आपदा प्रबन्धन पर कार्यशाला सम्पन्न , आपदा प्रबंधन में डॉक्टरों की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका
ग्वालियर 30 मार्च 09। आज जी. आर. मेडीकल कॉलेज के फिजियोलॉजी लेक्चर ऑडिटोरियम में '' आपदा प्रबन्धन-चुनौतियाँ एवं रणनीति'' विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला को विषय विशेषज्ञों ने सम्बोधित किया। कार्यशाला में चिकित्सकों के अलावा स्नातक एवं स्नातकोत्तर छात्र भी मौजूद थे। इस अवसर पर कार्यक्रम की मुख्य अतिथि जी. आर. मेडीकल कॉलेज की अधिष्ठाता डॉ. शैला सप्रे ने कहा कि आपदा प्रबंधन पर कार्यशाला के माध्यम से रणनीति तैयार करना एक सराहनीय प्रयास है। आपदा प्रबंधन में डाक्टर की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। विपत्ति आने पर सबसे पहले पीड़ितों को प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध कराना पड़ती है। आपदा प्रबंधन में घटना घटित होने के कई माह बाद भी इलाज का काम चलता रहता है। उन्होंने कहा कि जी. आर. मेडीकल कॉलेज परिसर में ट्रामा सेण्टर के पास आपदा प्रबंधन के लिये स्थान सुरक्षित कर दिया गया है।
इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. ए के. गोविला ने कहा कि आपदा प्रबंधन राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय एजेन्सियों और प्रशासन के लिये गम्भीर चुनौती का विषय है। जन समुदाय, संगठन, साधन और प्रशासन के सहयोग से किसी भी चुनौती का सामना किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि बाढ़, सूखा, दुर्धटना, रासायनिक दुर्घटना, चक्रवात आपदा की श्रेणी में आते हैं। आपदा के समय भोजन, वस्त्र, आश्रय और इलाज की सर्वाधिक आवश्यकता पड़ती है। उन्होंने कहा कि आपदा प्रबंधन के लिये राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में तथा राज्य स्तर पर मुख्य सचिव और जिला स्तर पर कलेक्टर की अध्यक्षता में समिति का गठन किया गया है।
उन्होंने कहा कि आपदा के समय रंगों का विशेष महत्व है- लाल रंग सर्वाधिक प्राथमिकता को दर्शाता है तथा हरा रंग चिकित्सा सहायता का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि भूकम्प और बाढ़ के बाद हैजा और टाइफाइड जैसी कई बीमारियाँ जन्म लेती हैं।
इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ जुगलकिशोर, नई दिल्ली ने कहा कि प्राकृतिक आपदा में जनधन की भारी हानि होती है। अत: पहले से ही कार्य योजना तैयार करके संभावी संकट का डटकर मुकाबला करना चाहिये। यह प्राकतिक आपदा बीमारी विकलांगता, पर्यावरण प्रदूषण, महामारी और जल प्रदूषण लेकर आता है। प्राकृतिक आपदा से भारी पैमाने पर मृत्यु और विकलांगता आती है। इसके अलावा प्राकृतिक आपदा बाढ़-भूकम्प से जल प्रदूषण के कारण हैजा और बाढ़ के कारण मलेरिया व्यापक पैमाने पर फैलता है। इन आपदाओं का असर कम से कम 2 सप्ताह, अधिक से अधिक 6 माह तक रहता है। बाढ़, भूकम्प और सूखा के समय चिकित्सा की सर्वाधिक आवश्यकता होती है। प्रशासन को पानी, इलाज, भोजन, साफसफाई, कीटनाशकों का छिड़काव की जरूरत पड़ती है।
उन्होंने कहा कि आजकल आतंकवाद भी विश्वव्यापी महामारी का रूप ले रहा है। निर्दोषों में आतंक पैदा करना ही आतंकवाद है। इस अवसर पर दिल्ली से पधारे राष्ट्रीय प्रबंधन संस्थान के प्रोफेसर अनिल कुमार गुप्ता ने कहा कि आपदा प्रबंधन एक अन्तराष्ट्रीय मामला है, इससे निपटने के लिये चिकित्सकों की भूमिका महत्वपूर्ण है। देश में सर्वाधिक रासायनिक दुर्घटनायें हुईं हैं। देश के कुल 602 जिलों में 170 जिलों में पाँच से अधिक रासायनिक उद्योग हैं। 1984 की भोपाल गैस त्रासदी एक रासायनिक दुर्घटना थी, जिसमें हजारों लोग मारे गये थे।
उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में मौसम में भारी बदलाव आया है जिसके कारण नई बीमारियौं पैदा हो रहीं हैं, जिनका इलाज करना चिकित्सा विज्ञान के लिये चुनौती बन गया है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन की कार्य योजनाओं और सतर्कता के कारण पिछले 30 वर्षों में दुर्घटना व मृत्यु दर में 30 प्रतिशत की कमी आई है, जबकि प्राकृतिक दुर्घटना में 4 गुना की वृध्दि हुई है। उन्होंने कहा प्राकृतिक आपदा के समय स्थानीय व्यक्ति की सबसे महत्वपूर्ण होता है। जिला प्रशासन का प्रत्येक विभाग आपदा का सामना करने के लिये जिम्मेदार ठहराया गया है। प्रत्येक विभाग अपने बजट का 2 प्रतिशत आपदा प्रबंधन पर खर्च कर सकते हैं।
इस अवसर पर जी. आर. मेडीकल कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. समीर गुप्ता ने कहा कि आपदा प्रबंधन का सामना करने के लिये सामूहिक प्रयास जरूरी है। इस काम में स्वयंसेवी संस्थाओं की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। बाढ़, सूखा, भूकम्प आदि का हम आधुनिक तकनीक बेहतर प्रबंधन, संचार संसाधन और परिवहन के साधनों से चुनौती का मुकाबला किया जा सकता है। ऐसे अवसर पर नौजवानों का सहयोग और जीवन रक्षक दवाओं का उपयोग तथा दूरस्थ इलाके में यदि घटना होती है तो वहीं पर शिविर अस्पताल लगाकर चुनौती का सामना प्रभावकारी ढंग से किया जा सकता है।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. सस्मिता मूंगी ने किया। कार्यक्रम के दौरान छात्रों ने अतिथियों से बारबार प्रश्न पूछकर कार्यक्रम को रोचक बना दिया।
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