तानसेन समारोह 2008 संगीतकारों ने किया श्रोताओं को मंत्रमुग्ध
ग्वालियर 6 दिसम्बर 08। 5 दिसंबर से 8 दिसंबर 2008 तक ग्वालियर में आयोजित तानसेन संगीत समारोह के दूसरे दिन की पहली संगीत सभा का प्रारंभ प्रात: 9 बजे स्थानीय तानसेन संगीत महाविद्यालय के शिक्षक व छात्र-छात्राओं के धु्रपद गायन से हुआ।
संगीत सभा के प्रथम कलाकार दरभंगा घराने के ख्याति प्राप्त धु्रपद गायक श्री प्रेम कुमार मलिक अपने गायन का प्रारंभ राग ललित से किया। जिसमें आपने नोम -तोम के आलाप बड़े तैयारी के साथ प्रस्तुत किए। आपके गायन में गमक का बड़ा सुंदर समावेश सुनने को मिला। ताल चौताल में निबध्द धु्रपद के बोल ' देखो सखी वृंदावन में मोहन' थे। इसके बाद श्री मलिक ने एक धमार प्रस्तुत किया। जिसके बोल ' श्री गोपाल नंदलाल' थे। उनके लयकारी युक्त गायन को श्रोताओं ने भरपूर सराहा। श्री मलिक ने राग जोगिया की भी एक बंदिश प्रस्तुत की श्री मलिक के साथ पखावज संगत श्री संजय पंत आगले ने की।
प्रात:कालीन संगीत सभा के दूसरे कलाकार श्री विजय सरदेशमुख थे। उन्होंने अपने गायन का प्रारंभ राग बिलासखानी तोड़ी से किया। जिसमें बड़ा ख्याल' नीके घुंघरिया' तथा छोटा ख्याल ' नीके नीके श्शुभ दिन' प्रस्तुत किए। साथ ही इसी राग में उन्होंने एक तराना भी प्रस्तुत किया। सफाई दार तथा दानेदार ताने श्री सरदेशमुख के गायन की विशेषता रही। उन्होंने गायन का समापन कबीर के भजन से किया। श्री विजय सरदेशमुख के साथ तबला संगत श्री दीपक गरुड़ तथा हारमोनियम संगीत ज़मीर हुसैन खाँ ने की। इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए भोपाल से पधारे प्रख्यात वायलिन वादक श्री प्रवीण शिवलीकर ने अपने कार्यक्रम का प्रारंभ राग शुध्द सारंग से किया। गायकी तथा तंत्रकारी दोनों ही शैलियों में निष्णात श्री शिवलीकर ने राग शुध्द सारंग में तीन रचनायें विलंबित, मध्यलय तथा दु्रत रचनायें प्रस्तुत कीं। शुध्द सारंग में दोनों मध्यमों का सुंदर प्रयोग श्रोताओं को अभिभूत कर गया। उन्होंने गमक व मीड का प्रयोग बड़े ही सुंदर ढंग से अपने वादन में किया। श्री प्रवीण शिवलीकर ने अपने वायलिन वादन का समापन प्रसिध्द भजन 'ठुमक चलत रामचंद्र' से किया। आपके साथ तबला संगत श्री हितेंद्र दीक्षित ने की।
द्वितीय संगीत सभा की अंतिम कलाकार जयपुर अतरौली घराने की श्रीमती विजया जाधव गटलेवार थीं। उन्होंने अपने गायन का प्रारंभ राग देवगिरि बिलावल से किया। इस राग में विजया जी ने बड़ा ख्याल 'ए बनावन आया' प्रस्तुत किया। साथ ही इसी राग में उन्होंने एक छोटा ख्याल भी प्रस्तुत किया। अपनी दूसरी प्रस्तुति के रूप में सामंत सारंग राग में विलंबित तीन ताल में ' बाग सिर मोर' तथा छोटा ख्याल तीन ताल में 'दौड़ी जात पिया के मिलन को' प्रस्तुत किया। विजया जी के गायन में आलाप लयकारी युक्त तानों का सुंदर समावेश सधी हुई आवाज में मन को छू गया। श्रीमती विजया जाधव ने अपने गायन का समापन राग भैरवी में निबध्द भजन ' कोई कहिओ रे प्रभु आवन की' प्रस्तुत किया। श्रीमती विजया जाधव गटलेवार के साथ तबला संगत श्री दीपक गरुड़ तथा हारमोनियम संगत श्री मोहन मुंगरे ने की। कार्यक्रम की उद्धोषणा श्री सुनील वैद्य ने की। दोपहर के तीन बजे तक भारी संख्या में संगीत रसिक समाधि स्थल पर संगीत का रसास्वादन करते रहे।
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