गुरुवार, 6 नवंबर 2008

कृषकों के लिए अत्यन्त लाभकारी है - मशरूम की खेती -डाँ.बृजनाथ सिंह

कृषकों के लिए अत्यन्त लाभकारी है - मशरूम की खेती -डाँ.बृजनाथ सिंह

ग्वालियर, 5 नवम्बर 08/ सामान्यजन गन्दगी वाली विषैली कुकुरमुत्ते को मशरूम मानते हैं । मगर खाने वाला मशरूम का कृत्रिम बीज होता है,जिसे स्पान कहते हैं तथा यह खेतों में पैदा किया जाता है तथा यह विषैला नहीं होता बल्कि स्वादिष्ट शाकाहारी भोज्य पदार्थ हैं । इसकी खेती करके किसान मालामाल हो सकते हैं क्योंकि इसमें 4 से 6 गुना लाभ प्राप्त होता हैं । दरअसल, मशरूम एक खरा सोना है ।

 मशरूम स्वादिष्ट होने के साथ-साथ कई बीमारियों से मनुष्य की रक्षा भी करता हैं, जैसे-कैंसर,ब्लड प्रेशर, हाइपरटेंशन, डाइबिटिज, हृदय रोग आदि । यह एक कवक है तथा इसमें क्लोरोफिल न होने के कारण इसका रंग सफेद, क्रीमी तथा स्लेटी होता है । इसमें सोडियम, कोलेस्ट्राल और चबीं बिल्कुल नहीं होती । इसमें लगभग सभी खनिज और विटामिन पाये जाते हैं । यह मनुष्य को कुपोषण, खून की कमी दूर करेगा तथा मोटापे से भी बचाता है । मशरूम किसी स्वास्थय -वर्धक टॉनिक से कम नहीं है । मशरूम का बीज नहीं होता । यह गेहूं और ज्वार के बीज से वै­ज्ञानिक क्रिया से पैदा किया जाता है तथा बोतल या प्लास्टिक की थैलियों में इसके बीज बिकते हैं,  जो लगभग 30 रू. प्रति बोतल की दर से बिकते है ।

मशरूम की खेती गेहूँ ज्वार या सोयाबीन के भूसे पर की जाती है । इसकी फसल 30 दिन में तैयार हो जाती है तथा अगले 30 दिन तक इसकी 3-4 दिन के अन्तराल पर कटाई की जा सकती है । पहले इसकी खेती पहाड़ों में ही होती थी, मगर वैज्ञानिक शोध के उपरान्त नई किस्में विकसित की गई हैं तथा अब इसकी खेती पूरे वर्ष भर देश के किसी भी भाग में की जा सकती है । मशरूम की मांग बहुत है मगर पूर्ति नहीं हो पा रही है । यह लगभग 150 रू. प्रति कि.ग्रा. बिकता है ।

       विश्व में सर्वप्रथम 1715 में फ्रांस में लुई (चौदहवें) के शासनकाल मशरूम की खेती शुरू हुई । भारत मं इसे 1950 में खाद्य पदार्थ का दर्जा दिया गया । 1960 में हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिले में इसकी खेती शुरू हुई और सन् 1961 में इसका वाणिज्यिक उत्पादन शुरू हुआ । तदुपरान्त 1963 में भारत सरकार द्वारा हिमाचल प्रदेश के चम्बा और सोलन जिले में मशरूम शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना की गई । हमारे देश में 7.96 लाख टन प्रति वर्ष मशरूम का उत्पादन हो रहा है । मशरूम की विश्व में कुल लगभग 40 हजार प्रजातियां है । मात्र 2 हजार प्रजातियां की खाने योग्य होती है । प्राकृतिक रूप से उपजे मशरूम विषैले होने के कारण खाने योग्य नहीं होते ।मशरूम की विभिन्न प्रजातियों की खेती अलग-अलग भौगोलिक स्थिति में अलग-अलग समय में होती है । मध्यप्रदेश में भोपाल, जबलपुर, इन्दौर के आस-पास इसकी खेती होती है ।

 

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