मध्यप्रदेश स्थापना दिवस समारोह ''करते-करते सीमा की रखवाली, आओ अब्दुल हमीद हो जायें''
देर रात तक चले कवि सम्मेलन में राष्ट्रभक्तिपूर्ण कविताओं से श्रोता हुए मंत्रमुग्ध
ग्वालियर दो नवम्बर 09। मध्यप्रदेश स्थापना दिवस समारोह की पहली रात राष्ट्रभक्ति और सामाजिक सरोकारों की खुशबू से महकती रही। कलावीथिका में जिला प्रशासन एवं जनसंपर्क विभाग द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन में देश के प्रतिष्ठित कवियों ने रचना पाठ कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। डॉ. पूनमचंद तिवारी की अध्यक्षता में देर रात तक चले कवि सम्मेलन की शुरूआत पारंपरिक रूप से सरस्वती वंदना की प्रस्तुति के साथ हुई। कविवर प्रेमबहादुर अजय ने सरस्वती वंदना से शुरूआत की।
कवि सम्मेलन के पहले कवि के रूप में राकेश अचल ने मंच संभाला उनकी कविता के बोल कुछ इस प्रकार थे। जो चाहा मिल गया शिकायत कोई नहीं किसी से है, थोड़ी बहुत मिली है पीड़ा वह अपनी मर्जी से है। राकेश अचल की गजलों को खासतौर पर सराहा गया। उनकी गजल का शेर जान दे देगी जो आफत में जान समझेगी, माँ तो बच्चों को हमेशा अनजान समझेगी। इसके बाद वीररस के प्रख्यात कवि प्रेमबहादुर अजय ने अपना मध्यप्रदेश और बंदेमातरम रचना प्रस्तुत कर श्रोताओं को रोमांचित कर दिया। देश के ख्यातिनाम शायर नसीम रिफअत ने कुछ इस अंदाज में अपनी रचना पढ़ी करते करते वतन की रखवाली, सरहदों पर शहीद हो जायें। दुश्मनों को सबक सिखाना है, आओ अब्दुल हमीद हो जायें॥
नसीम रिफअत की गजलों की मजमूनबंदी ने श्रोताओं को बेहद प्रभावित किया। उन्होंने कहा तजुर्बे जिंदगी से मिलते हैं, जख्मे दिल दोस्ती से मिलते हैं। ये चलन देखकर जमाने का, हम बहुत कम किसी से मिलते हैं।
हिन्दी गजल गायिकी के ख्यातिनाम हस्ताक्षर स्वर्गीय दुष्यंत कुमार की पंरपरा को आगे बढ़ाने वाली उरई (जालौन) से आई डॉ. रेनू चन्द्रा की गजलों का अलग ही रंग था। उनकी एक गजल की बानगी देखिये सबके मन को ये भाती है, तेरी होली मेरी ईद। कितने ही सपने लाती हैं, तेरी होली मेरी ईद॥ इसी गजल की अंतिम पंक्तियों में तो कवि ने अपने दिल का दर्द उड़ेलते हुए सवाल भी उछाला '' दोनों त्यौहारों में यक्सां रस्म गले मिलने की। गले क्यों नहीं मिल पाती है तेरी होली मेरी ईद॥
कौमी एकता के अलमबरदार शायर काजी तनवीर द्वारा तरन्नुम में पढ़ी गई गजलों ने काव्य प्रेमियों को भीतर तक रोमांचित किया। उन्होंने बड़ी कुर्बानियां देकर मिली हैं आजादी, ये आजादी हमारी जिंदगी है की प्रस्तुती पर काव्य प्रेमियों से खूब तालियां बटोरीं। फिर मेरे महबूब वतन.... ने तो श्रोताओं के दिलों को ही छू लिया। कवि सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ. पूनमचंद तिवारी ने राष्ट्रीय समर्पण पर केन्द्रित कई रचनायें पढ़ी। संयुक्त संचालक जनसंपर्क श्री सुभाषचन्द्र अरोड़ा ने भी इस अवसर पर कविता पाठ किया। कवि सम्मेलन से पहले कला वीथिका के इसी मंच पर शासकीय कलापथक दल ने अपनी सराहनीय प्रस्तुतियां दी। इस अवसर पर आयोजकों ने अतिथि कवियों को शॉल और श्रीफल भेंट कर सम्मानित किया। कवि सम्मेलन में वरिष्ठ पत्रकार देव श्रीमाली, स्वदेश के कार्यकारी संपादक लोकेन्द्र पाराशर के अलावा सुरेन्द्र माथुर (चस्का रेडियो) और श्रोताओं के रूप में डॉ. नामधारी, डॉ. इश्ताकखान, मनमोहन घायल, डॉ. फैयाज खान आदि उपस्थित थे।
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