शनिचरी अमावस्या पर प्राचीन सिध्द शनि मन्दिर में लाखों श्रध्दालुओं ने दर्शन किये
ग्वालियर, 27 दिसम्बर 08/ ग्वालियर जिला मुख्यालय से लगभग 17 किलोमीटर दूर चंबल संभाग के मुरैना जिले के ग्राम एेंती में स्थित शनिचरा पर्वत पर देश के प्राचीन शनि मन्दिर में आज शनिचरी अमावस्या के दिन लाखों लोगों ने सिद्व शनिदेव प्रतिमा के दर्शन किये। शनिचरा पर्वत पर आने वाले श्रद्वालुओं ने यहाँ शनि देव की स्थापित प्रतिमा की प्रतिकृति पर तेल चढ़ाया । समूचा शनिचरा पर्वत सिध्दस्थल होने के कारण श्रध्दालुगण मुण्डन करवा रहे थे। शरीर पर सरसों का तेल मल रहे थे और स्नान कर शनिदेव का दर्शन लाभ लें स्वयं को कृतार्थ अनुभव कर रहे थे। शनिदेव के दर्शन उपरान्त श्रध्दालुगण अपने पुराने जूते, मौजे,वस्त्र आदि का भी वहाँ त्याग कर रहे थे । शनिचरा पर्वत पर यत्र तत्र श्रध्दालुओं के बाल तथा त्यागे हुए चप्पल जूते एवं वस्त्र आदि बिखरे पड़े थे । शनिदेव की प्रतिमा पर चढ़ावे के तेल के भी कई ड्रम भर चुके थे । कल रात्रि से ही श्रृद्वालुओं के मन्दिर पहुँचकर पूजा अर्चना का जो सिलसिला प्रारम्भ हुआ वो आज देर शाम तक भी निरन्तर चलता रहा ।
जनश्रुति के अनुसार देश के इस अति प्राचीन शनि मन्दिर की स्थापना विक्रमादित्य द्वारा की गई थी । वीरान वन क्षेत्र में स्थापित यह मन्दिर कभी तन्त्र साधना का भी महत्वपूर्ण केन्द्र रहा था । कई राजवंशों ने यहां शनिदेव की अराधना की। एक जानकारी के अनुसार कुशवाह, चन्देल, जाट तथा सिंधिया राजघराने ने समय समय पर इस मन्दिर में पूजा अर्चना की व इसकी देखभाल पर भी ध्यान दिया। वर्तमान में इस मन्दिर की व्यवस्था राज्य शासन के औकाफ विभाग द्वारा की जा रही है। मुरैना जिला प्रशासन ने पूरी रूचि लेकर शनिचरी अमावस्या के मेले की व्यवस्थाओं में निरंतर सुधार किया है। अब यहां शनि दर्शन को आने वाले लाखों श्रध्दालुगण सुगमता से देव प्रतिमा का दर्शन लाभ ले रहे हैं। साथ ही अब तेल चढ़ाना भी आसान हो गया है। और दर्शन पूर्व पवित्र कुण्ड के जल का स्नान भी फुव्वारों के माध्यम से सरल हो सका है। पहले कांच की शीशियों के उपयोग के दौरान टूट जाने से बिखरने वाले कांच से बहुत से लोग जख्मी होते थे और तेल फिसलन का कारण बनता था। मेले में विगत तीन वर्षों से नाइयों का भी पंजीयन कराया जा रहा है तथा उन्हें ब्लेड भी दिये जा रहे हैं। उन्हें हर व्यक्ति के लिये नया ब्लेड इस्तेमाल करने की भी हिदायत दी गई है।
मेला स्थान पर प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र के शासकीय चिकित्सक डॉ. एल आर. किसानिया के मार्ग दर्शन में चिकित्सा दल श्रध्दालुओं के उपचार के लिये सेवारत है। चिकित्सा दल के पास ओ आर एस. , मलेरिया रोधक दवाएं, दर्द निवारक दवाएं, ऐन्टी बॉयोटिक, पेट दर्द, उल्टी, बुखार, अस्थमा सहित विविध रोगों के उपचार, मरहम पट्टी और ड्रिप सैट आदि लगाने की पूरी व्यवस्थाएं सुलभ हैं। देर शाम तक लगभग दो सौ श्रध्दालु रोगी उनकी सेवाओं का लाभ उठा चुके थे। समाज सेवी संस्थाएं भी चिकित्सा के क्षेत्र में अपना योगदान दे रही हैं। ग्वालियर की गोल्डन ऑर्गेनाइजेशन समिति वैद्यराज डॉ. पुष्पराज जैन की देखरेख में श्रध्दालुओं को आयुर्वेदिक उपचार की सुविधा सुलभ करवा रही है। डॉ. पुष्पराज जैन का कहना है कि वह वर्षों से हर शनिचरी अमावस्या पर आकर श्रध्दालुओं की मुफ्त सेवा करते हैं। ग्वालियर की कई आयुर्वेदिक दवा कम्पनियां भी उन्हें इस अवसर पर मुफ्त वितरण हेतु दवाएं सुलभ कराती हैं। उनके इस कार्य में श्री विशिष्ठ राम एवं श्री बृजमोहन अग्रवाल भी पूरा सहयोग कर रहे थे।
मेला क्षेत्र में कानून व्यवस्था की दृष्टि से चौकस बन्दोबस्त किये गये हैं। स्थान-स्थान पर कार्यकारी मैजिस्ट्रैट तथा पुलिस अधिकारी तैनात हैं। जिला कलेक्टर मुरैना श्री एम के. अग्रवाल तथा पुलिस अधीक्षक श्री सन्तोष कुमार सिंह भी निरन्तर सुबह से ही मन्दिर परिसर में मौजूद रहकर व्यवस्थाओं का जायजा ले रहे हैं। साथ ही यातायात की दृष्टि से भी पूर्व वर्षों की तुलना में बेहतर इन्तजाम किये गये हैं।
श्री शनिदेव मंदिर एेंती, जिला मुरैना
ग्राम एेंती, तहसील व जिला मुरैना में शनि पर्वत क्षेत्र में विश्व प्रसिध्द श्री शनिदेव महाराज का मंदिर अति-प्राचीनकाल से स्थापित है । मंदिर के निर्माण का निश्चित समय यद्यपि ज्ञात नहीं है , किन्तु किवदंतियों के अनुसार इसकी स्थापना त्रेताकालीन मानी जाती है। मुगलकाल में अनेक हिन्दू देवस्थानों की भांति इस प्राचीन मंदिर को भी ध्वस्त करने का प्रयत्न किया गया था । ग्वालियर राज्य के सिंधिया शासकों ने मंदिर का नवनिर्माण कराया तथा मंदिर की देखरेख के लिये आराजी एवं नगदी नेमणूक कायम किया । शनि पर्वत पर स्थित पांच मंदिरों की देखरेख मंहत श्री लक्ष्मण दास करते थे, जिनकी भक्ति से प्रभावित होकर तत्कालीन शासक दौलतराव सिंधिया द्वारा सम्वत् 1865 सन् 1808 में ग्राम एेंती की जागीर प्रदान की गई। बाद में मंहत बालकदास के अयोग्य हो जाने से सन् 1945 में जागीर जब्त कर मंदिर औकाफ के प्रबंधन को सौंप दिये गये तथा इनकी स्थानीय निगरानी का दायित्व तहसील मुरैना को सौंपा गया ।
खगोलविदों के अनुसार...
खगोलविदों के अनुसार शनि सौर मण्डल का सबसे सुन्दर और मनोरम पिण्ड है। शनि के चारों तरफ नीले वलय घूमते रहते हैं। पृथ्वी से 700 गुना विशाल गृह व 75 गुना भारी शनि मन्दगति से सूर्य की परिक्रमा करता है। एक शनि वर्ष पृथ्वी के 25 हजार दिन जितना लम्बा होता है।
ज्योतिष एवं धर्मग्रन्थों के अनुसार ....
शनिदेव सूर्य की द्वितीय पत्नी छाया के पुत्र हैं । ज्योतिष की अवधारणा के अनुसार शनि एक राशि पर तीस माह तक भ्रमण करते हैं । शनि भगवान शंकर के शिष्य हैं । भैंसा शनि का वाहन है । कहते हैं कि हनुमान जी ने घायल शनि के जख्मों पर तिल्ली तथा सरसों के तेल के फोहे रखे जिससे उन्हें आराम मिला । तभी से शनिवार को शनिदेव के तैलाभिषेक की परम्परा प्रारंभ हुई ।
ज्योतिषविद्ों का मानना है कि शनि न तो पीड़ादायक ग्रह और न ही भयभीत करने वाला। शनि वस्तुत: भक्तों को सौम्यता, शालीनता , न्याय प्रियता और अध्यात्मपरक मानसिकता का दाता है । शनि मकर और कुम्भ राशि का स्वामी है । मिथुन , कन्या, तुला और वृष राशियां इसकी मित्र हैं । गृहों में बुध और शुक्र शनि के मित्र गृह माने जाते हैं । शनि को नीलम, लोहा, काली उड़द, काले तिल, नमक, शीशम , काले रंग की वस्तुएं, तेल, नाग व भैंस आदि का स्वामी भी माना जाता है । शनि कल कारखानों व मशीनरी आदि सहित रहस्य विद्या और सफलता का द्योतक भी माना जाता है।
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