शनिवार, 13 जून 2009

मातृ एवं शिशु मृत्यु दर कम करने के लिये संस्थागत प्रसव आवश्यक

मातृ एवं शिशु मृत्यु दर कम करने के लिये संस्थागत प्रसव आवश्यक

ग्वालियर 12 जून 09 । संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देकर ही मातृ मृत्युदर को कम किया जा सकता है । क्योंकि अस्पताल में जच्चा एवं बच्चा दोनो की ही  अच्छी तरह देखभाल होती है । प्रसव के पश्चात जच्चा एवं बच्चा को कई तरह की समस्यायें आती है, जिन पर अस्पताल में चिकित्सकों द्वारा काबू कर लिया जाता है तथा मां एवं बच्चे की जान को कोई खतरा नहीं होता है ।

      यह बात मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डा. अर्चना शिंगवेकर ने यहां विभागीय बैठक में जननी सुरक्षा योजना की समीक्षा के दौरान कही । उन्होंने तामिलनाडु राज्य का उदाहरण देते हुये कहा कि वहां मातृ मृत्युदर बहुत कम है, जिसका प्रमुख कारण वहां पर संस्थागत प्रसव 92 प्रतिशत होना है । वहां इस कारण  शिशु मृत्युदर भी काफी कम है । उन्होंने कहा कि शासन का मुख्य उद्देश्य मातृ एवं शिशु मृत्युदर में कमी लाना है । इसी उद्देश्य को लेकर स्वास्थ्य विभाग की महत्वपूर्ण योजनायें संचालित है जिनमें जननी सुरक्षा योजना एवं जननी एक्सप्रेस योजनायें संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के लिये चलाई जा रही है तथा प्रसूता महिलाओं को इन योजनाओं से आर्थिक लाभ भी होता है ।

      डा. शिंगवेकर ने ग्वालियर जिले की सभी गर्मवती महिलाओं से अपील की है कि वे गर्भावस्था के दौरान स्वास्थ्य केन्द्र अथवा अस्पताल में अपना पंजीयन करायें, टिटनेस के दो टीके लगावायें । प्रसव पूर्व 20, 32 और 36 सप्ताह में कम से कम तीन जांच करायें, 100 दिन तक आयरन (खून बढ़ाने की ) गोली खायें, हरी पत्तेदार सब्जियां एवं पौष्टिक आहार लें। प्रसव स्वास्थ्य संस्थाओं में करायें। प्रसव के तुरंत बाद बच्चे को स्तनपान शुरू कर दें । बच्चे को एक दिन में आठ बार से अधिक स्तनपान करायें, 6 माह तक के बच्चों को केवल अपना दूध पिलायें, पानी या अन्य आहार न दें । मां अधिक भोजन खायें जिससे पौष्टिकता हो । मां एवं बच्चे के बीमार होने पर भी स्तनपान कराना बंद नहीं करें एवं प्रसव के पूर्व एवं पश्चात मां अपनी जांच अवश्य करायें । उक्त सावधानियों एवं संस्थागत प्रसव से जच्चा एवं बच्चा दोनों की जान बच सकती है तथा मातृ एवं शिशु मृत्यदर को कम किया जा सकता है ।

 

 

कोई टिप्पणी नहीं: