राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय :  कृषि तथा  संबध्द विषयों में शिक्षा का अभिनव केन्द्र 
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ग्वालियर 27 मई 09। गालव ऋषि की नगरी ग्वालियर में प्रदेश के प्रथम कृषि विद्यालय की  स्थापना वर्ष 1950 में हुई थी । गत वर्ष कृषि तथा संबध्द  विषयों में शिक्षा, अनुसंधान एवं प्रसार को अग्रसर करने  तथा उनसे आनुषंगिक अन्य विषयों की व्यवस्था करने   के लिए मध्यप्रदेश शासन ने ग्वालियर कृषि विश्वविद्यालय अध्यादेश 2008  के द्वारा नवीन कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना ग्वालियर में है ।  ग्वालियर कृषि विश्वविद्यालय अध्यादेश के स्थान पर राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि  विश्वविद्यालय अधिनियम 2009 (क्रमांक 4, सन् 2009) दिनांक 12 फरवरी  2009 से अधिसूचना जारी की गयी है । प्रदेश के जवाहरलाल  नेहरू कृषि विश्वविद्यालय का विभाजन कर दोनों   कृषि विश्वविद्यालय के क्षेत्राधिकार में 25-25  जिलो को निर्धारित किया गया है ।
       विश्वविद्यालय के कार्यक्षेत्र के अर्न्तगत चार कृषि महाविद्यालय ग्वालियर, सीहोर, इंदौर एवं खंडवा, एक उद्यानिकी महाविद्यालय  मंदसौर एवं एक पशुचिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, महू के साथ ही पाँच जोनल कृषि  अनुसंधान केन्द्र (मुरैना, खरगौन, झाबुआ, कृषि महाविद्यालय सीहोर एवं  इंदौर),  चार क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केन्द्र (उज्जैन, मंदसौर, खंडवा एवं कृषि महाविद्यालय  ग्वालियर),  तीन उपकृषि अनुसंधान केन्द्र क्रमश: कृषि अनुसंधान केन्द  बागवई (ग्वालियर,) फल अनुसंधान केन्द्र, ईंटखेड़ी (भोपाल) उद्यानिकी  अनुसंधान केन्द्र जावरा (रतलाम) तथा उन्नत तकनीकी के हस्तांतरण हेतु 19 कृषि विज्ञान केन्द्र क्रमश:  झाबुआ,  आरोन (गुना), राजगढ़, खंडवा, ग्वालियर, खरगौन,धार, भिंड, उज्जैन, शाजापुर, मंदसौर, श्योपुर, शिवपुरी,अशोकनगर, दतिया, बड़वानी, नीमच, देवास, मुरैना कार्यरत हैं । प्रदेश  के छ: कृषि जलवायु क्षेत्र गिर्द, बुदेलखंड, मालवा पठार, झाबुआ पहाड़ी, निमाड़ घाटी तथा विंध्य पठार  विश्वविद्यालय के कव्हरेज अन्तर्गत आते हैं 1 
       विश्वविद्यालय क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत राज्य के नागरिकों, ग्रामीणों के जीविकोपार्जन  हेतु कृषि शिक्षा, अनुसंधान एवं विस्तार  गतिविधियों के माध्यम से फसलों एवं अन्य कृषिगत साधनों वृध्दि कर खेती को टिकाऊ  एवं लाभप्रद बनाना कृषि विश्वविद्यालय का लक्ष्य है ।
       विश्वविद्यालय के द्वारा स्नातक पाठयक्रम में कृषि, उद्यानिकी तथा पशु चिकित्सा  एवं पशुपालन विषयों में क्रमश: 308,56, एवं 77 छात्र - छात्राओं को प्रवेश  दिया जाता है । इन पाठयक्रमों मे व्यापम द्वारा पी. ए. टी.एवं पी.एम.टी.परीक्षाओं  के साथ ही आई. सी. ए. आर. आई. वी. सी .एवं एनआरआई के माध्यम से छात्र -छात्राओं को  प्रवेश दिए जाते हैं।
       विश्वविद्यालय द्वारा कृषि संकाय के अन्तर्गत आठ, उद्यानिकी, के अन्तर्गत छ: तथा पशु  चिकित्सा एवं पशुपालन  के अन्तर्गत ग्यारह  विषयों में स्नातकोत्तर कार्यक्रम चलाऐ जा रहे है । जिसमें कृषि, उद्यानिकी तथा पशु चिकित्सा  एवं पशुपालन विषयों में क्रमश: 186,21 एवं 65 छात्र-छात्राओं को प्रवेश  दिया जाता है । 
       कृषि संकाय के अनतर्गत कृषि अर्थशास्त्र एवं प्रक्षेत्र प्रबंधन, कृषि अभियांत्रिकी, शस्य विज्ञान, जैव प्रोद्यौगिकी, कीट विज्ञान, प्रसार शिक्षा एवं ग्रामीण  प्रबंधन,  खाद्य विज्ञान एवं तकनीकी, उद्यानिकी एवं वानिकी, पादप प्रजनन एवं अनुवांशिकी, पादप रोग विज्ञान, मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन, पादप कार्य की विज्ञान, पशुपालन एवं पशु चिकित्सा  विज्ञान आदि के अन्तर्गत अध्यापन, अनुसंधान एवं सम्पूर्ण कृषि  तकनीक प्रसार का कार्य वर्तमान में विश्वविद्यालय द्वारा किया जा रहा है ।
       उद्यानिकी महाविद्यालय, मंदसौर में उद्यानिकी विषयों  के छ: विभाग (फ्लोरीकल्चर एवं लैण्डस्केपिंग, फल विज्ञान, मेडीसीनल एवं एरोमेटिक  क्रॉप्स,  प्लान्टेशन एवं स्पाइसिस क्रॉप्स, पोस्ट हारवेस्ट मैनेजमेंट एवं  सब्जी विज्ञान) सृजित हैं जिनके माध्यम से शिक्षण कार्य सुचारू रूप से किया  जा रहा है ।
       इसी प्रकार से पशु संकाय के अन्तर्गत शरीर रचना एवं ऊतिकी विज्ञान, पशु प्रजनन एवं अनुवांशिकी  विज्ञान,  पशु पोषण एवं आहार तकनीकी विज्ञान, व्याधि विज्ञान, पशु महामारी शास्त्र एवं पशु  रोग निवारण औषधी विभाग, पशु औषधि विभाग, पशु उत्पादन एवं प्रबंधन, पशु उतपदन तकनीकी, पशु प्रजनन एवं प्रसूति, कुक्कुट विज्ञान, पशु भौषिक एवं विषाक्त, पशु शरीर क्रिया, पशु शल्य चिकित्सा एवं क्षय  विकिरण,  पशु लोक स्वास्थ्य एवं महामारी विज्ञान, जीव रसायन विज्ञान, सूक्ष्म जीवाणु विज्ञान, प्रसार शिक्षा आदि विभागों के  माध्यम से कृषि शिक्षा, अनुसंधान कार्य एवं प्रसार  का कार्य सुचारू रूप से संपादित किया जा रहा है ।
       इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विश्वविद्यालय में अनुभवी प्राध्यापक/वैज्ञानिक  कार्यरत हैं,  जिन्होनें अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर अनुसंधान  एवं अन्य शोघ कार्य प्रकाशित किये हैं ।






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