स्वास्थ्य की वैश्विक चुनौती का सामना करने के लिए सभी राष्ट्रों के वैज्ञानिक एकजुट हों- -डॉ. सेल्वामूर्ति
डी. आर. डी. ई. में अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन प्रारम्भ
ग्वालियर 15 दिसम्बर 08। रागों की आणविक क्रियान्वयन पर आज रक्षा अनुसंधान तथा विकास संगठन की ग्वालियर स्थित ईकाई में अन्तर्राष्ट्रीय कार्यशाला का शुभारंभ करते हुए विशिष्ट वैज्ञानिक एवं मुख्य नियन्त्रक डॉ. डब्ल्यु सेल्वामूर्ति ने सबके लिये स्वास्थ्य की वैश्विक चुनौती का सभी राष्ट्रों के वैज्ञानिकों से एकजुट होकर हल करने की अपील की। उन्होंने कहा कि रक्षा अनुसंधान तथा विकास संगठन जहां एक तरफ अपने शोध कार्य से देश की सैन्य शक्ति वृध्दि मे सहयोगी भूमिका निभाता है वहीं समाज की भी महती सेवा करता है। उन्होंने आगे कहा कि डी आर डी ओ. की स्थापना वर्ष 1958 में हुई थी और आज संगठन 50 वर्ष पूरे कर रहा है। संगठन ने मांग के अनुसार अनुसंधान एवं विकास कार्य किये, डी आर डी ओ. ने मिसाइल प्रौद्यौगिकी, इलैक्ट्रोनिक्स, जैविक, रासायनिक,राडार तारपीडो आदि क्षेत्रों मे स्वदेशी तकनीक का विकास किया है। भले ही भारत ने कभी भी किसी देश पर आक्रमण नहीं किया परंतु हम अपनी रक्षा हेतु पूरी तरह तैयार एवं आत्मनिर्भर हैं। उन्होंने यह भी बताया कि इस सम्मेलन का विषय विश्व स्वास्थ्य संगठन के लक्ष्य 'सभी के लिए स्वास्थ्य' के अनुरूप है। साथ ही आज की आधुनिक चिकित्सा पध्दति भी पारंपरिक भारतीय स्वदेशी चिकित्सा पध्दति के महत्व को स्वीकार रही है। हमें रोगों के सूक्ष्म कारकोेंं और उपचार विधियों की पड़ताल करते हुए आधुनिक और परंपरागत चिकित्सा प्रणालियों में मानवीय हित के लिये सेतु का भी निर्माण करना है।
उन्होंने कहा शत्रु देश के आक्रमण एवं आतंकवाद के खतरे से देश को बचाने के लिए भी डी आर डी ओ. ने कई प्राद्यौगिकियां विकसित की हैं जिनका प्रयोग सुरक्षा सेनायें आतंकवादियों से निपटने मे करती हैं।
सम्मेलन के उद्धाटन सत्र के विशिष्ठ अतिथि उत्कृष्ट वैज्ञानिक डा. के. शेखर ने इस अवसर पर प्रकाशित स्मारिका का विमोचन किया। कार्यक्रम के प्रारंभ में डी आर डी ई. ग्वालियर के निदेशक डा. आर . विजयराघवन ने अपने स्वागत भाषण में दूर देशों से पधारे वैज्ञानिकों तथा भारतीय वैज्ञानिकों का स्वागत किया तथा सम्मेलन की पृष्ठभूमि पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने सम्मेलन के विषय पर प्रकाश डालते हुए बताया कि रोगों की आण्विक क्रियाविधि जैसे विषय जितना वैज्ञानिकों एवं अनुसंधानकर्ताओ के लिये महत्वपूर्ण है उतने ही समान्य जनमानस के लिए भी। कैंसर, किडनी, मधुमेह, स्नायुतंत्र, पर्यावरण तथा जीवनशैली से जुड़ी समस्याओं एवं बीमारियों के बारे में आधुनिक प्रगति से सम्मेलन के प्रतिभागी परिचित होंगे। सम्मेलन के आयोजन सचिव एवं आयोजक संस्था के संयुक्त संचालक डॉ. एस जे. एस. फ्लोरा ने आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम की शुरूआत अतिथियों ने माँ सरस्वती की प्रतिमां पर माल्यार्पण तथा दीप प्रज्वल्लित कर किया। स्थानीय किडीज कार्नर स्कूल की छात्राओं ने इस अवसर सरस्वती वन्दना प्रस्तुत की। डॉ. पाराशर ने उद्धाटन सत्र के संचालन का दायित्व निर्वहन किया।
उद्धाटन सत्र के उपरांत वैज्ञानिक सत्र प्रारंभ हुये। प्रथम सत्र की अध्यक्षता डॉ. डब्ल्यु. सेल्वामूर्ति तथा प्रो. टी. रोजेमा ने की। इस सत्र में डॉ. विजयराघवन तथा अमेरिका से पधारे प्रो. आर सी. गुप्ता एवं प्रो. माइकल टोबोरेक ने आमंत्रित व्याख्यान दिये।
द्वितीय वैज्ञानिक सत्र में प्रो. एच. सी. पंत, डॉ. रजनी रानी एवं प्रो. महीप भटनागर के व्याख्यान हुये। इस सत्र की अध्यक्षता प्रो. आर सी. गुप्ता एवं डॉ. जी एस लवेकर ने की। सायंकालीन सत्र में प्रो. यू. सी श्रीवास्तव , डॉ. गीतांजली यादव एवं प्रो. जी बी. के प्रसाद, डॉ. जी. फ्लोरा आदि के व्याख्यान हुये।
इसके साथ ही सम्मेलन स्थल पर पोस्टर प्रदर्शनी भी लगायी गयी है जिसमें विभिन्न वैज्ञानिक विषयों पर 50 से अधिक पोस्टर प्रदर्शित किये गये। इनमें से सर्वश्रेष्ठ 03 पोस्टरों को पुरूस्कृत भी किया जायेगा।
उल्लेखनीय है कि इस अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में 200 से अधिक प्रतिभागी भाग ले रहे हैं। जिनमें देश के विभिन्न भागों से पधारे अनुसंधानकर्ता , वैज्ञानिक, डॉक्टर एवं छात्र शामिल हैं। सम्मेलन में अमेरिका, यूक्रेन, हांगकांग, बेलारूस आदि देशों से विख्यात वक्ता एवं विद्वान पधारे हैं।
इस अवसर पर डी आर डी ई के सह निदेशक प्रो. एम पी कौशिक, डॉ. श्रीप्रकाश, डॉ. लोकेन्द्र सिंह के अलावा वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एस के. रजा, डॉ. राहुल भट्टाचार्य, डॉ. एस सी. पंतं, डॉ. एस एन् दुबे भी मौजूद थे।
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