तानसेन संगीत समारोह 2009 : मुग्धा भट की राग तोड़ी ने श्रोताओं को मुग्ध किया
ग्वालियर 05 दिसम्बर 09। स्वर, ताल एवं लय के मसीहा महान संगीत सम्राट तानसेन की स्मृति में आयोजित किये जा रहे हैं। संगीत समारोह की पहली सभा के दूसरे कलाकार देश के प्रसिध्द वीणा वादक बहाउद्दीन डागर द्वारा रूद्र वीणा वादन से प्रारंभ हुई। तीसरे कलाकार के रूप में दरभंगा घराने के युवा गायक श्री उदय कुमार मलिक द्वारा ''राग बागे श्री'' से गायन प्रारंभ किया। प्रथम दिवस की अंतिम संगीत सभा का समापन देश के ख्याति प्राप्त गायक पं. अजय पोहनकर के गायन से हुआ। संगीत समारोह के द्वितीय संगीत सभा का शुभारंभ शंकर गंधर्व संगीत महाविद्यालय के छात्रा-छात्राओं द्वारा रागदेसी में निबध्द ''रघुवर की छवि सुंदर'' ध्रुपद गायन से किया तथा पहली प्रस्तुती युवा गायिका मुग्धा भट सावंत के गायन से हुआ।
प्रथम संगीत सभा के दूसरे कलाकार देश के प्रसिध्द वीन वादक बहाउद्दीन डागर थे। आपने रूद्र वीणा की शिक्षा अपने पिता स्व. जियाउमुद्दीन डागर तथा अपने चाचा प्रसिध्द ध्रुपद गायक जियाफरिउद्दीन डागर से प्राप्त की है। रूद्र वीणा वर्तमान समय में एक अप्रचलित वादय के रूप में जानी जाती है। इस वादय को बजाने वाले अब देश में कम ही बचे हैं। साथ ही यह वादय एक मंहगा वादय भी है। जिसके कारण आम संगीत सीखने वाले इसकी ओर आकर्षित नहीं हो पाते। श्री बहाउद्दीन डागर ने अपने वादन हेतु औडव जाति के राग भूपाली का चयन किया। जिसमें आपने आलाप जोड़ झाला प्रस्तुत किया। व चौताल में एक गत भी प्रस्तुत की। आपके साथ पखावज संगति देश के युवा पखावज वादक श्री संजय आगले ने की। श्री डागर के रूद्र वीणा में राग की शुध्दित्ता परिलक्षित हो रही थी। साथ ही गमक युक्त आलापचारी से रसिक श्रोता मंत्रमुग्ध हो गये। सीमित समय में राग का संपूर्ण स्वरूप आपने बड़ी कुशलता पूर्वक प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम के तीसरे कलाकार दरभंगा घराने के युवा ध्रुपद गायक श्री उदय कुमार मलिक थे। देश विदेश में अनेक संगीत समारोह में शिरकत कर चुके श्री मलिक ने अपने गायन का प्रारंभ राग बागेश्री से किया। कोमल एवं मधुर स्वरों का राग बागेश्री आम श्रोताओं पर अपना प्रभाव तुरंत छोड़ता है। आपने इस राग में आलापचारी के पश्चात इस राग में ताल चौताल में निबध्द एक प्रसिध्द ध्रुपद आये रघुवीर धीर प्रस्तुत किया। विभिन्न प्रकार की लयकारियां एवं गमक युक्त आलापचारी से श्रोता अभिभूत हो गये। राग बागेश्री के पश्चात राग सरस्वती में एक धमार एरी ए कैसी'' प्रंस्तुत किया। इसके पश्चात आपने अपने दादा स्व. पंडित रामचतुर मलिक की रचना '' आये हो कंथ'' प्रस्तुत की। अपने गायन का समापन श्री उदय मलिक ने चंपक ताल में निबध्द शंकर पंच वंदन' प्रस्तुत कर किया। चंपक ताल एक अप्रचलित ताल है, जो नौ मात्रा का होता है। आपके साथ कुशल पखावज संगति श्री हरीश चंन्द्र पति सारंगी संगत श्री रउफ खां ने की।
सांयकालीन संगीत सभा का समापन देश के ख्याति प्राप्त गायक पं अजय पोहनकर के गायन से हुआ। आप किराना एवं पटियाला घराने के जाने माने गायक हैं। श्री पोहनकर ने गायन की शिक्षाअपनी सुशीला पोहनकर जी से प्राप्त की है। मधुर आवाज के धनी पोहनकर ने अपने गायन का प्रारंभ राज जोग से किया। दोनों गंधार तथा कोमल निषाद का सुंदर प्रयोग कर आपने वातावरण को रसमय कर दिया। आपके गायन में आलाप स्वरों एवं बोल के रूप में बड़े ही प्रभावशाली सिध्द हो रहे थे। आपने बड़ा ख्याल ' तू ही आदि अंत निराकार' प्रस्तुत किया। क्रमबध्द आलापचारी से राग जोग स्पष्ट हो रहा था। ताल रूपक में तीन, दो-दो के विभागों में आलाप और तानें श्रोताओं के मन और मस्तिष्क पर छाप छोड़ रहीं थीं। इसके पश्चात आपने प्रसिध्द बंदिश 'साजन मोरे घर आये' छोटा खयाल के रूप में प्रस्तुत की। राग जोग के पश्चात आपने तानसेन द्वारा रचित राग 'दरबारी कानड़ा' में एक बंदिश 'किन बैरन कान भरे' प्रस्तुत की। श्रोताओं की फरमाईश पर आपने राग पहाड़ी में 'सैंया गये परदेश' ठुमरी प्रस्तुत की। मूर्छना पध्दति से विभिन्न प्रकार के अलाप आपकी गायकी में बड़ी सुंदरता से प्रस्तुत हो रहे थे। आपके सुमधुर गायन के अनुरूप ही कुशल तबला संगति श्री हितेन्द्र दीक्षित एवं हारमोनियम संगत पद्म श्री महमूद धौलपुरी ने की। गायन में लग्गी लड़ी का रूप श्रोताओं को आनंदित कर गया। अपने कार्यक्रम का समापन राग भैरवी में ग्वालियर घराने की प्रसिध्द बंदिश ' कैसी ये भलाई रे' से किया। देर रात तक श्रोता श्री पोहनकर के गायन का आनंद लेते रहे।
तानसेन समारोह की दूसरी संगीत सभा का आरंभ 5 दिसम्बर को प्रात: स्थानीय शंकर गंर्धव संगीत महाविद्यालय के छात्र-छात्राओं ने प्रस्तुत राग देसी में निबध्द '' रघुवर की छवि सुंदर'' ध्रुपद गायन से किया ।
संगीत सभा की पहली प्रस्तुति किराना घराने की युवा गायिक मुग्धा भट सामंत के गायन से हुआ । उन्होंने अपने गायन का राग मिंया की तोड़ी से किया । यह राग तानसेन द्वारा रचित है । प्रात: कालीन सभा में राग करूण से ओत प्रोत है तोड़ी के स्वयं से वातावरण को सुरम्य कर दिया । कोमल रेषम गंधार, छैवस्व पंचम के सुंदर प्रयोग से राग तोड़ी प्रभावशील हो गया । राग तोड़ी के बड़े ख्याल के बोल '' बाजो रे बाजो '' थे। खुली आवाज की धनी श्रीमति मुग्धा भट सामंत की गायकी में किराना व ग्वालियर घरो की गायकी स्पष्ट दिखाई देती है । सिलसिले वार गायकी आजाल व तान का सुंदर प्रयोग आपके गायन में दिखाई दिया । संगतकारों को प्रोत्साहित करते हुये अपने गायन को आगे बढ़ाने की शैली प्रभावशील रही । राग तोड़ी में आपने '' अल्हा जाने - मौला जाने '' मध्य लये में छोटा खयाल प्रस्तुत किया । मुग्धा भट सामंत ने तोड़ी में तराना द्रुत तीन ताल में प्रस्तुत किया । अपने गायन का समापन उन्होंने एक भजन से किया ।
इस सभा के दूसरे कलाकार पं. राजेन्द्र प्रसाद थे । वैसे तो आपको बांसुरी वादक के रूप में जाना जाता है पर आपको शहनाई वादन में भी उतनी ही महारत हासिल है । आपने अपने वादन का प्रारंभ राग भदभाद सारंग से किया । सारंग के प्रकारों में से भदभाद सारंग अपना विशिष्ट स्थान रखता है । माधुर्यपूर्ण वसादन में आलापचारी व तानों का सुंदर समावेश आपके वादन में दिखाई देता है । ताल त्रिताल में निबध्द गत में सुंदर लयकारी युक्त आलाप तानों से श्रोता अभिभूत हो गये। वादन के अनुरूप ही आपके साथ दुग्गल पर संगत श्री मंगल प्रसाद ने की । अपने वादन का समापन आपने एक धुन से किया । संगीत रसिकों ने उनके वादन को सराहा ।
प्रात: कालीन सभा का समापन देश के वरिष्ठ गायक श्री सुरेन्द्र सिंह के गायन से हुआ। आपने डा. अमीर खां साहेब से संगीत का प्रशिक्षण लिया है । आपने अपने कार्यक्रम की प्रस्तुति राग शुध्द सारंग से की । आपने इस राग में झूमरा ताल में ''माई री मैं कासे कहूं ''बड़ा ख्याल प्रस्तुत किया । सिलसिले वार बढ़त आपके गायन की विशेषता रही । आपने कबीर का भजन भी प्रस्तुत किया । आपने राग भैरवी में गुरू अर्जुन सिंह जी का शबद '' कवन गुन प्राण बसी '' गाकर आपने अपने गायन का समापन किया । किराना घराना की गायकी आपके गायन में दिखती है । आपके साथ तबला पर संगत श्री भोगीराम रतोनिया तथा हारमोनियम पर संगत श्री विवेक बनसोड़ ने की।
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