान के अनुसार मेले के दौरान लगभग 5 करोड़ लोगों ने इस पावन अवसर पर पवित्र गंगा नदी में श्रध्दा की डुबकियां लगाई तथा देश-विदेश से आए अनेक वरिष्ठ एव विशिष्ठ,त्यागी एवं महात्यागी तथा सिध्द एवं महासिध्द साधु-संतों के दर्शन किए। परंतु बड़े दुख की बात यह है कि इस वर्ष के महाकुंभ को अपने आयोजन के दौरान देश के कई कोनाें से 'साधु संतों' के संबंध में जो नकारात्मक समाचार प्राप्त हुए वह यंकीनन न केवल धर्म तथा मानवता को शर्मसार करने वाले थे बल्कि इन समाचारों ने उस पावन महाकुंभ को भी कलंकित व शर्मसार कर दिया जिसका भक्तगण 12 वर्षों तक बेसब्री से इंताार करते हें।
अभी मेला शुरु भी नहीं हुआ था कि दिल्ली में शिवमूर्ति द्विवेदी उंर्फ संत स्वामी भीमानंद उंर्फ इच्छाधारी संत के नाम से एक ऐसा तथाकथित ढोंगी बाबा बेनंकाब हुआ जिसने लोगों के कान ही खड़े कर दिए। बताया जा रहा है कि अभी तक पुलिस की गिरंफ्त में रहने वाला उक्त इच्छाधारी बाबा देश ही नहीं बल्कि दुनिया का सबसे बडा सेक्स रैके ट संचालित करता था। अपनी इसी गंदी व काली कमाई के पैसों से वह कहीं मंदिर बनवाता तो कहीं अस्पताल बनाने की कोशिश करता तो कहीं ब्याज पर इन्हीं पैसों को चलाया करता था। बताया जा रहा है कि इसके नेटवर्क में सैकड़ों लड़कियां शामिल थीं जो इसके सेक्स रैकेट में इसकी सहयोगी थीं। कुछ लड़कियों का अपहरण किए जाने का भी इसपर आरोप है। अभी इच्छाधारी संत से जुड़ी ख़बरें सुंखर्ियों में ही चल रही थीं कि इसी बीच दक्षिण भारत के प्रसिध्द शहर बैंगलोर में अपना एक आश्रम चलाने वाले युवा 'संत' नित्यानंद के चरित्र पर से भी पर्दा हट गया। स्वयं को भगवान का अवतार बताने वाला तथा सिध्द पुरुष बताने वाला यह तथाकथित संत भी सेक्स स्कैंडल में जा फंसा। दक्षिण भारत के कुछ टी वी चैनल्स द्वारा नित्यानंद की वह ंफिल्में प्रसारित कर दी गर्इं जो उसकी रति लीला के दौरान गुप्त रूप से बनाई गई थी। इस दुराचारी तथा कथित संत को गुजरात के 'दूरदर्शी' मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो भावी शंकराचार्य तथा शंकराचार्य की परंपरा का संत होने तक का प्रमाण पत्र जारी कर दिया था। परंतु दक्षिण भारत की एक अभिनेत्री तथा नित्यानंद की कुछ अन्य महिला मित्रों के साथ मनाई जा रही रासलीला की वीडियो ने उस ढोंगी संत की वास्तविकता उजागर कर दी। लगभग एक माह से भी अधिक समय तक पुलिस से लुक्का छिप्पी करने के बाद उसे आख़िरकार हिमाचल प्रदेश के सोलन ािले से एक गुप्त ठिकाने पर छिपे हुए गिरंफ्तार कर लिया गया। उधर जो श्रध्दालु इस पाखंडी व दुराचारी संत को आस्था स्वरूप अपना गुरु अथवा आदर्श पुरुष मानते थे उन्हीं लोगों के द्वारा उसके बैंगलोर स्थिम आश्रम को तहस-नहस कर दिया गया। गोया महाकुंभ पर लगने वाले काले धब्बे का एक और भागीदार बना तथाकथित व्याभिचारी संत नित्यानंद।
इसी महाकुंभ के दौरान एक और दिल दहला देने वाली घटना प्रसिध्द 'संत' कृपालू जी महाराज के प्रतापगढ़ स्थित आश्रम में घटित हुई। कृपालू जी महाराज की धर्मपत्नी की बरसी के अवसर पर एक विशाल भंडारे का आयोजन किया गया। बताया जाता है कि इस भंडारे हेतु यह मनादी की गई थी कि इस अवसर पर भोजन के अतिरिक्त बर्तन तथा पैसा भी वितरित किया जाएगा। ंगरीब तबक़े के लोग लालचवश बड़ी संख्या में उनके आश्रम में जा पहुंचे। अपेक्षा से कहीं अधिक आई भीड़ को नियंत्रित करने हेतु आश्रम कर्मियों के पास कोई उपयुक्त व्यवस्था नहीं थी। परिणामस्वरूप वहां भगदड़ मच गई। इसी भगदड़ में 63 लोग अपनी जानों से हाथ धो बैठे जबकि लगभग 250 लोग घायल हो गए। इस घटना के बाद कृपालू जी पर भी उंगलियां उठनी शुरु हुई। दुर्भाग्यवश चूंकि यह हादसा भी महाकुंभ मेले के दौरान ही हुआ इसलिए उसकी काली छाया ने भी निश्चित रूप से महाकुंभ को दांगदार किया। प्रत्येक कुंभ एवं महाकुंभ जैसे अवसरों पर अपने प्रवचनों व सद्वचनों से भक्तजनों को सराबोर करने वाले संत आसाराम बापू भी कांफी लंबे समय से संदेह के घेरे में चल रहे हैं। ामीनों पर अवैध ंकबा,आश्रम में काला जादू करना तथा उन्हीं के आश्रम में रहने वाले कई बच्चों की संदिग्ध अवस्था में होने वाली मृत्यु तथा अब उन्हीं के आश्रम से मानव शरीर के अस्थिपिंजर मिलने के समाचार ने बापू आसाराम जैसी सम्मानित समझी जाने वाली 'संत' रूपी एक महान हस्ती को भी संदिग्ध कर दिया है। इस महाकुंभ के दौरान बापू आसाराम को भी भक्तजनों ने एक शुध्द एवं सिध्द संत के बजाए संदेहपूर्ण संत के रूप में देखा व सुना। निश्चित रूप से यह भी महाकुंभ के लिए एक गहरा आघात तथा श्रध्दालुओं के लिए एक बड़ा झटका था। इसके अतिरिक्त भी धर्मनगरी हरिद्वार से इस बार कई ऐसे समाचार मिले जो धार्मिक आस्था के साथ खिलवाड़ तथा भक्तजनों व श्रध्दालुओं के लिए धोखा साबित हो रहे थे। एक समाचार के अनुसार हरिद्वार में एक तथाकथित संत मेले से पूर्व विदेश यात्रा पर गया था। वहां से जब वह वापस लौटा तो अपने साथ एड्स जैसी बीमारी भी साथ लाया। यह बीमारी स्वयं उस तथाकथित संत के चरित्र का चित्रण करती है। इसी प्रकार एक समाचार के अनुसार एक एक वृध्द व बीमार व्यक्ति को मरणोंपरांत तपती धूप में आश्रम से बाहर उठाकर फेंक दिया गया। बताया जाता है कि मृतक व्यक्ति गत् दो दशकों से इसी आश्रम का भक्त तथ सेवादार था। आश्रम के विभिन्न आयोजनों में आश्रम संचालकों की मांग पर समय-समय पर वह हाारों रुपये भी दानस्वरूप देता रहता था। यही भक्त मेले के दौरान इसी आश्रम में चल बसा। मृतक की पत्नी ने आश्रम संचालकों से विनती की कि उसके परिजनों के यहां आने तक शव को आश्रम में ही रहने दें। परंतु उसके निवेदन को ठुकराते हुए वृध्द की लाश आश्रम संचालकों द्वारा सड़क पर फेंक दी गई। इस शव का बाद में आश्रम के समीप रहने वाले स्थानीय लोगों व राहगीरों ने अंतिम संस्कार किया तथा संस्कार से पूर्व उसके लिए तंबू तथा बर्फ़ का समुचित प्रबंध किया। आश्रम संचालकों द्वारा किया गया इस प्रकार का अधर्म भी महाकुंभ जैसे आस्थापूर्ण महापर्व पर कलंक ही माना जाएगा।
और रही सही कसर 14अपैल को आयोजित हुए चौथे व अंतिम शाही स्नान के दौरान उस समय पूरी हो गई जबकि शाही स्नान के लिए जा रहे साधु-संतों के क़ाफ़िले में शामिल गाड़ी के नीचे आ जाने से तथा इस घटना के बाद मची भगदड़ के परिणामस्वरूप सात श्रध्दालु मारे गए। यह कैसी विडंबना है कि जिन साधु-संतों के दर्शन मात्र करने हेतु देश के कोने-कोने से बच्चे-बड़े, बूढ़े तथा औरतें ऐसे आयोजनों में पूरी भक्ति व श्रध्दा के साथ शिरकत करते हैं तथा तपती धूप व रेत में दिनभर खड़े होकर शाही स्नान में शिरकत करने जा रहे इन 'वैभवशाली' बाबाओं की एक झलक पाने को बेताब रहते हैं, उन्हीं संतों को गाड़ी श्रध्दालुओं की छाती पर चढ़कर आगे बढ़ेगी यह तो किसी भक्त ने सोचा भी नहीं होगा। अंतत: इस घटना के बाद श्रध्दालुओं का रोष फूट पड़ा तथा वहां मेले के अंतिम स्नान के अवसर पर अंफरा-तंफरी फैल गई। परिणामस्वरूप भगदड़ में 7 श्रध्दालू मारे गए।
हां सुरक्षा तथा किसी प्रकार की आतंकी घटना को रोक पाने में अवश्य मेला प्रशासन सफल रहा। सुरक्षा एवं यातायात के जो उच्चस्तरीय प्रबंध किए गए थे, उनके परिणामस्वरूप मेला कुल मिलाकर प्रशासनिक दृष्टिकोण से शांतिपूर्ण रहा। इसे सुव्यवस्थित रखने का श्रेय निश्चित रूप से उत्तराखंड सरकार लेना चाहेगी। सुरक्षा व्यवस्था के तमाम दावों के बावजूद सैकड़ों श्रध्दालू ऐसे भी मिले जिन्होंने मेले के दौरान कई बार हरिद्वार की यात्रा विभिन्न वाहनों से की परंतु उनकी कहीं भी किसी भी सुरक्षा एजेंसी द्वारा कोई तलाशी नहीं ली गई। बहरहाल प्रशासन की चौकसी व श्रध्दालुओं व भक्तजनों के सहयोग व सहनशक्ति ने तो अवश्य इस महाकुंभ 2010 को सफलता की मंािल तक पहुंचा दिया। परंतु इस मेले से पूर्व तथा मेले के दौरान तथाकथित साधु-संतों के जो कारनामे उजागर हुए, उससे निश्चित रूप से महाकुंभ 2010 बेहद शर्मसार हुआ तथा भक्तजनों की आस्था व श्रध्दा बुरी तरह आहत हुई। निर्मल रानी
1 टिप्पणी:
साधू हमेशा समाज से और जिम्मेवारी से भागे लोग होते है.बिड्म्बना यह की लोग इसे आज तक नही समझ सके.
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