जाते जाते कई जख्म चम्बल की छाती पर छोड़ गया चुनाव, उपजे कई सवाल भी
चुनाव चर्चा – 6
नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''
खैर मतदान और पुनर्मतदान जैसी क्रियाओं के संपन्न होने के बाद मतदाताओं का रोल तो लगभग समाप्त हो गया । और चन्द दिनों का मतदाताओं का नेताओं पर राज भी खत्म हो गया । अबकी बार के चुनाव में मतदाताओं ने नेताओं के खिलाफ अन्दरूनी आक्रोश को सही या गलत सभी तरीकों से प्रकट करने में भी कोई कोर कसर नहीं रखी । जूता चप्पलों से लेकर गरियाने और पोलिंग का बहिष्कार करने तक मतदाताओं के बूते में जो भी था किया ।
जूता चप्पल फिंकाई काण्ड
जार्ज बुश पर जूते फिंकने के बाद तो जैसे नेताओं पर जूता चप्पल की फिंकाई की बौछार आम ही हो गयी । मानो ईराक के पत्रकार ने विश्व के सभी पत्रकारों को कलम और कम्प्यूटर चलाने से आगे जाकर चप्पल जूता चलाना सिखा कर विश्व के पत्रकारों का नेतृत्व संभाल लिया हो । इसके बाद पत्रकारो से जनता ने और राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं से सबक लिया तथा परम्परा को आगे बढ़ाया तथा चन्द और नेताओं की जूता पूजा कर दी । हमारे एक साहित्यकार मित्र ने तो बाकायदा अपने व्यंग्य लेख में जूता संहिता के निर्माण की सलाह दे डाली । म.प्र. के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने तो पत्रकार वार्ताओं में पत्रकारों से मजाक ही में सही जूते चप्पल बाहर उतारने के अनुरोध कर लिये
जूता चप्पल काण्ड में एक विशेष बात और विशिष्ट संयोग है ( यह हमारी रिसर्च है भईया) वह यह कि जिन नेताओं के नाम में कहीं न कहीं अक्षर 'ज' आया उन पर तो जूता फिंका, और जिनके नाम में कहीं अक्षर 'च' आया उन पर चप्पल फिंकी, तथा जिनके नाम में कहीं अक्षर 'ड' आया उन पर खडाऊं फिंकी एवं जिनके नाम में इन तीन अक्षर च, ज या ड में से कुछ नहीं आया उन पर या तो न जूते फिंके न चप्पल न खडाऊं और जबरदस्ती किसी ने फेंके भी तो मंच तक ही नहीं पहुँच पाया अर्थात रास्ते में ही इण्टरनेट के डाटा पैकेटों की तरह ड्राप हो गये ।
हमारी इस रिसर्च के मुताबिक अब भई जिन नेताओं के नाम में कहीं ज, च या ड नहीं आता उन्हें डरने की जरूरत नहीं है । लेकिन जिनके नाम में ये तीन में से काई अक्षर है वे जरूर डरें उन पर अभी नहीं तो आगे कभी भी हमला हो सकता है ।
वैसे तो नेताओं काटाइम केवल इलेक्शन पीरियड में ही खराब आता है बकाया टाइम तो जनता और पत्रकारों का ही खराब चलता है । और जूते ख्प्पल खडाऊं पॉंच साल तक जनता और मतदाताओं में नेता लोग भिगो भिगो कर मारते हैं ।
उम्मीद है अगले चुनाव तक जूता चप्पल खडाऊं थोड़ी उन्नति कर लेंगें और जन आक्रोश व्यक्त करने के लिये अपने अधिक सुधरे रूप में सामने आयेंगे ।
नेता कितना भी गिरा दिया जाये, कितना भी जूता से ठोका जाये आखिर असल नेता तो वही है जो अपना पिछवाड़ा झड़ा कर फिर खड़ा हो जायेगा और कहे कि अबकी फिर मारना तो ।
जनता और मतदाता को गुलाम मानने वाले नेता लोग चन्द जूतों चप्पलों से नहीं सुधरने वाले । सारे देश के जूते भी उन पर पटक दिये जायें तो भी वे मुस्कराते ही रहेंगे । वे देश का नेतृत्व ही करते रहेंगे ।
जारी ....






कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें