जैव विविधता को सहेजने से ही मानव जीवन का अस्तित्व रह पायेगा
अन्तर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस पर वक्ताओं के विचार
ग्वालियर, 22 मई /09 जिला पंचायत कार्यालय के सभागार में आज यहाँ अन्तर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें जैव विविधता एवं आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ विषय पर मुख्य वक्ताओं द्वारा विस्तार से जैव विविधता की जानकारी दी गई । मुख्य वक्ता जीवाजी विश्व विद्यालय के सेवा निवृत्त वाइस चांसलर श्री आर. आर.दास एवं वनस्पति शास्त्र के विभागाध्यक्ष श्री ए.के.जैन थे । इस अवसर पर जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी श्री विनोद शर्मा, जनप्रतिनिधि, स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि, अधिकारी एवं कर्मचारी उपस्थित थे ।
संगोष्ठी में जीवाजी विश्व विद्यालय के सेवा निवृत्त वाइस चांसलर श्री दास ने कहा कि वर्तमान में मानव जीवन खतरे में है । इसलिये जैव विविधता के महत्व को समझना आवश्यक है । जैव विविधता क्या हे ? इस पर प्रकाश डालते हुये उन्होंने बताया कि पूरे ब्रम्हाण्ड में साम्यता नहीं है, इसमें विविधता है । यदि विविधता नहीं होगी तो संतुलन समाप्त हो जायेगा । यह नैसर्गिक गुण है, इसके बिना अस्तित्व संभव नहीं है । उन्होंने कश्मीर से कन्या कुमारी तक यात्रा करने का उदाहरण देते हुये बताया कि इस बीच अनेक नदियाँ, पहाड़, मिट्टी, वनस्पतियॉ, जीव जन्तु आदि विविधता देखने को मिलती है । इसी को जैव विविधता कहते हैं। उन्होंने बताया कि जीव वह है, जो पर्यावरण में रहता है तथा उसको पर्यावरण से अलग करते ही वह जीव मर जाता है । जैसे - मछली को पानी से अलग करने पर एवं पृथ्वी पर चलने वाले जीवों को पानी में डालने पर वे मर जाते हैं । अत: यह कह सकते है कि पर्यावरण जीव का अभिन्न अंग है ।
श्री दास ने कहा कि बायो टेक्नोलॉजी का उपयोग मानव पहले से ही करता आ रहा है । क्योकि भोजन के लिये पूरी तरह जंगलों पर निर्भर था । उन्होंने कहा कि जैव विविधता को मनुष्य ने कम किया है । कृषि की अनेक प्रजातियाँ विलुप्त हो गई हैं । यह जीवन पद्वति में बदलाव के कारण हुआ है । उन्होंने कहा कि जैव विविधता के क्षरण से जीवन कठिन हुआ है । अनेक विदेशी वानस्पितिक प्रजातियों ने हमारी उपयोगी वनस्पितियों को नष्ट कर दिया है। बिलायती बबूल बीहड़ रोकने के लिये लगाया गया लेकिन बीहड़ नहीं रूके और अन्य वनस्पति नष्ट हो गई । इसी प्रकार स्थानीय केचुएँ नष्ट हो गये । अब विदेशी केंचुए लाये जा रहे हें । यह समय बतायेगा कि ये केंचुए कितने उपयोगी साबित होंगे । श्री दास ने कहा कि जैव विवधता का शोषण एवं दोहन न करे तथा प्रकृति ने हमें जो कुछ दिया है, उसे संतुलित कर सुरक्षित रखे ।
श्री दास ने कहा कि प्रत्येक पौधे में औषधीय गुण है तथा पूरा विश्व औषधियों के लिये भारत की ओर देख रहा है । ग्लोबल वार्मिंग के संबंध में उन्होंने कहा कि बर्फ किस कारण पिघल रही है, यह जानना आवश्यक है । उन्होंने कहा कि ध्रुव भी अपनी जगह पर स्थिर नहीं हें तथा उत्तरी ध्रुव अपनी जगह से हट रहा है । हिमालय की ऊँचाई बढ़ रही है । इसलिये अपने पर्यावरण को पहचानें, विविधताओं को संरक्षित करें, तभी मानव जाति सुरक्षित रह पायेगी ।
जीवाजी विश्व विद्यालय के वनस्पति शास्त्र के विभागाध्यक्ष श्री ए.के.जैन ने कहा कि बीहड़ों की जैव विविधता अनूठी है तथा स्वयं उन्होंने इसे जानने का प्रयास किया । उन्होंने बताया कि हमारे देश में विशाल जैव विविधता है । फूल देने वाले पौधों की 18 हजार जातियाँ तथा इनकी लाखों प्रजातियाँ है । उन्होंने कहा कि जंगलों में निवास करने वाले आदिवासियों की बुद्वि विलक्षण है । उन्हे हजारों पौधों की जानकारी है, जिनमें औषधीय गुण हैं । इन पौधों का दस्तावेजीकरण होना चाहिये तथा इसके प्रयास आरंभ हो चुके है । उन्होंने बताया कि चावल की देश में 30 हजार किस्तें पाई जाती थी, जिसमें अब कमी आई है । कई किस्में विलुप्त हो चुकी हैं । श्री जैन ने कहा कि देश में अनेक व्रत त्यौहार होते हें, जिसमें वृक्षों की पूजा की जाती है, इसका संबंध भी जैव विविधता से है । उन्होंने कहा कि आदिवासियों के कुल गोत्र वृक्ष एवं पशु पक्षियों के नाम पर होते हैं । इसलिये वे इन्हें हानि नहीं पहुँचाते है । आदिवासियों द्वारा किसी वनोपज की तुडाई निश्चित समय पर की जाती हे । यदि किसी के द्वारा समय से पूर्व ऐसा किया गया तो उस व्यक्ति को समाज से अलग कर देने की भी परंपरा है । श्री जैन ने बताया कि 450 वानस्पितिक प्रजातियाँ ऐसी हैं ,जिनका उपयोग आदिवासी खाने में करते हैं, लेकिन इन प्रजातियों का अस्तित्व अब संकट में है । ग्वालियर एवं चंबल संभाग में 20 प्रजातियाँ विलुप्त होने की कगार पर हैं । इनमें कलिहारी एवं करेंच प्रमुख हैं । जो लाभकारी है । इसी प्रकार झाबुआ में होने वाला स्वर्ण पलाश संकटग्रस्त है ।
उन्होंने कहा कि एक पोंधे के पास दूसरी प्रजाति का पौधा लगाने से उसकी वृद्वि होती है । यह जानकारी भी होना चाहिये । यदि जैव विविधता का ज्ञान लुप्त हो गया, तो कभी नही मिलेगा । आदिवासियों को विश्वास में लेकर उनसे अधिक पोंधो के औषधीय गुणों की जानकारी ली जा सकती है । नहीं तो यह ज्ञान लुप्त हो जायेगा ।
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