मंगलवार, 9 दिसंबर 2008

तानेसन संगीत समरोह 2008 आज के कलाकारों ने रसिकजनों का मन मोह लिया

तानेसन संगीत समरोह 2008 आज के कलाकारों ने रसिकजनों का मन मोह लिया

ग्वालियर 7 दिसम्बर 08 । तानेसन संगीत समारोह की के तीसरे दिन की प्रात: कालीन सभा में सर्वप्रथम शंकर गंधर्व संगीत महाविद्यालय ग्वालियर के शिक्षक तथा छात्र-छात्राओं द्वारा ध्रुपद प्रस्तुत किया । इस संगीत सभा के प्रथम कलाकार अहमदाबाद से पधारे श्री महेन्द्र टोके थे । युवा गायक श्री महेन्द्र टोके अमीर खां गायन शैली के प्रतिभाशाली प्रतिनिधि गायक हैं । उन्होंने अपने गायन का प्रारंभ राग 'अहीर भैरव' से किया । इसमें बड़ा ख्याल झूमरा ताल में निबध्द था । जिसके बोल थे 'जग में ' तथा इसके बाद छोटा ख्याल  ' पिया परमदीन परसमुख चतुर'' प्रस्तुत किया । सिलसिलेवार बढ़त गमक युक्त ताने गायन की विशेषता रही । इसके बाद राग मियां की तोड़ी में एक बंदिश ' जग के पालन हार ' प्रस्तुत की । उनकी गायन शैली को श्रोताओं खूब ने सराहा । आपके साथ तबला पर ग्वालियर में जन्मे प्रख्यात वादक श्री अनंत  मसूरकर  तथा हारमोनियम पर इन्दौर से पधारे श्री गोविंद पोटधन ने संगत की । दोनो ही संगतकारों ने अपने संगत से गायन को सुंदर बना दिया ।

       इसी क्रम में संगीत सभा के द्वितीय कलाकार सरोद वादक श्री राजेन्द्र कुलकर्णी ने वादन में गहन प्रशिक्षण पंडित रत्नाकर व्यास से लिया है । उन्होंने सरोद वादन में राग ' चारु कोसी ' कासे चुना, जिसमें अलाप जोड़, झाला के पश्चात ताल तीन ताल में निबध्द दो रचनायें प्रस्तुत की । सरोद वादन मधुरता तथा लयकारी युक्त था । उनके साथ बनारस से पधारे      श्री पुंडलिक भागवत ने तबले पर बड़ी कुशलतापूर्वक संगत की ।

       तानेसन समारोह की तीसरी प्रस्तुति दिल्ली से पधारे श्री सारथी चटर्जी ने अपने गायन से की । श्री चटर्जी ने अपने गायन का प्रारंभ राग भटियार से किया, जिसमें तिलवाड़ा ताल में निबध्द  आयो प्रभात सब मिल गावो ' प्रस्तुत किया । उनके गायन में राग की बढ़त , बंदिश का स्पष्ट उच्चारण तथा मधुरता परिलक्षित हो रही थी । अगली प्रस्तुति में आपने राग भैरव बहार में ताल एक ताल में एक तराना प्रस्तुत किया । राग भैरव बहार भैरव तथा बहार इन  दो रागों का मिश्रण है । दोनों ही रागों की विशेषता दिखाते हुये श्री सारथी चटर्जी ने  बंदिश को बड़ी सुदरता से प्रस्तुत किया । अपने गायन का समापन श्री चटर्जी ने भजन किया । उनके साथ तबला पर श्री अनिल मोघे ने तथा हारमोनियम पर श्री विवेक बनसोड़ ने संगत की ।

       तानसेन समारोह के चौथे कलाकार मुंबई से पधारे प्रसिध्द सारंगी वादक श्री ध्रुव घोष थे । उन्होंने अपने कार्यक्रम का प्रारंभ शुध्द सारंग से किया जिसमें आपने दो गतें विलंबित तथा द्रुत लय प्रस्तुत की । दोनों ही गतें ताल तीन उताल में निबध्द थीं । सारंग के सभी प्रकार में शुध्द सारंग अति मधुर माना गया है । मधुरता तथा सफाई युक्त तानों का प्रस्तार बहुत ही अच्छा लग रहा था, जिसे सभी श्रोताओं ने सराहा । साथ ही उन्होंने सारंगी पर बजने वाली बंदिशों को गाकर भी सुनाया । कार्यक्रम का समापन उन्होंने एक धुन से किया । इसी धुन में उन्होंने एक गजल गायकी का नमूना भी पेश किया । उनके साथ तबला पर श्री मुकुंद भाले ने संगत की ।

       इस सभा का समापन पटियाला घराने के निष्णात गायक पंडित जगदीश प्रसाद के गायन से हुआ । उन्होंने अपने गायन का प्रारंभ राग गूजरी तोड़ी से किया , जिसमें उन्होंने विलंबित ख्याल ' कागा जा -जा रे ' तथा छोटा ख्याल '' भोर भई तोरी बात करत पिया ' प्रस्तुत किया । साथ ही उन्होंने एक और प्रसिध्द बंदिश ' वन के पंक्षी भये बावरे ' प्रस्तुत की। राग स्वरूप के आलाप तथा स्वरावली बड़े ही खूबसूरत ढंग से प्रस्तुत की । साथ ही कोमल रेध स्वरों का स्वर विस्तार उन्होंने बड़े ही मनमोहक ढंग से प्रस्तुत किया । राग प्रस्तुति के बाद उन्होंने सुप्रसिध्द ठुमरी ' याद पिया की आये ' प्रस्तुत की । भावानुरुप शब्दों की अदायगी उन्होंने बड़े ही मनमोहक ढंग से प्रस्तुत की । ठुमरी के बीच शेर और शायरी के माध्यम से श्रोताओं को आनंदित कर दिया । इसके पश्चात अपने गायन का समापन राग भैरवी की ठुमरी ' का करूं सजनी आये न बालम ' से किया । उनके साथ देश के प्रख्यात तबला वादक श्री रामस्वरूप रतौनिया, सारंगी पर श्री सरवर हुसैन खां तथा हारमोनियम पर श्री विवेक बनसोड़ ने संगत की ।

 

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