प्रदेश का पहला इन्जेक्शन सेफ्टी प्रोजेक्ट ग्वालियर चिकित्सा महाविद्यालय को मॉडल इन्जेक्शन प्रोजेक्ट कार्यशाला 5 मार्च को
ग्वालियर 26 फरवरी 09। इन्जेक्शन सेफ्टी के चुनौती पूर्ण कार्य को विस्तार देने के लिए मध्य प्रदेश के एक मात्र मॉडल इन्जेक्शन सेन्टर प्रोजेक्ट का दायित्व जे ए. हॉस्पिटल ग्रुप, गजराराजा चिकित्सा महाविद्यालय ग्वालियर को सौंपा गया है। आई पी ई एन. की सक्रिय पहल पर देश के चिकित्सा महाविद्यालय एवं उनसे संबंधित चिकित्सा इकाईयों में केन्द्र तथा राज्य सरकार के सहयोग से मॉडल इन्जेक्शन सेन्टर्स का नेटवर्क स्थापित किया जा रहा है। देश के 20 राज्यों में ऐसे 25 सेन्टर स्थापित किये गये हैं। जिनमें से एक ग्वालियर के चिकित्सा महाविद्यालय को प्राप्त हुआ है। मॉडल सेन्टर के माध्यम से स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को इन्जेक्शन सेफ्टी के प्रति जागरूक बनाकर प्रशिक्षित किया जा रहा है। चिकित्सा महाविद्यालय के कम्युनिटी मेडीसिन / पी एस एम.विभागाध्यक्ष डॉ. अशोक मिश्रा ने प्रोजेक्ट के संबंध में जानकारी देते हुए बताया कि प्रोजेक्ट के अन्तर्गत जे ए एच. के आउट डोर मेेंं दो मॉडल इन्जेक्शन सेन्टर, फील्ड हैल्थ सेन्टर डबरा में एक, अर्बन हैल्थ सेन्टर ठाठीपुर में एक, कम्युनिटी हैल्थ सेन्टर भितरवार तथा नूराबाद सहित प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र ऑंतरी, बरई, कुलैथ तथा बामौर में एक-एक इस प्रकार चिकित्सा महाविद्यालय एवं उससे सम्बध्द चिकित्सा इकाइंयों मे ग्यारह मॉडल इन्जेक्शन सेन्टर स्थापित किये गये हैं।
इन्जेक्शन लगाने की दिशा में बरती जाने वाली लापरवाही रोकने के लिये मॉडल इन्जेक्शन सेंटर जैसे प्रोजेक्ट काफी सहायक सिध्द होंगे। वर्ष 2000-2002 मे आई पी ई एन. द्वारा किये गये देशव्यापी अध्ययन में इन्जेक्शन लगाने की विधि में 53.1 प्रतिशत को गलत पाया गया और इन्जेक्शन लगाते हुए की जा रही लापरवाही से एच आई व्ही. तथा हैपीटाइटिस जैसे रक्त जन्य वायरस से प्रभावित होने की 31.6 प्रतिशत संभावनाएं उजागर हुईं थी। इस प्रकार देश में असुरक्षित टीकाकरण का बड़ा खतरा उठाया जा रहा था। केन्द्र सरकार ने इस अध्ययन की रिपोर्ट को पूरी गंभीरता से लिया तथा यूनिवर्सल टीकाकरण में शतप्रतिशत ए डी सीरिन्जों का प्रयोग अनिवार्य कर दिया। राज्यों की चिकित्सा इकाईयां भी अब इसे अपनाने लगी हैं। मुख्य चिकित्सा अधिकारी ग्वालियर डॉ. अर्चना शिंगवेकर ने इस संबंध में बताया कि ए डी. सीरिन्ज उपयोग के उपरान्त लॉक हो जाती है व इसका दुबारा उपयोग नहीं किया जा सकता । इस प्रकार संक्रमित रक्त जन्य वायरस के एक व्यक्ति से अन्य व्यक्तियों के संक्रमित होने का खतरा नहीं रहता। अब भविष्य में सभी शासकीय चिकित्सा इकाईयों में भी सिर्फ एडी सीरिंज का उपयोग होने लगेगा ।
इन्जेक्शन सेफ्टी प्रयासों के इतिहास पर दृष्टि डालें तो वर्ष 1985 से पूर्व तक शीशे की अथवा दंत चिकित्सा में स्टील की सीरिंज का उपयोग होता था । सीरिंज और इन्जेक्शन लगाने वाली सुई को स्ट्रलाईजर अथवा किसी बर्तन में उबाल कर बार-बार उपयोग करने का प्रचलन था । तब एक सीरिंज से औसतन 40 इन्जेक्शन लगाये जाते थे और एक सुई का उपयोग दस रोगियों पर किया जाता था । बच्चों को लगने वाले बीसीजी टीकों में एक सुई से पांच बच्चों को इन्जेक्शन देने की हिदायत थी । तब ऑटोक्लेव, ड्रम स्ट्रलाईजर फिर 86-87 से प्रेशर कूकर वाले स्ट्रलाईजरों का भी उपयोग प्रचलन में आ चुका था । वर्ष 1987-88 में प्लास्टिक की बार-बार उपयोग वाली सीरिंज और फिर 1998-99 में एडी सीरिंज का प्रथम बार उपयोग हुआ । लम्बे परीक्षण के उपरांत चिकित्सा क्षेत्र में एडी सीरिंज को पूरी तरह अंगीकार कर लिया गया है। इन्जेशन लगाने के लिये प्रयुक्त सीरिंज के विनिष्टीकरण की दिशा में भी वैज्ञानिक सोच के महत्व को स्वीकारा गया । पर्यावरण की दृष्टि से खुले में विनिष्टीकरण करते हुये एक समय में 100 से अधिक सीरिंज न जलाई जावें । इसी प्रकार गङ्ढा खोदकर अथवा 9-12 इंच के गङ्ढे में छेद वाले गत्ते के डिब्बे में केरोसिन अथवा स्प्रिट का थोड़ा उपयोग कर के इस्तेमाल की जा चुकी एडी सीरिंजों को जलाकर नष्ट किया जा सकता है ।
मॉडल इन्जेक्शन सेन्टर प्रोजेक्ट चिकित्सा महाविद्यालयों की चिकित्सा इकाईयों के माध्यम से इन्जेक्शन सेफ्टी विस्तार का सुदृढ़ संस्थागत मैकेनिज्म तैयार करेगा। साथ ही बॉयो मेडिकल वेस्ट डिस्पोजल के पुख्ता बन्दोबस्त हेतु जिला कचरा प्रबंधन समिति का भी इसमें सक्रिय सहयोग लिया जावेगा।
कार्यशाला 5 को
सुरक्षित इन्जेक्शन पध्दति के विस्तार की दिशा में जागरूकता सन्देश सम्प्रेषण हेतु मॉडल इन्जेक्शन सेन्टर सम्बन्धी एक दिवसीय कार्यशाला गजराराजा चिकित्सा महाविद्यालय के कम्युनिटी मेडीसन तथा पी एस एम. विभाग मे 5 मार्च को होगी। कार्यशाला प्रात: 9 बजे से प्रारंभ होगी। कार्यशाला में सुरक्षित इन्जेक्शन पध्दति,इन्जेक्शन संबंधी कचरे के प्रबंधन तथा समाज मे इसके प्रति जागरूकता विस्तार की रणनीति पर विचार विमर्श होगा।
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