शुक्रवार, 6 मार्च 2009

लाभदायी है खेती मशरूम की

लाभदायी है खेती मशरूम की

ग्वालियर, 3 मार्च 09। खेतों तथा घरों के आस-पास छतरीनुमा गुदगुदा सा एक सफेद तना निकल आता है, इन्हें हम बोलचाल की भाषा में 'कुकरमुत्ता' कहते हैं। इनको खुंभ,खुंभी,भमोड़ी एवं गुच्छी आदि कई नामों से जाना जाता है। अंग्रेजी में इन्हें मशरूम कहते हैं। खुंभी वास्तव में एक फफूंद है जो काफी स्वादिष्ट और पोष्टिक होती है। खुंभी में काबोहाईड्रेट्स की कम मात्रा उन लोगों को आकर्षित करती है जो अपना वजन कम करना चाहते हैं। इनकी करीब 1.20 लाख किस्में पाई जाती हैं परन्तु इनमें से मात्र 2 हजार किस्में ही खाने योग्य हैं। बहुसंख्यक भारतीय जो मूलत: भोजन के मामले में शाकाहारी हैं उनमें किसी भी ऐसे भोज्य पदार्थ के प्रति एक सहज आकर्षण होता है जो स्वाद में सामिष पदार्थो से मिलता जुलता हो। मशरूम की सब्जी का स्वाद माँस से बहुत मिलता है। इसकी हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश में बड़ी मांग है। इसके काफी महंगे होने के बावजूद भी लोग इसकी सब्जी खाना पसन्द करते हैं। मध्यप्रदेश में  भी इसकी मांग है। अत: इसकी खेती की अत्याधिक संभावनायें हैं।

       मशरूम एक साधारण पौध संरचना है जो मूलत: दो भागों में बंटा रहता है । पहला भाग छतरी तथा दूसरा भाग डण्डी के रूप में रहता है। दोनों भाग ही खाने योग्य होते हैं। छतरी छोटी-छोटी कोशिकाओं का समूह होती है जबकि डंडी की रचना डोरीदार होती है। इन्हें सड़ाये हुए जैविक पदार्थों (खाद,भूसा,पुआल इत्यादि) पर उगाते हैं, अन्य पौधों से अलग इन्हें सूर्य के प्रकाश की कोई आवश्यकता नहीं होती।

मशरूम अपने उच्च स्तरीय खाद्य मूल्यों के कारण ही सम्पूर्ण विश्व में अपना एक विशेष महत्व रखते हैं, मशरूम में काफी मात्रा में प्रोटीन,फोलिक एसिड विटामिन तथा मिनरल होते हैं, फोलिक एसिड का रक्त्ताल्पता को दूर करने में चिकित्सीय महत्व है। यह एक जादुई स्थिति है जो कार्बोहाइड्रेट्स की कम मात्रा के कारण भार घटाने वाले आहार के तौर पर उपयोग में लाया जाता है।

स्वाद और पौष्टिकता के अतिरिक्त मशरूम उत्पादन के लिये अन्य कृषि उत्पादों से भिन्न इसको उगाने के लिए कृषि भूमि की आवश्यकता नहीं होती । मशरूम की खेती लागत के मुकाबले बाजार में काफी अच्छी कीमत देती है । इससे लघु सीमान्त कृषकों तथा भूमिहीन मजदूरों को वर्ष भर आय प्राप्त हो सकती है, चूंकि आयस्टर मशरूम को सुखाकर भी बेचा जा सकता है अत: विपणन की समस्या नहीं रहती । इसे सामान्य घरेलू ग्रामीण महिलाओं द्वारा कुटीर उद्योग के रूप में भी अपनाया जा सकता है । मशरूम ताजी तथा कुछ किस्में सुखाकर खाने के काम आती है, इसलिये इसे लाभकारी कुटीर उद्योग के रूप में भी अपनाया जा सकता है ।

हमारे देश में खाने वाले मशरूम की प्रचलित तीन किस्मों में बटन मशरूम (एगीरेक्स बाइस्पोरस) यह शरद ऋतु में गेहूं अथवा धान के भूसे की कंपोस्ट में 15 से 25 सेन्टीग्रेड ताप तथा 80 से 90 प्रतिशत आर्द्वता में उगाया जाता है । दूसरी पराल मशरूम (वाल्वेरियेला वाल्वेसिका) इसे पैडी स्ट्रा मशरूम भी कहते हैं। ग्रीष्म ऋतु में धान के पुआल पर 30 से 35 सेन्टीग्रेड ताप तथा 80 प्रतिशत आर्द्वता में अच्छी तरह उगाया जा सकता है। तीसरी आयस्टर (ढींगरी) मशरूम (प्ल्यूरोट्स सेजर काजू) इसे 20 से 30 सेन्टीग्रेड तापक्रम पर80 से 90 प्रतिशत आर्द्वता में पुआल /भूसे में शरद में उगाया जाता है।

      स्पॉन एक तरह का खमीर है जो विभिन्न तकनीकों से अनाजों पर तैयार किया जाता है इसी से मशरूम उगते हैं। मशरूम की खेती में स्पॉन का वही महत्व है जो खेती में बीज का। अच्छी मशरूम फसल हेतु अच्छा स्पॉन आवश्यक है। इसे कई निजी कम्पनियाँ तैयार करती हैं तथा बाजार में यह बोतलों में मिलता है। सोलन (हिमाचल प्रदेश) कार्यरत प्रयोगशालाओं में काफी अच्छे प्रकार का स्पॉन तैयार किया जाता है। मध्यप्रदेश में कृषक इसके लिए एक स्वयं सेवी संस्था ''प्रदान'' से सम्पर्क कर सकते हैं। यह संस्था कृषकों को आयस्टर मशरूम उत्पादन में प्रशिक्षित भी करती है। इस संस्था के प्रबंधक श्री जुल्फिकार हेदर हैं तथा मुख्यालय ग्राम सुकतवा, ब्लाक केसला,तहसील इटारसी,जिला होशंगाबाद में स्थित है।

पौधों और जानवरों की तरह मशरूम पर बीमारियों और कीड़े-मकोड़ों का हमला होता है,इसलिए इन्हें उगाने के दौरान,प्रत्येक अवस्था में पूरी सफाई का प्रबंध आवश्यक है। हर बार मशरूम को चुनने के बाद अनचाही किस्म की फफूंदी की वृद्वि को रोकने हेतु ठूंठों को निकाल देने का विशेष महत्व है। नाशक जीवों(पेस्ट) और बीमारियों के हमले के बारे में सावधानी बरतने के लिये मशरूम -घर में मशरूम को उगाने के दौरान सप्ताह में एक बार साईथियान 0.2 प्रतिशत छिड़क देना चाहिए जो बहुत जरूरी है क्योंकि अगर एक बार मशरूम इन बीमारियों और नाशक जीवों से ग्रस्त हो गया तो आमतौर पर इसका उपचार करना कठिन होता है और कभी-कभी तो यह असंभव हो जाता है ।

       मशरूम बड़ी नाजुक चीज है, इसलिए इसकी देखभाल बडी सावधानी से करनी चाहिए। अहिस्ते से टोकरियों में रखना चाहिए और ढेर नहीं बनाना चाहिए। मशरूम दाब और रगड़ से खराब हो जाते हैं। इन्हें तुडाई के बाद तुरन्त बाजार भेजने का बंदोबस्त करना पड़ता है। मध्यप्रदेश में छोटी इकाईयों के लिये आयस्टर मशरूम ही कृषक आसानी से ले सकते हैं क्योंकि सुखाकर इनका विपणन दूर-दराज भी कर सकते हैं। 

 

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