स्वर्णरेखा जल गुणवत्ता अभिवृध्दि के उद्देश्य व संभावनाओं पर बैठक का आयोजन
ग्वालियर 26 जून 09। स्टैक होल्डर कन्सलटेंट मीटिंग का आयोजन आज यहां चंबल कालोनी स्थित जल संसाधन विभाग यमुना कछार के मुख्य अभियंता कार्यालय के कॉन्फ्रेंस हॉल में किया गया। राज्य शासन ने जल संसाधन के नियोजन व प्रबंधन में उपभोक्ता समूह की भागीदारी सुनिश्चित करने के उद्देश्य से अनेक कदम उठाये हैं। इसी कड़ी में सहभागियों का सहयोग तथा सहभागिता सुनिश्चित करने के लिये इस बैठक का आयोजन किया गया। बैठक में सिंध बेसिन वाटर क्वालिटी इनहैंसमेन्ट प्रोजेक्ट, परियोजना प्रावधान, संभावित पर्यावरणीय एवं सामाजिक प्रभाव व नीतिगत मुद्दे आदि विषयों पर चर्चा की गई। साथ ही प्रतिभागियों के सुझाव भी लिये गये।
इस अवसर पर बैठक में जानकारी दी गई कि म प्र. वाटर सेक्टर रिस्ट्रक्चरिंग प्रोजेक्ट का उद्देश्य जल क्षेत्र की कार्यशीलता तथा उत्पादता का विकास एवं प्रबंधन उपभोक्ताओं की सहभागिता में वृध्दि के द्वारा करना है। जल संसाधनों के प्रबंधनों में कछार क्षेत्र में पर्यावरण एवं सामाजिक चिरस्थायीता पर विशेष बल दिया जाता है। म प्र. वाटर सेक्टर रीस्ट्रेक्चरिंग प्रोजेक्ट में पांच नदी कछार आते हैं। जो चंबल सिंध वेतवा कैन व टोंस में हैं। सिंध कछार के स्वर्ण रेखा उपकछार के जल की गुणवत्ता जल संसाधन प्रबंध में मुख्य समस्या के रूप में चयनित की गई है। अत: इस उपकछार को मॉडल प्रोजेक्ट के रूप में चयनित किया गया है। ताकि इसके अध्ययन परिणामों को अन्य उपकछारों में भी दोहराया जा सके। स्वर्ण रेखा जल गुणवत्ता अभिवृध्दि कार्य को दो भागों में बांटा गया है। प्रथम चरण में कम अवधि वाले कार्य आते हैं। जो तुरंत प्रारंभ किये जा सकते हैं। प्रथम चरण में सिल्ट निस्तांतरण, नदी की सीमेंट कांकरीट लाईनिंग, पुस्ठे की दीवार का निर्माण, ब्रिजों का प्रावधान एवं जीर्णोध्दार द्वारा तथा नालों का अधिकरण, फीडर टेंकों का जीर्णोध्दार तथा आधुनिकीकरण, सेवा एवं निरीक्षण कोरीडोरो का प्रावधान शामिल हैं। इसी प्रकार फेस 2 के कार्यक्रमों में प्रदूषण रहित न्यूनतम पर्यावरणीय वहाव को बनाये रखने वाले उपाय सम्मिलित है। इसके अंतर्गत तालाबों की श्रंखला से हुनमान बांध पर एकत्रित आवश्यकतानुसार स्वर्ण रेखा नदी में छोड़ना। वर्तमान में ग्वालियर शहर में कुल जल प्रदाय 0.176 ग्[1]ग् है 80 प्रतिशत अवरोध मानते हुए स्वर्ण रेखा तथा मुरार में कुल जल प्रदाय 0.137 ग्[1]ग् होगा। ग्वालियर लश्कर तथा मुरार में जल प्रदाय व्यवस्था व जनसंख्या के आधार पर यह निश्चित किया गया है। कि इसका 65 प्रतिशत स्वर्णरेखा में तथा 35 प्रतिशत मुरार नदी में आता है। अत: सामान्य स्थिति में स्वर्ण रेखा में 0.411ग्[1]ग् तथा मुरार नदी में 0.228 ग्[1]ग् सीवेज वहाव आयेगा।
स्वर्ण रेखा के उपकछार में ककैटो तथा सांक नून नहर प्रणाली के माध्यम से जल उपलब्ध होगा। जो अतिरिक्त जल उपलब्ध होगा उसका उपयोग पर्यावरणीय तथा जनता के जीवन की गुणवत्ता बढाने वाले कार्यों में उपयोग किया जायेगा। जैसे सिंचित क्षेत्र में वृध्दि, मत्स्य पालन, नवीन स्टॉप डैम निर्माण, बोट क्लब का प्रावधान, आमोद प्रमोद केन्द्रों का प्रावधान आदि।
स्वर्ण रेखा को तीन भागों में बांटा जा सकता है। स्वर्ण रेखा का ऊपरी भाग जिसमें आमी आमा से हनुमान बांध तक के बांधों तालाबों की श्रंखला आती है। ग्वालियर शहर में नदी/ शहर में नदी की कुल लंबाई 13.65 किमी है। जिसमें अनेक नाले मिलते हैं। नदी का डाउन स्ट्रींग क्षेत्र, इसमें जलालपुर पिकअप वीयर से सांक नदी संगम तक का क्षेत्र आता है।
उपरोक्त तीनों भाग पर्यावरण सामाजिक तथा आर्थिक दृष्टि से एक दूसरे से भिन्न भिन्न है। प्रथम भागों में पहाड़ियां तलहटी में छोटे छोटे गांव तथा कृषि क्षेत्र आते हैं। दूसरा भाग पूर्णत: ग्वालियर शहरी क्षेत्र है तथा तीसरा अंतिम क्षेत्र समतल सिंचित क्षेत्र है। इसमें अपेक्षाकृत अमीर किसान रहते हैं। अत: इन विभिन्नताओं से पूर्ण जल उपयोगिता समूहों के संतुलन बनाते हुए जल प्रबंधन तथा उत्पादकता की योजनाओं को बनाना एक बड़ी चुनौती है।
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