आलेख- अथ श्रीकुम्भाय् नम: कुम्भ मेला
(कुंभ से लौटकर श्रीमती राजबाला अरोड़ा द्वारा)
'मेरे हिन्दुस्तान' से साक्षात्कार करना है, अगर भारतीय सांस्कृतिक परम्परा को जानना है तो कुंभ-आ जाओ । दो हजार दस के नए साल यानि 14 जनवरी से प्रारम्भ देश की धर्मनगरी हरिद्वार में सबसे बड़ा कुंभ मेला लग चुका है । यहाँ देश के कोने-कोने से विभिन्न हिन्दू मतावलंबी लाखों की संख्या में जुट रहे हैं । यह इस सदी का प्रथम महाकुंभ है । कुंभ देश धर्म और सामाजिक जुड़ाव का अद्भुत मेला है, जिसमें भारतीय अनेकता में एकता के दर्शन होते हैं । हिन्दु धर्म में नाना पंथ मसलन शैव, वैष्णव, तान्त्रिक, नागा आदि के अलग-अलग सिद्वान्त एवं मोक्ष प्राप्ति के पृथक - पृथक मार्ग हैं फिर भी वैचारिक मतभेदों के बावजूद सभी एकजुट हैं यहाँ ।
हरिद्वार में इस शताब्दी का पहला कुंभ हर दृष्टि से उत्तम माना गया है । स्कन्दपुराण के अनुसार ''पद्मिनी नायके मेषे कुम्भराशि गते गुरौ । गंगाद्वारे भवेद्योग: कुम्भनाभातदोत्तम॥ अर्थात जब सूर्य मेष राशि में होता है और बृहस्पति कुंभ राशि में हो, तब गंगाद्वार अर्थात हरिद्वार में कुंभ का उत्तम योग होता है । पौराणिक ग्रंथों में वर्णित कथा में कुंभ के बारे में कहा जाता है कि अमरत्व प्राप्त करने के लिए देवताओं व असुरों ने क्षीरसागर में समुद्र मंथन की योजना बनाई । क्षीर सागर के बीचों बीच भगवान विष्णु के कच्छप अवतार यानि विशाल कछुए की पीठ पर सुमेरू पर्वत टिका कर मथानी बनाई गई । उसके चारों ओर नागवासुकि को रस्सी की तरह लपेटा गया । फिर एक ओर से देवताओं व दूसरी तरफ से असुरों ने नागवासुकी को खींच कर समुद्र मंथन किया । परिणाम स्वरूप पहला तत्व विष निकला, जिसे भगवान शिव ने अपने कंठ में उतार लिया और नीलकंठ कहलाए । बाद में लक्ष्मी जी व एरावत हाथी सहित चौदह रत्नों की प्राप्ति हुई । चौदहवें रत्न अमृत कलश को लेकर भगवान धन्वन्तरी प्रकट हुए। तब अमृत कलश को पाने के लिए देवताओं व असुरों में होड़ लग गयी । तब इंद्र के पुत्र जयन्त कलश छीनकर भाग गये । वे कलश उठाये - उठाये बारह वर्षों तक ब्रहृमांड में घूमते रहे । इन बारह वर्षों में जयन्त ने अमृत - कलश को बारह स्थानों पर रखा ।कलश रखते हुए इन स्थानों पर अमृत की कुछ बूँदे छलक गई । इन बारह स्थानों में से आठ स्थान तो देवलोक में, और चार स्थान हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन व नासिक धरती पर हैं, जहाँ अमृत की बूँदे गिरीं । इस दौरान बृहस्पति, सूर्य, चंद्रमा व शनि ने भी अमृत कलश की रक्षा की । इसलिए इन ग्रहों के संयोगों के कारण चार स्थानों हरिद्वार के गंगातट, उज्जैन के क्षिप्रा नदी, प्रयाग के संगम तट तथा नासिक के गोदावरी नदी पर हर बारह वर्षो में कुंभ का महायोग आता है ।
हिन्दू समाज को एक सूत्र में पिरोने वाला यह कुंभ कई मायनों में श्रेष्ठ है । विष्णु योग के अनुंसार जब कुंभ राशिस्थ गुरू के समय जब सूर्य का मेष संक्रमण होता है तब हरिद्वार में कुंभ नामक उत्तम पर्व का योग होता है । इस पुण्य घड़ी में समस्त पृथ्वी के साढ़े तीन करोड़ तीर्थ हरिद्वार में उपस्थित होते हैं । इसलिए वहाँ स्नान करना स्वत: समस्त तीर्थें का स्नान करने के समान है ।
हरि की ओर जाने वाला द्वार अर्थात हरिद्वार गंगा किनारे बसा रमणीय स्थल है जिसे कपिल स्थान, मायापुरी और गंगद्वार नाम से भी पुकारा जाता है । बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री व यमुनोत्री इन चार धामों की यात्रा का पहला पड़ाव हरिद्वार ही है । साथ ही यह शैव व वैष्णव मतावलंबियों का भी महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है । गंगा नदी का उद्गभ स्त्रोत गंगोत्री है तो 10,300 फीट की ऊँचाई पर स्थित गोमुख से निकली है, जहाँ से 253 कि.मी.की दूरी का फासला तय कर गंगा हरिद्वार तक पहुँचती है । हरिद्वार को पृथक जिले का दर्जा 28 दिसम्बर 1988 को मिला था, तब हरिद्वार उत्तर प्रदेश का हिस्सा था । फिर 19 नवम्बर 2000 को राज्य पुनर्गठन के फलस्वरूप उत्तराखंड का निर्माण हुआ और हरिद्वार उत्तराखंड में आ गया ।
धार्मिक दृष्टि से हरिद्वार में कई दर्शनीय स्थल हैं जिनमें सबसे महत्वपूर्ण ब्रह्मकुंड है जहाँ स्नान करना श्रेष्ठ माना जाता है । कहा जाता है कि विक्रमादित्य के भाई राजा भृतहरि को यहाँ साधना से मोक्ष प्राप्त हुआ था । उनकी याद में विक्रमादित्य ने यहाँ सीढ़ियाँ बनवाई थीं, जो आज हर की पैड़ी नाम से जानी जाती है । यह स्थान अति फलदाई माना जाता है । दूसरा है कुशावर्त घाट, कहा जाता है जब यहाँ ऋषि दत्तात्रेय एक टांग पर खड़े होकर तपस्या कर रहे थे तो उस समय गंगा में उनके कुश बह गये थे। तब ऋषि के कोप से बचने के लिए गंगा ने स्वयं प्रकट होकर कुश वापस कर दिये थे । तभी से इस घाट का नाम कुशावर्त घाट पड़ गया। इस घाट का निर्माण महारानी अहिल्याबाई ने कराया था व हिन्दू लोग यहाँ पिंड दान करने आते हैं । अन्य दर्शनीय स्थलों में मंशा देवी व चंडीदेवी का मंदिर है, जहाँ चंडीदेवी ने शुंभ- निशुंभ का वध किया था । हरिद्वार के मायापुर में मायादेवी का मंदिर ह,ै जो हरिद्वार के मंदिरों में प्राचीन मंदिर माना जाता है । गऊ घाट में स्नान करने से गौ हत्या के पाप से मुक्ति मिलती है । हरिद्वार के उपनगर कनखल में दक्ष महादेव का मंदिर है । वहीं सतीकुंड भी है, जहाँ सती ने अपने पति के अपमान से आहत होकर पिता दक्ष द्वारा बनाए यज्ञ कुंड में अपने प्राणों की आहूति दी थी ।
हर्षवर्धन काल में चीनी यात्री हुआन सांग ने अपने यात्रा वृत्तांत में हरिद्वार के कुंभ का वर्णन किया है । इम्पीरियल गजट में उल्लेख है कि अंग्रेजी शासन में 1852 में हरिद्वार में कुंभ मेले के दौरान हैजा फैला था, जिसमें हजारों लोगों की मौत हो गई थी तभी से कुंभ मेले में साफ सफाई, चिकित्सीय बंदोबस्त, सुचारू यातायात व्यवस्था, बेहतर सुरक्षा व्यवस्था आदि पर अधिक जोर दिया जाने लगा । हरिद्वार में मोक्षदायिनी गंगा तट पर लगने वाला यह कुंभ अतिमहत्वपूर्ण है, क्योंकि इस बार कुंभ में 15 मार्च को पड़ने वाले सोमवती अमावस्या का दुर्लभ संयोग है । 14 जनवरी 2010 से लेकर 28 अप्रैल तक चलने वाले कुंभ मेले के दौरान तीन महत्वपूर्ण शाही स्नान हैं । 12 फरवरी यानि महाशिवरात्रि को पहला शाही स्नान था । मार्च की 15 तारीख को सोमवती अमावस्या के दिन दूसरा शाही स्नान है । और बैशाख में 14 अप्रैल को पड़ने वाले मेष संक्रान्ति को तीसरा शाही स्नान है जो सभी स्नानों से महत्वपूर्ण माना गया है ।
होली के बाद कुंभ अपने पूरे शबाब पर होगा । स्थानीय प्रशासन एवं मेला प्रशासन के अनुसार इस बार देश - विदेश से 5 करोड़ से भी अधिक श्रद्वालुओं के आने की सम्भावना है । इस महाकुंभ के अवसर पर आम नागरिकों के अलावा तेरह जूना अखाड़ों से जुड़े लाखों नागा साधू, महामंडलेश्वरों, मंडलेश्वरों, शैव, वैष्णव पंथी आचार्यों व महंत आदि अपने-अपने लाव लश्कर के साथ गंगा में डुबकी लगाएंगे । अत: इस बार प्रशासन अधिक सतर्क है। इस बार यात्रियों की सुविधा के लिए बड़ी संख्या में अतिरिक्त रेलगाड़ियाँ कुंभ मेले के दौरान तीन माह के लिए चलाई जा रही हैं । हरिद्वार के रेल्वे स्टेशन के बाहरी परिसर में अतिरिक्त टिकट खिड़कियों की व्यवस्था की गई है । सुरक्षा के मद्देनजर, सी.आर.पी.एफ व अर्धसैनिक बलों की टुकड़ियों की तैनाती कर पूरा हरिद्वार एक छावनी में तब्दील कर दिया है। हर की पैड़ी पर प्रवेश से पूर्व श्रद्वालू व सैलानियों की खाना तलाशी ली जा रही है । स्नान दौरान आकस्मिक आपदा से निबटने हेतु जल पुलिस की व्यवस्था की गई है । साथ ही बीस 108 एम्बूलेंस की व्यवस्था के साथ - साथ सभी सरकारी व गैर सरकारी अस्पतालों को चौकस रहने के निर्देश दिए गए है । कुंभ मेले की पल-पल की जानकारी देने के लिए सूचना एवं लोक सम्पर्क विभाग के सौजन्य से प्रिंट एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया के प्रतिनिधियों को समाचार संकलन एवं प्रेषण की सुविधा उपलब्ध कराई गई है, जिसके तहत अत्याधुनिक उपकरणों से सुसज्जित अस्थाई मीडिया सेंटर एवं स्टूडियो स्थापित किए गए हैं, जहाँ सौ से अधिक मीडिया कर्मी एक साथ बैठकर अपने कार्यो को अंजाम दे सकेंगे । मीडिया सेंटर में इंटरनेट, कनेक्टिविटी युक्त कम्प्यूटर, स्कैनर, प्रिंटर्स, फैक्स मशीनें, फोटो कॉपियर, उपलब्ध कराए गये हैं । स्टूडियो में तीन कैमरों सहित एडिटिंग की सुविधा है, जहाँ वीडियो फुटेज अपलिंकिंग भी किया जा सकता हैं। साथ ही बाहर से आने वाले मीडिया प्रतिनिधियों को अल्पकालिक अस्थाई आवासीय सुविधा भी सुलभ है ।
इन दिनों हरिद्वार का पूरा परिदृश्य ही बदला - बदला नजर आ रहा है । सजे बाजारों व बड़े - बड़े अस्थाई भव्य आश्रम व रंगीन तम्बू आकर्षक लग रहे हैं । उस पर शाम से ही गंगा के पानी पर पड़ने वाली रंगीन झालरों की रोशनी के प्रतिबिम्बों से निराली छटा देखते ही बनती है । बाजारों में रागी-बैरागी, आम लोगों की भीड़ को खरीददारी करते देखा जा सकता है । साधु संतों की सुविधा के लिए जरूरत की वस्तुएं सस्ते दाम पर उपलब्ध कराने के लिए कई स्थानों पर उचित मूल्य की दुकानें खोली गई हैं । मनोरंजन के लिए साधु संतों के डेरों पर टी.वी.सेट लगे हैं । देश - दुनिया की खबरें जानने के इच्छुक कई साधु संतों व नागा बाबाओं को अखबार बाँचते भी देखा जा सकता है । अनेक गौरांग युवक - युवतियाँ भी इनके डेरों के चक्कर लगा रहे हैं । हिन्दू दर्शन को ये गौरांग कितना समझते हैं नहीं मालूम लेकिन वे भारतीय के दर्शन से काफी प्रभावित हैं । उनका कहना है कि उन्हें यहाँ आकर काफी शान्ति मिलती है ।
कुंभ के इस पावन अवसर पर हरिद्वार के हर की पैड़ी पर स्नान कर लोग पूजा अर्चना करते हैं । साधू संतों के प्रवचन सुनते हैं व धर्म चर्चा में भाग लेते हैं । हिन्दू धर्म के विभिन्न मतों शैव, वैष्णव, नागा, महामंडलेश्वरों के विशाल व भव्य आश्रमों में साधु मनीषियों द्वारा अपने साधकों को आध्यात्मिक ज्ञान दिया जाता है । दूसरे शब्दों में कहें तो कुंभ के दौरान हरिद्वार एक विश्वविद्यालय सरीखा स्थल बन जाता है, कुंभ मेले में संत महात्माओं का एक प्रकार का दीक्षान्त समारोह होता है,। जिसमें उनके बीच शास्त्रार्थ कराकर विजयी मंडलेश्वर को महामंडलेश्वर की उपाधि से विभूषित किया जाता है ।
मोक्षदायनी गंगा के तट पर भारतीय समाज के बुजुर्ग वानप्रस्थ में आने के बाद कल्पवास करते हैं । कल्पवासी यहाँ व्यसनों को त्यागने का संकल्प लेते हैं और अपना शेष जीवन पूजा आराधना व साधू संतों की संगत में व्यतीत करते हैं । देखा जाए तो पूरे हरिद्वार क्षेत्र में कुंभ के मेले में नागाओं, साधू - संतों, महंतों और सन्यासियों का साम्राज्य नजर आता है । कहीं हर की पैड़ी पर नागाओं की टोली भभूत लगाकर स्नान करती नजर आती है । कहीं किसी बाबा के आश्रम में अन्न क्षेत्र चलाया जा रहा है तो कहीं पर चिकित्सा शिविर चलाए जा रहे हैं । आध्यात्म व भौतिकता का ऐसा अनूठा समन्वय व संतुलन कहीं अन्यत्र देखने को नहीं मिलता । किसी प्रकार का कोई द्वंद नहीं दिखाई देता । कुछ बाबाओं की देशकाल सापेक्ष चिंता, जगह-जगह होर्डिंग्स व बैनर के माध्यम से उजागर हो रही है । पूरा शहर संत मनीषियों के होर्डिंग्स व बैनर्स से पटा पड़ा है । पंचदशानाम जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर योगी यतीन्द्रनाथ गिरिजी ''जिसने समझा उसने जाना । गंगा को है हमें बचाना ॥'' जैसे नारों के माध्यम से जल पर्यावरण को बचाने की बात कहते हैं । उनके द्वारा कुंभ क्षेत्र में दस हजार वृक्षारोपण की तैयारी की जा रही है । साथ ही योगी यतीन्द्रनाथ कैलाश मानसरोवर को चीन से मुक्त कराने की भी बात योगी यतीन्द्रनाथ करते हैं । प्रसिद्व योगी बाबा रामदेव द्वारा जारी होर्डिंग्स में ''भ्रष्टाचार, शोषण और अधर्म, को घोर अपराध । की संज्ञा दी गई है । ऐसे लोगों को उन्होनें देशद्रोही और नर्क का भागीदार बताया है । वह नारों के माध्यम से योग और आयुर्वेद के बाद अगले चरण में भ्रष्टाचार खत्म करने का बिगुल बजा रहे हैं । पायलट बाबा ने तो 12 फरवरी को कुंभ के प्रथम शाही स्नान के अवसर पर 50 फिरंगियों से पिंडदान करवा कर उन्हें सन्यास की दीक्षा दी है। आज के सूचना प्रौद्योगिकी के बढ़ते प्रभाव को ध्यान में रखकर सोहम् बाबा अपने बैनर के माध्यम से नागरिकों को उच्च तकनीकि संसाधनों का उपयोग सद्कार्यो में करने का आवाह्न करते नजर आते हैं । कहीं-कहीं अन्य होर्डिग्स में अंनत श्री विभूषित जगदगुरू रामानन्दाचार्य श्री स्वामी नरेन्द्राचार्य जी महाराज, नाणीजधाम महाराष्ट्र ''हिन्दू धर्म खतरे में है '' क्योंकि हिन्दू बांधवों में स्वधर्म के प्रति बड़े पैमाने में अनास्था अरूचि पैदा की जा रही है । उठो आगे बढ़ो, धर्म की रक्षा करो । '' आदि बातें कर हिन्दुओं को खतरे से आगाह करते दिखाई देते हैं ।
पूरा हरिद्वार बाबाओं के लोकाचार को प्रदर्शित करने वाले होर्डिंग्स व बैनरों से पट गया है । उनकी आपसी प्रतिस्पर्धा इस कदर बढ़ गई है ''जैसे उसकी कमीज मेरी कमीज से ज्यादा सफेद क्यों'' ? बड़े दु:ख की बात है कि कुंभ मेले के विशाल व पावन पर्व पर विभिन्न पन्थों के बड़े-बड़े बाबाओं, नागाओं व महात्माओं द्वारा भारी लाव लश्कर के साथ अपनी शान व प्रतिष्ठा का बढ़- चढ़ कर प्रदर्शन किया जा रहा है । अपनी-अपनी ठपली अपना-अपना राग बजाकर स्वयं को महिमा मंडित किया जा रहा हैं । प्रश्न उठता है कि प्रतिस्पर्धा की इस अंधी दौड़ में ''अपनी कमीज ज्यादा सफेद'' करने के चक्कर में कहीं जनता की धार्मिक आस्थाओं के साथ खिलवाड़ तो नहीं हो रहा ? दीगर बात होती, जब अलग-अलग पंथों के साधु महात्मा एक ही मंच पर द्वैत-अद्वैतवाद, हिन्दू धर्म दर्शन पर अपने विचारों को प्रकट करते और सार्थक परिचर्चा कर समाज को हिन्दू धर्म के विभिन्न पहलुओं से परिचित कराते ।
इति ।
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