रविवार, 15 फ़रवरी 2009

दीपा बनेगी दुल्‍हन, अभ्‍युदय आश्रम पर आयेगी बारात, विदा होगी ऑसूओं और यादों के साथ

दीपा बनेगी दुल्‍हन, अभ्‍युदय आश्रम पर आयेगी बारात, विदा होगी ऑसूओं और यादों के साथ

विमुक्‍त जाति की महिलाओं की मुक्ति की बगिया में उपलब्धि का एक और पुष्‍प खिला

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

मुरैना 15 फरवरी 09, मुरैना का प्रसिद्ध अभ्‍युदय आश्रम उसका मायका है, रामसनेही धर्म पिता । वह बचपन में अबोध बालिका के रूप में महज चार पॉंच साल की उम्र में इस आश्रम में तब आयी जब उसका मॉं अंगूरी बाई को उसके पिता ने छोड़ कर दूसरी शादी कर ली, उसकी मॉं बेसहारा हो गयी और पारम्‍परिक पेशा वैश्‍यावृत्ति करने के सिवा कोई चारा शेष न बचा, लेकिन अगर ऊपर बैठी उस जगत्‍माता जगदम्‍बा की इच्‍छा कुछ और ही हो तो वह तकदीर की कहानी भी कुछ अलग ही ढंग से लिख देती है । ऐसा ही हुआ अँगूरी बाई के साथ और मुरैना में वर्ष 1992 में जाबालि परियोजना के तहत वैश्‍यावृत्ति उन्‍मूलन के लिये चलाये गये अभियान में खोले गये अभ्‍युदय आश्रम में उसे खाना बनाने वाली की नौकरी मिल गयी, ओर फिर उसे रहने का ठिकाना भी मिला और बेटी दीपा के सुनहरे भविष्‍य का ख्‍वाब और उसकी ताबीर भी ।

चार पॉंच साल की दीपा तब अबोध ही थी जब वह यहॉं अभ्‍युदय आश्रम में आयी । वह यहीं रही, पली पढी लिखी और आगे बढ़ी यहीं रहकर उसने शास.कन्‍या विद्यालय मुरैना से प्रथम श्रेणी में इण्‍टरमीडियेट परीक्षा उत्‍तीर्ण किया और यहीं रहते ही उसने शास.कन्‍या महाविद्यालय मुरैना से इतिहास विषय के साथ बी.ए. किया । अब आजकल वह मुरैना के ही टी.एस.एस. महाविद्यालय से समाजशास्‍त्र में एम.ए. कर रही है । साथ ही वह म.प्र. शासन के खेल एवं युवक कल्‍याण विभाग में जिला समन्‍वयक के पद पर बिजावर जिला छतरपुर में पदस्‍थ है । उसने कम्‍प्‍यूटर में भी डिप्‍लोमा पाठयक्रम उत्‍तीर्ण किया है ।

यह दीपा एक ऐसे समाज और पारिवारिक पृष्‍ठभूमि से ताल्‍लुक रखती है जिसमें वैश्‍यावृत्ति करना न केवल पारम्‍परिक व्‍यवसाय है बल्कि गौरव की बात समझी जाती है । अन्‍य समाज के लोग जहॉं पुत्री के जन्‍म पर कुपित होकर कन्‍या भ्रूणों को गर्भ में ही या गर्भ से बाहर आने के बाद मारते आये हैं वहीं दीपा के समाज में इसके ठीक उलट कहानी चलती आयी है । वहॉं पुत्री के जन्‍म पर खुशियां मनायीं जाती हैं और एक बेटी की कीमत पर एक कुटुम्‍ब का रोजगार या धन्‍धा मुकम्‍मल हुआ ऐसा माना जाता रहा है ।

दीपा को हालांकि शुरू से ही अभ्‍युदय आश्रम की छॉव तले एक सुरक्षित आसरा मिल गया और वह ऐसे सभी कुरीतियों और परम्‍परागत दुर्व्‍यवसायों से परे स्‍वत: ही हो गयी । और पढ़ लिख कर एक सभ्‍य और प्रतिष्ठित जीवन जीने के काबिल होकर खुद के पैरों पर खड़ी हो गयी ।

अब दीपा अभ्‍युदय आश्रम से 19 फरवरी को विदा होने जा रही है, उसका विधिवत विवाह होने जा रहा है, और दाम्‍पत्‍य जीवन में प्रवेश करने जा रही हैं । आने वली 19 फरवरी को दीपा का विवाह अम्‍बाह के अभिषेक टुटु के साथ होने जा रहा है और 20 फरवरी को उसकी डोली अपने पति के घर जाने के साथ वह अभ्‍युदय आश्रम से विदा हो जायेगी । हमने दीपा से और अभ्‍युदय आश्रम के प्रसिद्ध संस्‍थापक और समाजसेवी रामसनेही से इस सम्‍बन्‍ध में बातचीत की ।

दीपा ने अपने जीवन के इस काया कल्‍प के लिये सबसे पहले रामसनेही को और अपनी मॉं अंगूरी बाई को पूरा श्रेय देते हुये तहे दिल से उनका शुक्रिया अदा किया ।

दीपा से जब हमने पूछा कि भई दीपा कैसा फील कर ही हो तो वह कुछ शर्माते सकुचाते हुये जमीन पर अपना पॉंव के अँगूठे का नाखून चलाते हुये शर्म से लाल चेहरे और झुकी नजरों से जमीन ताकती सी रह गयी । हमने उसकी कठिनाई भांपते हुये सवाल को घुमा कर पूछा कि अगर इतने वर्ष अपने मायके में (अभ्‍युदय आश्रम ) रहकर एकदम से जाओगी तो कैसा लगेगा । वह बोल कि बहुत बुरा लगेगा सर, बहुत दुख होगा सबकी याद आयेगी, हमने अपनी बात बढ़ाते हुये कहा लेकिन कुछ खुशी भी तो होगी आखिर अब नया घर मिलेगा अपने पति का घर तो दीपा बोली हॉं सर होगी । हमने कहा होगी या है । तो वह मुस्‍करा कर रह गयी ।

हमने पूछा कि कभी कभार अपने मायके आश्रम में आओगी कि नहीं, वह उलट कर सवाल पूछते बोली कि क्‍या कृष्‍ण जी ने यशोदा मैया को या गोकुल को भुलाया क्‍या, मेरा तो लालन पालन शिक्षा दीक्षा सब कुछ यही हुयी है मेरा इस आश्रम से नाता कभी नहीं टूट सकता । मैं यहॉं बार बार आऊंगी ।

मैं चाहती हूँ कि मेरे समाज में भी सभी लड़कियां सिर उठा कर सम्‍मान से जीना सीखें । गलत रास्‍ते की ओर गलत धन्‍धे की ओर न जायें । मैं ऐसी सब लड़कियों की हमेशा मदद करूंगी । उन्‍हें अपने पैरों पर खड़ा होने और सम्‍मानजनक जीवन जीने के लिये सदा प्रेरित करूंगी ।

दीपा ने बताया कि उसने अब तक खेलों में भी कई करिश्‍माई प्रदर्शन किये हैं और राज्‍य स्‍तरीय 60 से अधिक, राष्‍ट्रीय 4, तथा 3 विश्‍वविद्यालयीन प्रमाणपत्र व पुरूस्‍कार खेलों के लिये प्राप्‍त किये हैं । दीपा की गौरव गाथा वर्णित करते करते रामसनेही की बूढ़ी ऑंखों में बरबस ही चमक आ जाती है । उल्‍लेखनीय है कि रामसनेही काफी वृद्ध हो चुके हैं उनकी उम्र 76 वर्ष से ऊपर होकर स्‍वास्‍थ्‍य भी ठीक नहीं चल रहा है । रामसनेही को स्‍वयं को भी कई पुरूस्‍कार व सम्‍मान समाजसेवा के लिये मिल चुके हैं ।

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