ग्वालियर के पौधों की दिल्ली और राजस्थान में माँग
हमें खेद है मुरैना में भारी बिजली कटौती के कारण इस समाचार के प्रकाशन में विलम्ब हुआ
ग्वालियर 15 जुलाई 09। वन विभाग की नर्सरी में तैयार पौधों की अब दिल्ली और राजस्थान से भी मांग आने लगी है। अनुसंधान एवं विस्तार वृत ग्वालियर के मुख्य वन संरक्षक डॉ. ए के. बिसारिया ने बताया कि कोटा राजस्थान से 3 लाख पौधों की तथा दिल्ली से 50 हजार पौधों की मांग आयी है। वृत के बाहर टीकमगढ़ जिले ने भी 6 लाख पौधे मांगे हैं। राजस्थान और दिल्ली से बड़े साइज में गुलमोहर, अमलतास, बांस और नीम की मांग आयी है। टीकमगढ़, रतनजोत और बांस के पौधे ले रहा है। डॉ. बिसारिया ने आगे बताया कि उनके वृत में तपोवन नर्सरी, छोलयाना भिण्ड, देवरी रोपणी मुरैना, अंगूरी बैराज रोपणी दतिया, केन्ट रोपणी गुना तथा वन विद्यालय शिवपुरी में तीस लाख से भी अधिक पौधे तैयार किये जा चुके हैं। तैयार पौधों में पौलीथीन थैली में आंवला बीजू, बांस, सागौन, शीशम, नीम, करंज, जामुन, सीताफल, करहल, रतनजोत, खम्हेर, बेल, अमरूद, अशोक, चिरहुल, सूबबूल, महुआ, युकोलिप्टिस, इमली, पपीता, नीबू, शोभादार, आम, खैर आदि के अलावा आंवला और महुआ के ग्राफ्टेड पौधे व कई प्रजातियों के 6 से 8 फुट तक के पौधे उपलब्ध है।
पौधा कैसे लगाएं
डॉ. ए के. बिसारिया ने बताया कि समस्त प्रकार के वृक्षों की पौधा रोपण की सामान्य विधि एक समान होती है, जमीन, जल, तापक्रम एवं वातावरण वृक्ष प्रजातियों को प्रभावित करते हैं उदाहरण के लिये ऑंवला काली फटने वाली जमीन, जल भराव क्षेत्र एवं ठण्डे क्षेत्र में कम आता है । पौधा रोपण के लिये सबसे पहले स्थल चयन कर भूमि का प्रकार देखें एवं मिट्टी का परीक्षण कराने के बाद ऊचित वृक्ष प्रजाति का चयन कर रोपण कराना चाहिये ।
जिस स्थान पर रोपण करना है, वहाँ सुरक्षा की पूर्ण व्यवस्था करनी चाहिये, वह जैविक फैसिंग ओर कांटेदार तार या चैन लिंक, ट्री गार्ड आदि किसी से की जावे लेकिन स्थान सुरक्षित होना चाहिये, पौधारोपण से पूर्व सुरक्षा व्यवस्था आवश्यक है । विभिन्न प्रजातियों के लिये पौधों से पौधें की दूरी एवं कतार से कतार की दूरी प्रजाति वार चिन्हाकिंत की जाती है जैसे ऑवला 6न्6 मीटर, आम 8 से 10 मीटर यानी 8न्8 या 10न्10 मीटर, सागवान 2न्2 मीटर, बांस में 5न्5 मीटर की दूरी रखी जाती है । उसी प्रकार चिन्हाकंन कार्य किया जाता है । पौधा लगाने से लगभग एक या दो माह पूर्व गड्डा खुदाई का कार्य करना चाहिये जिससे गर्मी में गड्डा एवं उसकी मिट्टी उपचारित हो जावे ।
डॉ. बिसारिया ने कहा कि सामान्य तौर पर वृक्ष प्रजातियों के लिये मिट्टी के प्रकार के मुताबिक मुलायम मिट्टी में 45न्45 से.मी.कठोर मिट्टी में 60न्60 से.मी. एवं मुरमी एवं पथरीली मिट्टी में 75 से.मी.से 1 मी. के गड्डे खोदना चाहिये । पौधारोपण के समय से 15 से 20 दिन पूर्व गड्डा भराई कार्य कर लेना चाहिये जिससे गड्डे में भरा हुआ मिश्रण अच्छी तरह से सैट हो जाये, ओर रोपण के समय जब पानी देते है, तब मिट्टी नीचे न बैठे, जिससे पौधा डिस्टर्ब ना हो । यदि मिट्टी खराब हो तो बाहर की मिट्टी उपयोग करना चाहिये काली या चटकने वाली (दर्रा वाली) या चिकनी मिट्टी हो तो उसमें रेत मिला लेना चाहिये तथा 2न्2 फुट के गड्डे में लगभग 1 से 1.5 घन फुट रेत डालें। अगर मिट्टी गड्डों की उपयोग योग्य है तो, दो फुट गहरे गड्डे की ऊपर सतह की एक फुट की, मिट्टी एक तरफ एवं एक फुट की मिट्टी दूसरी तरफ गड्डा खोदते समय अलग-अलग रखना चाहिये तथा ऊपरी मिट्टी ऊपर की ओर तथा नीचे की मिट्टी नीचे की ओर भरना चाहिये जिससे केपलरी वाटर सिस्टम जल्दी तैयार हो जाता है । मिट्टी से कंकड़ पत्थर साफ कर लेना चाहिये । यदि मिट्टी बाहर की उपयोग करनी पड़े तब भी गड्डे में उसी जगह की मिट्टी 10-15 प्रतिशत उपयोग करना चाहिये ।
मिट्टी में कीटनाशक दीमक मार दवा एल्ड्रिन 25 प्रतिशत पावडर, लिण्डेन या धनवान, फालीडाल पावडर में से कोई भी कीट एवं दीमक प्रकोप मुताबिक 30 से 50 ग्राम प्रति गड्डे के हिसाब से मिलाना चाहिये । साथ ही गड्डे की दीवालों एवं तली में लगभग 10 ग्राम पावडर छिड़कना चाहिये । हो सके तो गड्डे में लगभग 0.5 किलो से 1 किलो की रूखी सूखी पत्तियां या 2 से 2.5 किलो हरी पत्तियां डालें जिससे दीमक एवं कीटों से बचाव होता है तथा खाद का भी कार्य करती है । बचा हुआ गोबर खाद को तसला(लगभग 15 से 20 किलो) या कम्पोस्ट, या वर्मी कम्पोस्ट 4 से 5 किलो प्रति गड्डा हड्डी चूरा 0.5 से 1 किलो या पुटाश तथा सुपर फास्फेट एक किलो डालना चाहिये ।
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