घरेलू हिंसा की रोकथाम हेतु ऊषा किरण योजना
ग्वालियर, 30 जून 10/ घरेलू हिसा यानि ऐसा कोई कार्य या हरकत जो किसी पीड़ित महिला एवं बच्चों (18 वर्ष से कम उम्र के बालक एवं बालिका) के स्वाथ्य,सुरक्षा,जीवन को खतरा/संकट की स्थिति,आर्थिक नुकसान, क्षति जो असहनीय हो तथा जिससे महिला व बच्चे दुखी व अपमानित होते हों । इसके तहत् शारीरिक हिंसा, मौखिक व भावनात्मक हिंसा, लैंगिक व आर्थिक हिंसा या धमकी देना आदि घरेलू हिंसा में शामिल है।
एक ही छत/घर के नीचे संयुक्त परिवार/एकल परिवार के पारिवारिक सदस्य, जो समरक्तता/ संगोत्रता/ दत्तक/ विवाह द्वारा बनाये गए रिश्ते के रूप में रह रहे या रह चुके, महिला एवं बच्चे सभी घरेलू की परिधि में आते हैं। पीड़ित महिला विवाहित, अविवाहित के अलावा अन्य रिश्तों में रह रही विवाहित, विधवा, माँ, बहन, बेटी, बहूँ, शादी के बगैर साथ रह रही महिला या दूसरी पत्नी के रूप में रह रही या रह चुकी महिला। धोखे से किया गया विवाह/ अवैध विवाह वाली महिला। शिकायत किसी भी वयस्क पुरूष सदस्य (प्रत्यर्थी दोषी/हिंसाकर्ता) के खिलाफ,जिसके साथ महिला एवं बच्चे का घरेलू रिश्ता है या था, के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई जा सकती है । घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं एवं बच्चों के लिये ऊषा किरण योजना शासन ने प्रारंभ की है।
घरेलू हिंसा से पीड़ित महिला संरक्षण अधिनियम 2005 नियम 2006 एक दीवानी कानून है। इस कानून में दोषी को सजा दिलाने के बजाय पीड़ित के संरक्षण एवं बचाव की बात कही गई है। न्यायालय का आदेश न मानने पर दोषी व्यक्ति को एक साल की अवधि की सजा या रूपये 20 हजार तक जुर्माना या दोनों हो सकते है। घटना की प्रकृति गंभीर होने पर भारतीय दण्ड संहिता या अन्य किसी विधि के अधीन पुलिस कार्यवाही कर सकती है। इस कानून के तहत् घरेलू हिंसा की रोकथाम के लिए न्यायाधीश, न्यायालय को आवेदन प्राप्त होने के 03 दिन के भीतर पहली सुनवाई कर बचावकारी अनन्तिम/एक पक्षीय अनन्तिम आदेश दे सकते हैं। यह अधिनियम घरेलू रिश्तों में रहते हुए भी आपत्तिजनक व्यवहारों को सुधारने का पूरा मौका देता है।
दरअसल महिलायें सर छुपाने के लिए एक घर ही चाह में बहुत से अनचाहे समझौते करती रहती है। यह कानून महिलाओं/बच्चों को अपने घर में स्वतंत्रत व सुरक्षित रहने का अधिकार देता है, चाहे उस घर पर उनका मालिकाना हक हो या न हो। न्यायालय प्रत्येक आवेदन की प्रथम सुनवाई की तारीख से 60 दिनों के अन्दर निपटारा करने का प्रयास करेगा। न्यायालय महिला द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों एवं बयानों को भी विश्वसीनय मानकर आदेश दे सकता है कि हिंसा रोकी जावे और महिला को संरक्षण प्रदान किया जावे। न्यायालय पीड़ित, संबंधित पुलिस थाने व यदि केस सेवा प्रदाता से जुड़ा है तो उसे मामले से संबंधित सभी आदेशों की प्रतियां नि:शुल्क उपलब्ध करावायेगा। यदि न्यायाधीश ऐसा समझते हैं कि परिस्थितियों के कारण मामले की सुनवाई बंद कमरे में किया जाना बेहतर और आवश्यक है तो या पीड़ित पक्ष ऐसी मांग करे तो मामले की कार्यवाही बंद कमरे में की जा सकेगी। यदि न्यायाधीश को पीड़ित व्यक्ति या दोषी से आवेदन प्राप्त होने पर यह समाधान हो जाता है की परिस्थितियों में सुधार हुआ है तो पूर्व आदेश में परिवर्तन, संशोधन या निरस्त कर सकते है। पीड़ित पूर्वमें चल रहे अदालत के केस के अतिरिक्त भी इस कानून की धारा 18 से 22 तक संरक्षण एवं सहायता प्राप्त कर सकती हैं। घरेलू हिंसा के केस के साथ अन्य कानून अंतर्गत कार्यवाही भी एक साथ चल सकती है। महिला घटना स्थल या वर्तमान में जहां निवासरत है, वहां केस दर्ज करा सकती है। पीड़िता जहां उचित समझे उसे क्षेत्र के प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट को न्याय के लिए आवेदन दे सकती है। उसे जिला विधिक सहायता अधिकारी, न्यायालयीन प्रक्रिया हेतु नि:शुल्क वकील एवं अन्य सहायता उपलब्ध करवायेगा।
घरेलू हिंसा की शिकायत निम्न स्थानों, व्यक्तियों के पास दर्ज करायी जा सकती है:- सीधे क्षेत्रीय मजिस्ट्रेट, स्थानीय पुलिस थाना, संरक्षण अधिकारी (परियोजना अधिकारी,महिला एवं बाल विकास विभाग) सेवा प्रदाता पुलिस परिवार परामर्श केन्द्र अथवा पंजीकृत आश्रय गृह में पीड़ित महिला और उसके बच्चे। पड़ोसी परिवार का सदस्य सेवा प्रदाता संस्थाएं संरक्षण अधिकारी पुलिस या अन्य व्यक्ति जिसे घरेलू हिंसा होने की या घटना की जानकारी है।
इस कानून के तहत मिलने वाली राहत
परामर्श- न्यायाधीश यह समझाता है कि नियम के तहत् किसी पीड़ित व हिंसाकर्ता को अकेले या संयुक्त रूप से सेवा प्रदाता (पुलिस परिवार परामर्श केन्द्र) के किसी सदस्य जो परामर्श देने की पात्रता और अनुभव रखते हो से परामर्श लेने का निर्देश दे सकते है। परामर्श में हुई समझौते की कार्यवाही अनुसार मजिस्ट्रेट संरक्षण एवं सहायता के आदेश जारी कर सकेंगे।
संरक्षण आदेश धारा 18- यदि न्यायाधीश को लगता है कि घरेलू हिंसा हुई है और पीड़ित व्यक्ति को हिंसाकर्ता से आगे भी खतरा है, ऐसी स्थिति में संरक्षण हेतु निम्नलिखित व्यवहारों से रोकने के आदेश हिंसाकर्ता को देगा। घरेलू हिंसा करने, हिंसा में सहयोग करने या प्रेरित करने से रोकना। किसी भी रूप में व्यक्तिगत, मौखिक, लिखित टेलीफोन या अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से सम्पर्क करने से मना करना। पीड़ित पर आश्रित व्यक्ति बच्चों या सहायता करने वाले व्यक्तियों पर हिंसा से रोकतना। संयुक्त या जिस सम्पत्ति पर पीड़ित का हक बनता है ऐसे सम्पत्तियों का लेन-देन या संचालन पर रोक। स्त्रीधन, आभूषण,कपड़ों इत्यादित का कब्जा देना। आपसे विवाह के संबंध में बात करने या उनकी प्रसंद के किसी व्यक्ति से विवाह के लिए मजबूर न करना। दहेज की मांग के लिए परेशान करने से रोकना। न्यायालय के आदेश के बिना बैंक से संधारित लॉकर्स एवं सुयक्त बैंक खातों से राशि, सामग्री नहीं निकाल सकेगा। पीड़िता और उसके बच्चों की सुरक्षा के लिए कोई अन्य उपाय।
निवास का आदेश धारा 19- पीड़िता का साझी गृहस्थी में रहना महिला का अधिकार है, चाहे उसमें उसका मालिकाना हक न हो। अगर जरूरत महसूस हो तो अदालत आरोपी को यह आदेश दे सकती है कि पीड़िता जैसी सुविधा में साझे रूप में निवास कर रही थी वैसा ही किराए का धर उसे रहने के लिए उपलब्ध करावें। पीड़िता एवं उसके बच्चे घर में या धर के किसी भाग में निवास करते हैं, या कर चुके हैं, तो उसे धर के उस भाग में रहने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। हिंसाकर्ता उस मकान को न तो बेच सकता है न उस पर .ऋण ले सकता है न ही किसी के नाम से हस्तातरित कर सकता है। अगर पीड़ित की रिपोर्ट से जज को ऐसा लगता है कि पीड़ित को हिंसाकर्ता से आगे भी खतरा है, तो हिंसाकर्ता पुरूष को धर के बाहर रहने का आदेश भी दे सकता है या घर के जिस भाग में पीड़ित व्यक्ति का निवास है या विद्यालय महाविद्यालय में जाने से मना कर सकता है।
बच्चों की अभिरक्षा का आदेश धारा 21 :- न्यायालय पीड़िता की मांग पर उसे उसके बच्चों को अभिरक्षा में देने का अस्थायी आदेश दे सकता है। पीड़िता की रिपोर्ट से न्यायाधीश यह समझते हैं कि हिंसाकर्ता के बच्चे से मिलने भेंट करने से खतरा उत्पन्न हो सकता है तो यह हिंसाकर्ता को कही भी बच्चें से नहीं मिलने का आदेश दे सकता हैं।
आर्थिक राहत एवं क्षतिपूर्ति का आदेश धारा 20 एवं 22:- पीड़िता और उसके बच्चों का भरण-पोषण, चिकित्सीय खर्च, कपड़ेहिंसा की वजह से हुए किसी सम्पत्ति के नुकसान या हटाये जाने के कारण हुए नुकसान का मुआवजा देने का आदेश देगा। अदालत मानसिक यातना और भावनात्मक पीड़ा जो रिस्पॉडेंट द्वारा घरेलू हिंसा के कृत्यद्वार पहुंचायी गई है कि क्षतिपूर्ति और जीविका की क्षतिपूर्ति का भुगतान करने के लिए दोषी को आदेश दे सकेगी।
पुलिस परिवार परामर्श केन्द्र :- घरेलू हिंसा की रिपोर्ट दर्ज कर कानून अनुसार समुचित कार्यवाही कर सहायता पहुंचाना कोर्ट के आदेश पर पुलिस परिवार परामर्श केन्द्र के परामर्शदाता,पीड़ित या दोषी से अकेले या संयुक्त रूप से परामर्श देने का कार्य करेंगे और समझौते की रिपोर्ट कोर्ट को प्रस्तुत करेंगे। जहां समझौता न हो पा रहा है, तो ऐसी कार्यवाही की रिपोर्ट न्यायालय को प्रस्तुत करेंगे, जिसके पश्चात् न्यायालय पीड़िता को उसके हित में जैसा उचित समझे आदेश जारी कर सकेगा।
पंजीकृत आश्रय गृह :- न्यायालय/संरक्षण अधिकारी/ सेवा प्रदाता के आदेश से या पीड़िता के आवेदन पर शासन द्वारा पंजीकृत संस्था में आश्रय दिया जावेगा। जहां पीड़िता व उसके बच्चों के लिए नि:शुल्क भोजन, कपड़े,चिकित्सा,पुनर्वासएवं अन्य सहायता उपलब्ध कराई जाएगी।
संरक्षण अधिकारी के कर्तव्य :- पीड़िता की ओर से घरेलू हिंसा की रिपोर्ट प्रारूप 1 में तैयार करना और स्थानीय पुलिस थाना,सेवा प्रदाता,विधिक सहायता अधिकारी एवं मजिस्ट्रेट को भेजना। पीड़ित व्यक्ति के अनुरोध पर आश्रय गृह एवं चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करवाना। कोर्ट आने-जाने, आश्रय गृह आदि के लिए परिवहन की नि:शुल्क व्यवस्था उपलब्ध करवाना। न्यायालय में आवेदन फाईल करने के लिए भारत सरकार के निर्धारित प्रारूप 2.3 एवं 5 में आवेदन तैयार करने में सहयोग करना। पीड़ित व्यक्ति को राज्य विधिक सहायता प्राधिकरण द्वारा नि:शुल्क सहायता उपलब्ध करवाना। न्यायालय के समन्स/नोटिस तामील करवाना। मजिस्ट्रेट के निर्देश पर घरेलू हिंसा की घटना की जॉच कर रिपोर्ट देना। इस प्रकार संरक्षण अधिकारी मजिस्ट्रेट और पीड़िता के बीच की कड़ी के रूप में कार्य करेगा और उसकी जिम्मेदारी है कि पीड़ित महिला और उसके बच्चों को सुरक्षा एवं सहायता प्रदान करने संबधित सभी कार्यवाही कानून एवं उषा किरण योजना अंतर्गत उपलब्ध कराना।
पुलिस का दायित्व :- यदि संरक्षण अधिकारी या सेवा प्रदाता को किसी भी माध्यम से यह विश्वसनीय सूचना प्राप्त होती है कि कहीं पर घरेलू हिंसा का कृत्य हो रहा है या सम्भावना है तो ऐसी आपातकालीन स्थिति में पुलिस अधिकारी,संरक्षण अधिकारी/सेवा प्रदाता के साथ घटना स्थल पर जाएगा और घरेलू दुर्घटना की रिपोर्ट तैयार कर इस अधिनियम के अधीन समुचित आदेश प्राप्त करने के लिए अविलम्ब मजिस्ट्रेट को प्रस्तुत करेगा। घरेलू दुर्घटना की रिपोर्ट में उपलब्ध कराई गई सूचना से भारतीय दण्ड संहिता या अन्य विधि के अधीन किया गया अपराध प्रकट होता है तो नियमानुसार कार्यवाही करना। .
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