सिल्क फेब 2010 : हथकरघा से बने रेशमी वस्त्रों की प्रदर्शनी सह विक्रय आज से
ग्वालियर 23 मार्च 10। मध्यप्रदेश सिल्क फेडरेशन द्वारा आयोजित हथकरघा से बने रेशमी वस्त्रों की प्रदर्शनी सह विक्रय ''सिल्क फेब-2010'' यहां तानसेन रेसीडेन्सी में 24 मार्च से शुरू हो रही है। प्रदर्शनी का उद्धाटन महापौर श्रीमती समीक्षा गुप्ता द्वारा अपरान्ह दो बजे किया जायेगा। सिल्क फेडरेशन द्वारा उत्पादित वस्त्रों के स्थापित नाम प्राकृत के तहत आयोजित यह प्रदर्शनी 24 मार्च से 28 मार्च तक प्रात: 10 बजे से रात्रि 10 बजे तक खुली रहेगी।
मध्यप्रदेश सिल्क फेडरेशन के महाप्रबंधक श्री राकेश कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि रेशम के जिन वस्त्रों का प्रदर्शन व विक्रय उक्त प्रदर्शनी में किया जायेगा, उनमें मुख्यत: साड़ी, सलवार सूट, ड्रेस मटेरियल, शॉल, दुपट्टा तथ स्टोल्स एवं रेशम टॉई, कुर्ता, जेकेट्स तथा वेस्टर्न आटफिट शामिल है। प्राकृत द्वारा रेशम वस्त्रों की वृहद श्रेखला में प्रस्तुत किये गये सुंदर मलबरी सिल्क, इरी सिल्क तथा रीच टसर सिल्क के वस्त्रों पर प्राकृतिक रंगों में पारंपरिक प्रिंट तथा विश्व विख्यात महेश्वरी एवं चंदेरी की सुंदर डिजाईन इस प्रदर्शनी का आकर्षण होंगी। उन्होंने बताया कि सिल्क फेडरेशन द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय मानक अनुसार गुणवत्तायुक्त रेशम उत्पादन करने में अपनी पहचान स्थापित की है। हमारे प्रदेश का रेशम देश के अन्य राज्यों के वस्त्रों में गुणवत्ता बढ़ाने के लिये उपयोग किया जाता है। इसमें मुख्यत: उड़ीसा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड तथा महाराष्ट्र राज्य शामिल हैं, जिसके विशिष्ठ एवं प्रख्यात वस्त्र जैसे बनारस का जामावार, उड़ीसा का इक्कत तथा बोमकाई (सम्बलपरी), राजस्थान की डाबू, सांगानेरी, बगरू तथा बांधनी शामिल है, ये वस्त्र भी इस प्रदर्शनी के मुख्य आकर्षण है।
सिल्क वस्त्रों पर पारंपरिक छपाई मुख्यत: राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कलाकारों द्वारा की जाती है। रेशम वस्त्रों में कला और कौशल की काल्पनिकता का अद्भुत समावेश होता है। छपाई में उकेरी गई पारंपरिक कला की सादगी और सुंदरता हमारी परंपरा को आधुनिकता के समावेश के साथ जीवंत रखने का संकल्प है। महाप्रबंधक म प्र. सिल्क फेडरेशन ने बताया कि इस आयोजन में प्रदर्शित वस्त्र पाकृतिक रेशम के हाथकरघा पर उत्पादित वस्त्र हैं, जिसकी सुंदरता, गुणवत्ता सिंथेटिक वस्त्रों से एकदम अलग है। रेशमी वस्त्रों की सबसे बड़ी खूबी यह है कि ये पर्यावरण हितेषी है, क्योंकि इनमें छपाई में उपयोग किये जाने वाले रंग प्राकृतिक होते हैं, जो जड़ी बूटियों, लकड़ियों व फलों के छिलकों से बनाये जाते हैं, इस कारण इन रंगों से न तो शरीर को कोई नुकसान पहुँचता है न ही पर्यावरण को कोई क्षति होती है।
श्री राकेश कुमार श्रीवास्तव ने ग्वालियर के नागरिकों से एक बार इस प्रदर्शनी का अवश्य अवलोकन करने की अपील की है। प्रदर्शनी का मकसद बुनकरों द्वारा उत्पादित पारंपरिक कला के उत्कृष्ट उत्पादों को विपणन की सुनिश्चित व्यवस्था करना भी है। साथ ही यह प्रदर्शनी प्रदेश सरकार की उस नीति के परिपालन में लगाई गई है, जिसमें लोक कला को बचाये जाने के साथ साथ गरीब महिलाओं को रोजगार देने का संकल्प समाहित है।
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