मंगलवार, 28 जुलाई 2009

आत्मनिर्भरता ने आखिर बना ही दिया निर्धन महिलाओं को अपने परिवार का सहारा

आत्मनिर्भरता ने आखिर बना ही दिया निर्धन महिलाओं को अपने परिवार का सहारा

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शहडोल 27 जुलाई 2009. उन महिलाओं की पृष्ठभूमि मध्य प्रदेश के शहडोल जिले में झगरहा गांव और उनके शुरूआती तंगहाल जीवन को देख कोई नहीं कह सकता था कि वे कभी सफल होंगी । आर्थिक अभावों और बिरादरी की आलोचना झेलने के बावजूद अपना मुकाम हासिल करने के लिए अपना जुनून बरकरार रखते हुए ये महिलाएं इनदिनों केंचुआ खाद से अपने सुनहरे भविष्य का तानाबाना बुनने में जुटी हैं ।

       पहले झगरहा के बेहद गरीब परिवारों से ताल्लुक रखने वाली इन दस महिलाओं का चेहरा घूंघट में और कदम घर की चौखट के अन्दर रहा करते थे । लेकिन इन महिलाओं को रोजगार से जोड़ने और कृषि क्षेत्र में कम लागत में भरपूर उत्पादन लेने के मकसद से कृषि विभाग ने 2004 में इन दस सदस्यीय महिलाओं का कृष्णा स्वसहायता समूह बनवाया । समूह के जरिए इस तरह काम करना शुरू-शुरू में तो इनके पतियों को नहीं भाया और उन्होंने इनका विरोध किया । गांववालों को भी उनका घूंघट से चेहरा बाहर निकालकर यों आत्मनिर्भर होना रास नहीं आया । लेकिन महिलाओं के आगे उनकी एक नहीं चली और महिलाओं ने घर की चौखट के बाहर कदम रख ही दिए और घूंघट से चेहरा बाहर निकाल लिया ।

       कृषि विभाग ने उन्हें केंचुआ खाद उत्पादन तथा मौसमी फसलें लेने का प्रशिक्षण दिलाया और उनके घरों में वर्मी टांके बनवाए तथा उन्हें केंचुआ उपलब्ध कराए । महिलाओं के दिन तब पलटे, जब उन्हें केंचुआ खाद से आमदनी होने लगी । जो पति कभी उनका विरोघ किया करते थे, फिर वही उनके सहयोगी बन गए और उनके काम में हाथ बंटाने लगे । वे दिन भी थे, जब उनके पतियों को परिवार की जरूरतों की पूर्ति के लिए साहूकारों की डयोढ़ी पर कर्ज लेने जाना पड़ता था और उन्हें कर्ज के भंवर में निरंतर गोते लगाते रहना पड़ता था ।

       लेकिन अब उन्हें साहूकारों की जरूरत नहीं रही । अब वे महिलाएं अपने स्वसहायता समूह से ही कर्ज ले लेती हैं । उनकी गांठ में चार पैसे हो जाने से अब उनका परिवार अच्छी तरह खा-पी और पहन -ओढ़ रहा है । उन्होंने अपने मकान के पिछबाड़े के हिस्से को केंचुआ खाद इकाई में तब्दील कर दिया है । सरकारी मदद से शुरू हुआ उनका यह उपक्रम पारिवारिक कारोबार में तब्दील हो गया और वे हर माह तीन-चार क्विंटल केंचुआ खाद का उत्पादन कर लेती हैं । वे केंचुआ खाद बेचने के साथ-साथ अपने पुरखों की खेती की थोड़ी-बहुत जमीन पर भी बचे खाद का इस्तेमाल कर लेती हैं । कृषि विभाग से  सीखी उन्नत तकनीक से वे खेती भी कर रही हैं ।

       कइयों के लिए उनकी सफलता चकरानेवाली हैं, क्योंकि समूह प्रति वर्ष केंचुआ खाद और केंचुओं की बिक्री से डेढ़-डेढ़ लाख रूपये कमा लेता हैं । समूह की हर माह नियमित बैठक होती है । गांववाले समूह की महिलाओं को केंचुआवाली बड़ी नेता कहकर संबोधित करने लगे हैं । ये महिलाएं समाज में बदलते  मूल्यों और लोगों की संकुचित सोच के बावजूद अपनी मंजिल तलाशकर समाज को नई दिशा दे रही हैं । पारिवारिक या सामाजिक सरोकार निभाने में लिंग भेद आड़े नहीं आता । इस बात को इन महिलाओं ने सच कर दिखाया है । वे न केवल अपने परिवार की आमदनी बढ़ाने में योगदान दे रही हैं, बल्कि समाज की भलाई के बारे में भी सोच रही हैं । स्वरोजगार से आत्मनिर्भर होकर ये महिलाएं हर माह अच्छा खासा कमा लेती हैं । उनका केंचुआ खाद छत्तीसगढ़ तक जा रहा है । कुल मिलाकर उनका खाद और केंचुआ कई शहरों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है । वे खाद की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देती हैं तथा उसकी कीमत भी कम रखी गई है। समूह की अध्यक्ष श्रीमती राधा विश्वकर्मा अपने मोबाइल 9630892207 पर  खाद का आर्डर बुक करती हैं ।

       समूह की अध्यक्ष श्रीमती राधा विश्वकर्मा कहती हैं कि सरकार ने तो हमारी बुध्दि खोल दी, जो आज हम अपने पैरों पर खड़े हैं और बड़े-बड़े अधिकारियों से बातें कर लेते हैं । समूह की कोषाध्यक्ष श्रीमती रूकमणी बताती हैं कि समूह से हमारी जिन्दगी बदल गई । समूह की सचिव सुमन केवट पिछली परिस्थितियों को याद करके बताती हैं,'' पहले हमारे सामने बहुत मुसीबतें थी । अब जिन्दगी अच्छी तरह चल रही है ।''

       कृषि विभाग के उप संचालक श्री के. एस. टेकाम कहते हैं कि समूह से जुड़ी महिलाओं को गांव में ही रोजगार मुहैया कराने के मकसद से पहल की गई है । विभाग ने इस गांव को गोद लिया था, जिससे उन्हें कम लागत में कृषि उत्पादन लेने का तकनीकी ज्ञान दिया जा सके । अपने मकसद में यह योजना कामयाब रही है ।

       आज ये महिलाएं अपनी मेहनत के बलबूते रोजगार के लिए लालायित गांव की गरीब महिलाओं की प्रेरणास्त्रोत बनी हुई हैं । उनकी आमदनी से प्रेरित होकर गांव में महिलाओं के तीन स्वसहायता समूह और बन गए हैं । कृष्णा स्वसहायता समूह की महिलाएं अपने कारोबार को 10 लाख रूपये तक सालाना पहुंचाना चाहती हैं । सरकारी मदद से अपनी राह खुद बनाने वाली इन महिलाओं के लिए सफलता का मूलमंत्र संघर्ष है ।

 

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