रविवार, 30 नवंबर 2008

उत्‍तम वाणी, सत्‍य वचन, धीर गंभीर मृदु वाक्‍य

उत्‍तम वाणी, सत्‍य वचन, धीर गंभीर मृदु वाक्‍य

मनुष्‍य को सदा उत्‍तम वाणी अर्थात श्रेष्‍ठ लहजे में बात करना चाहिये, और सत्‍य वचन बोलना चाहिये, संयमित बोलना, मितभाषी होना अर्थात कम बोलने वाला मनुष्‍य सदा सर्वत्र सम्‍मानित व सुपूज्‍य होता है । कारण यह कि प्रत्‍येक मनुष्‍य के पास सत्‍य का कोष (कोटा) सीमित ही होता है और शुरू में इस कोष (कोटा) के बने रहने तक वह सत्‍य बोलता ही है, किन्‍तु अधिक बोलने वाले मनुष्‍य सत्‍य का संचित कोष समाप्‍त हो जाने के बाद भी बोलते रहते हैं, तो कुछ न सूझने पर झूठ बोलना शुरू कर देते हैं, जिससे वे विसंगतियों और उपहास के पात्र होकर अपमानित व निन्‍दनीय हो अलोकप्रिय हो जाते हैं । अत: वहीं तक बोलना जारी रखो जहॉं तक सत्‍य का संचित कोष आपके पास है । धीर गंभीर और मृदु (मधुर ) वाक्‍य बोलना एक कला है जो संस्‍कारों से और अभ्‍यास से स्‍वत: आती है ।  

 

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