शुक्रवार, 12 जून 2009

प्रदेश में ईकोपर्यटन को मिलेगा बढ़ावा, मुख्य वन संरक्षक से वनक्षेत्रपाल स्तर के अधिकारियों का प्रशिक्षण संपन्न

प्रदेश में ईकोपर्यटन को मिलेगा बढ़ावा, मुख्य वन संरक्षक से वनक्षेत्रपाल स्तर के अधिकारियों का प्रशिक्षण संपन्न

 

ग्वालियर 11 जून 09 । मध्यप्रदेश में ईकोपर्यटन को बढ़ावा देने की दिशा में ठोस प्रयास किये जा रहे हैं । आज इस दिशा में स्थानीय मोटल तानसेन के सभागार में मुख्य वन संरक्षक से लेकर वन क्षेत्रपाल स्तर तक के वन अमले की एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला संपन्न हुई।

       उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश ईकोपर्यटन विकास बोर्ड प्रदेश में नैसर्गिक सौंदर्य को प्रकाशित करते हुये ऐसे स्थलों में पर्यटन की सुविधायें विकसित कर रहा है । ईकोपर्यटन प्राकृतिक क्षेत्रों में भ्रमण करते हुये नैसर्गिक संसाधनों के संरक्षण का संदेश देता है । वन संसाधनों से प्राकृतिक घटक और वनों के समीप निवास करने वाले समुदाय का तात्पर्य लगाया जा सकता है । ईकोपर्यटन एक माध्यम है जिसके द्वारा इन दोनों घटकों का कल्याण एवं संरक्षण किया जा सकता है ।

       बोर्ड द्वारा आयोजित आज के प्रशिक्षण में ग्वालियर, शिवपुरी वृत्त एवं माधव राष्ट्रीय उद्यान के अधिकारियों ने भाग लिया । ग्वालियर वृत एवं शिवपुरी शहर सदियों तक अनेक राजवंशों का आश्रय स्थल रहा और प्रत्येक के राज्यकाल में शहर में नये आयाम जुड़े । मुरैना गजक एवं पेड़े के भी विशेष रूप से प्रसिध्द है । दतिया, भिंड, मुरैना, श्योपुर, गुना, अशोकनगर जिलों में भी ईकोपर्यटन की भरपूर संभावनायें है । हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के शिखर पुरूष तानसेन, जो सम्राट अकबर के नवरत्नों में से एक थे । इस महान संगीतकार की समाधि और मोहम्मद गौस का मकबरा आरंभिक मुगलकालीन वास्तुकला का नमूना है । संगीत व नृत्य घरानों की धरोहर इन शहरों से निकली है । ग्वालियर  शहर सूरज कुंड, एक पत्थर की बावड़ी, ग्वालियर फोर्ट, जयविलास महल, और संग्रहालयों के लिये भी प्रसिध्द है । माधव राष्ट्रीय उद्यान में सांख्य सागर बांध, मोहनी सागर बांध, मणिखेड़ा बांध एवं सेलिंग क्लब पर्यटकों के विशेष आकर्षक का केन्द्र रहा है । इस क्षेत्र में कई स्थलों में  ईको पर्यटन विकास की संभावनाओं की तालश हो रही है । निकट भविष्य में अनेकों वन क्षेत्रों में ऐसे दर्शनीय स्थलों का विकास किया जायेगा जिससे जनता प्रकृति का पूरा-पूरा आनंद ले सके।

       पूर्व में प्रदेश की 62 में से 41 कार्यआयोजनाओं में ईकोपर्यटन का परिचय विस्तार से दिया जाता था । बोर्ड द्वारा प्रयास करते हुये वन विभाग के माध्यम से 13 मार्च 2009 को औपचारिक आदेश प्राप्त किये गये कि कार्यआयोजना अधिकारी द्वारा ईकोपर्यटन को कार्य आयोजना में संस्थागत किया जाकर संभावित स्थलों का चिन्हांकन, गतिविधियों का उल्लेख एवं समीपस्थ वन समिति का नाम कार्य आयोजना में दिया जाना आवश्यक होगा । इस व्यवस्था से वानिकी प्रबंधन में ईकोपर्यटन विशेष स्थान ले सकेगा और प्रदेश के नैसर्गिक रूप से सुंदर स्थलों को लोकप्रिय बनाया जा सकेगा । स्मरण रहे कि ऐसे स्थलों के आवागमन से वन संसाधनों की सुरक्षा भी सुनिश्चित होगी एवं जनसाधारण में प्रकृति संरक्षण के संदेश का भी व्यापक प्रचार-प्रसार किया जा सकेगा ।

       ईकोपर्यटन एवं प्रक्रिया विश्वस्तर पर वर्ष 1983 से विकसित हुई । चूंकि यह विषय अब तक  वानिकी के परम्परागत प्रशिक्षण का भाग नहीं बन सका इसलिये बोर्ड द्वारा निर्णय लिया गया कि प्रदेश के प्रत्येक वन वृत्त एवं राष्ट्रीय उद्यान के मुख्य वन संरक्षक से लेकर वन क्षेत्रपाल स्तर तक अधिकारियों को एक दिवसीय औपचारिक प्रशिक्षण दिया जाये । प्रशिक्षण में ईको पर्यटन के सिध्दांत , गतिविधियां, संरचनायें एवं क्षमता विकास के घटकों से उन्हें अवगत कराया जावे । यइ प्रशिक्षण प्रदेश के 11 स्थलों पर आयोजित किया जा रहा है । जिसकी शुरूआत  18 मई को भोपाल वृत से की गई । भोपाल के अतिरिक्त यह कार्यक्रम जबलपुर, शहडोल, रीवा, होशंगाबाद, छिंदवाड़ा, बालाघाट, सागर, उज्जैन, ग्वालियर एवं इन्दौर में आयोजित किया जा रहा है । ईकोपर्यटन के लिये समग्र योजना निरूपण की प्रक्रिया से अधिकारियों को अवगत कराया गया ताकि आतिथ्य सत्कार से लेकर प्रकृति भ्रमण के समस्त चरणों को दृष्टिगत रखते हुये योजना बनाई जा सके । वर्तमान में वनक्षेत्रों के लिये बनायी जा रही ईकोपर्यटन योजना में सभी घटक परस्पर जुड़े हुये हैं, जिस कारण से योजना के क्रियान्वयन में कठिनाईयां आ रही हैं । अत: प्रयास है कि योजना के प्रत्येक भाग जैसे गंतव्य स्थल विकास, पहुंच मार्ग, अन्य पर्यटन आकर्षण, अधोसंरचनायें, स्थानीय ग्रामवासियों का क्षमता विकास, प्रचार-प्रसार सामग्री की तैयारी एवं आतिथ्य विकास का समावेश योजना में ही किया जा सके ।

 

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