अर्श से फर्श तक, सभी चल दिए राहुल की राह  पर  - नासिर गौरी
लेखक IBN7 के ग्वालियर संवाददाता हैं
 भारत वर्ष का जन नायक बनने के लिए अब युवा पीढ़ी के नेता भी राहुल गाँधी की राह पर चल पड़े है। कांग्रेस के युवराज  राहुल गाँधी को अपना रोल मॉडल मानने वाले युवा पीढ़ी के जन प्रतिनिधयों  को भी राहुल भैया में अपनी झलक दिखाई देने लगी है।  लेकिन यह महत्वाकांक्षा अर्श से फर्श की और जागी है। और सभी नेता अपने आपको माटीका सपूत बताने में लगे हुए है। राहुल भैया जब  बुदेलखंड के पिछड़े और अदिवासी इलाको में पहुचे और अदिवासी परिवार के  बीच पूरा दिन और रात बिताई और उनके जीवन को नजदीक  से जानने की कोशिश की तो जमीनी आधार वाले नेताओं को अपनी जमीन खिसकती नजर आयी।
  राहुल गांधी  के इस जमीन से जुड़ने की कवायत पर न केवल कांग्रेस पार्टी ने बल्कि विपक्षी डालो में देशव्यापी प्रतिक्रिया हुई।  मामले में जब और टूल पकड़ लिया जब बीजेपी के सूत्र धार राष्ट्रीय स्वंय  सेवक संघ के वारिष्ट नेत्तवय ने राहुल के इस प्रयास  की सराहना कर दी। ऐसे में विपक्षी दलों की स्थिति ऐसी हो गई की मानो काटो तो खून नही। कांग्रेस की महारानी सोनिया मेडम के  इकलौते चिराग राहुल भैया का यह जज्बा और  देश प्रेम भले ही भावी प्रधानमंत्री की कुर्सी हासिल करने के मकसद से हो लेकिन युवा नेत्तवयने राहुल के ग्रामीणों और दिल्ली  यूनिवर्सिटी के छात्रों के बीच जाकर भारत की भावी तस्वीर जानने की ललक ने  यह तो साबित कर दिया है कि वो विशाल वोट बैंक के  रूप में युवा पीढ़ी कि नवज टटोलकर उनके दिलों के राजकुमार बनने की हसरत रखते है।राहुल भैया के देश प्रेम या ऊँची महत्वकांक्षा के  लिए गांवो की ख़ाक छानने की पाठशाल से होकर गुजरते हुए वे अपना  निर्धारित लक्ष्य देख रहे है।
  मध्यप्रदेश के युवा नेता और ग्वालियर अंचल के तथा कथित महाराज  ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जरुर राहुल गाँधी  की राह पकड़ी है। वे अपनी संसदीय क्षेत्र के बामौरी विधानसभा के ग्राम लालझिरी में १४ नम्बर को पहुचे और आदिवासी वर्तमान के  केंद्रीयराज्य मंत्री और अतीत के सिंधिया  रियासत के राजकुमार रहे ज्योतिरादित्य ने नाटकीयता का पूरा परिचय देते हुए झितरा पटेल्या की झोपड़ी में पहुचे गए. ज्योतिरादित्य ने  झितरा आदिवासी के घर में मक्का का आटा गूंधा बल्कि अपने हाथ से रोटी  भी बनाई। ग्वालियर के जयविलास पैलेस के महाराज  जिनके कुर्ते की सिलवट मिटती नहीं उन्होंने जमीन पर बैठकर रोटी बेली बाद में फिर वही सांवत वादी चेहरा समाने आया और वही अपने  पिताश्री के पुराने डायलाग दोहराने लगे की उनकी रूचि पूर्वजो की भांति  राजनीति में ना होकर निजी रिश्ते बनाने में है। बाद  में अगले दिन गुना संसदीय क्षेत्र में ही इसी नाटक को दोहराया गया और इंटीरियर के गाँव मुरादपुर में श्री सिंधिया पहुचे और वहा  एक सरकारी स्कूल में बच्चों को गणित पढ़ाकर अपने ज्ञान का व धरा  लगाय दिया थोड़ी देर में ही रूपहले नाटक का परदा उठा  और सिंधिया ट्रेक्टर पर सवार हो गए। और ड्राइवर सिट सभालते हुए किसान की भूमिक निभाने लगे। कुछ पल बाद द्रश्य फिर बदला और एक  समारोह के बाद भेंट किये गए तीर कमान को  चलाने लगे. और इस तीर के जरिये उन्होंने कहा-कहा निशान साधा ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा। लेकिन इतना साफ़ हो गया है की विरासत  में राजनीति और सत्ता का सुख हासिल करने वाले सुकोमल इस महाराज को  लोकशाही से सांवत वाद की राह ठुकराकर फिर से जनता की  अदालत में नए स्टाइल से जाना इनकी व्यावसयिक मज़बूरी दिखाई देती है।
नासिर गौरी  ग्वालियर






कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें