साहित्य अकादेमी द्वारा  आयोजित साहित्य मंच से अनुभूति की कविताओं की बारिश
  ----अनुभूति की  काव्य श्रुंखला से श्रोतागण मुग्ध-----
गोपाल  प्रसाद , संपादक, समय दर्पण , mobile  : 9289723145, email : gopal.eshakti@gmail.com
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  (४ दिसंबर२००९, नई  दिल्ली)
  साहित्य अकादेमी द्वारा आयोजित पुस्तक प्रदर्शनी के दौरान २ दिसंबर को रविन्द्र भवन  प्रांगण में कवियों ने कविताओं की बारिश की . इस काव्यपाठ में गगन गिल(हिन्दी), अनुभूति चतुर्वेदी (हिन्दी), शाहीना खान (अंग्रेजी),नुसरत जहीर(उर्दू) ने भाग लिया .गगनजी की "थोडी  सी उम्मीद चाहिये" ,शाहीना  खान की मानवाधिकार पर अंग्रेजी कविता तथा नुसरत जहीद की  गजल और नज्म "शाखों पर दरख्तों को कुर्बान नहीं करते" ,  "ख्वाबों में ही कुछ शक्ल आए तो आ  जाए", " "मोहब्बत  अब नही होगी"को सराहना मिली .
               सबसे अंत में हिन्दी कवियित्री अनुभूति चतुर्वेदी की कविताओं ने ऐसा शमाँ  बाँधा कि श्रोतागण भावविभोर हो गए .अनुभूति ने कहा कि मैं ऐसी कविता सुनाउँगी जो गरमी पैदा  कर दे .उनकी कविता " वर्तमान राजनीति के संदर्भ में"-
   "बरगद उग आए हैं /पूरे शहर को ढक  लिया है/बर्षों  से जी रहे हैं /फिर भी जीना चहते हैं और /जडें पाताल तक पहुँच गई हैं  /डालें लटक गई हैं झुककर /पत्ते झड गए हैं /पीली पडती  टहनियाँ /उनकी बीमारियों का खुला दस्तावेज है /न जाने कितनों  ने अभी तक ,गिद्ध  और चीलें पाली हुई हैं / अपनी हवस से यह ताजे उगते हरे पेडों को भी /मुरझा देना चाहते हैं /  इन्हें हरी नरम पत्तियाँ  /बहुत पसंद हैं/ खास तौर पर एकदम मुलायम/अभी -अभी खिली कलियाँ /कलियाँ तो क्या / पूरे शहर को ही लील जाना  चाहते हैं /भूखे भेडिए.
       संबंध पर  यथार्थ चित्रण  " पिता और उनके मित्र" कविता में ----
    घर फोन किया था -पिता के स्वास्थ्य के लिए / भाभी ने बताया  /थीक तो हैं लेकिन अभी भी कुछ -कुछ भूल जाते हैं / माँ भी अस्वस्थ रहती हैं -मैने पूछा/ क्या फोन आते हैं?  /भाभी ने कहा ,थोडे-बहुत/ यों भी हमने फ़ोन कमरे से हटा दिया  है/अच्छा किया ? / और ये फोन  कम कैसे हो गए- मैंने  पूछा/ भाभी बोली..../सभी ने पापा से अपने काम निकाल लिए / सारे रहस्य जान लिए मित्र बनकर/ अब उनको क्या लेना  देना उनके स्वास्थ्य से / बात कितनी सही कही भाभी ने / सच है कि स्वार्थ का ही दूसरा रूप / रह गए हैं संबंध।
   नए युग का विद्रूप चेहरा कुछ इस तरह प्रस्तुत किया  अनुभूति ने-
   दस्तक:इक्कीसवीं सदी
  इक्कीसवी सदी की घोषणा /किसी बिगुल से नहीं /किसी नगाडे की थाप  से नहीं /केवल जलती हुइ आग / बिषैला एटमी धुआँ /बिलखते भूखंड /स्वागत करते हुए उपस्थित हुए  / एक कारवाँ इंटरनेट और/ परमाणुओं का / जाल की तरह बिछ गया / युद्ध के मौके का  फायदा ले / किए दनादन वार/ खत्म हुए नगर के नगर / हरी -भरी बस्तियाँ ,जंगल/ कब्रिस्तान में बदल गए / किस्मत से एक बूढा बच गया / अचरज  से देखने लगा / यह सभी दृश्य / और सहसा बोल उठा ../सचमुच मैं नरक में हूँ।
  अनुभूति ने विदूषक को काव्य रूप में इस तरह प्रस्तुत किया--
  तेवर क्यों बदल रहे हो ?/ क्यों अपने आप को मथ रहे हो?/मथ लो तब तक / जब तक कि जड ना हो जाओ/ एक बिदूषक से लग रहे हो / इन  बदलती मुद्राओं में/ अब तो मैं सभी नाटकीय मुद्राओं का / आनंद लेती हूँ ।
   अपनी कविता के माध्यम से सूर्य को आगाज किया अनुभूति ने-
  यह भीगी हुई चादर हटाकर /अपनी प्रचंड उष्मा के साथ  सामने आओ/  हे सूर्य! /और मुझे आलिंगनबद्ध कर लो /विश्व ने कब गर्भ दिया है / किसी वसुन्धरा को / सिर्फ छला है ,  बाँटा है ,रौंदा  है/बीघा-बीघा मूल्य ,बीघा-  बीघा स्वामित्व/  ये व्यापारी , ये ग्राहक  क्या मुझे प्रेम देंगे? / हे सूर्य,  बाहर निकलो इन श्रावणी परदों से / और अपने प्रचंड प्रकाश में /  मुझे रोम - रोम नहला दो / छुओ मुझे अपनी प्रेम उष्मा से /और पूरे विश्व के सामने /अंकुरित  करो मेरे स्वप्न शिशु। 
  अनुभूति की कविता " बेटे के लिए "  
  बेटा बोलने लगा है / बात करता है इस नए संसार की / जिसे वह धीरे -धीरे समझ  रहा है/ पूछता है सवाल / फ़ुटबॉल, कुश्ती,  समाज, कंप्यूटर/और  आतंकवाद के संबंध में / इतनी कम उम्र में वयस्कों सी बुद्धि/ क्या वह उम्र से बहुत पहले ही ,  सब कुछ परखना चाहता है? / उसको जबाब न देने पर / और अपनी व्यस्तताओं में / मैं भूल जाती हूँ कि वह गुस्से में  तोड फोड कर / फर्श को तोड- मरोड देगा/ फौलादी बन रहा है बेटा !   
   अनुभूति ने "सृजन" शक्ति  को अनोखे रूप में  प्रस्तुत कर वाहवाही बटोरी-
  हजारों खून के कतरे गिरकर/ बनते हैं शब्द/और एक खूनी नदी में / मथकर / डूबकर /  होता है सृजन। 
   संक्षेप में कहा जाय तो " अनुभूति ने अपनी कव्य प्रतिभा से  सबों को प्रभावित किया क्योंकि उन्होने समसामयिक विषयों को बखूबी रूप में प्रस्तुत किया । अनुभूति  चतुर्वेदी का सीधा सरोकार साहित्य और संस्कृति से रहा है । वह हिन्दी के विख्यात कवि ,  लेखक पद्मश्री जगदीश चतुर्वेदी की सुपुत्री हैं। अनुभूति साहित्य  जगत में विगत ३० बर्षों से लिख रही हैं । उनके चार कविता संग्रह, एक कहानी संग्रह , एक  उपन्यास हैं । उनकी कृतियों पर कई राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय  सम्मान मिल चुके हैं ।अपनी संसथा पल्लवी आर्ट्र्स के द्वारा अनेक कवि , लेखक ,पत्रकार ,  चित्रकार, नर्तक,  गायक , मूर्तिकार  के कई पीढियों  को जोडने का काम कर रही हैं । इसके अतिरिक्त  ओडिसी में पिछले २२ बर्षों से वह साधनारत हैं । अपने नृत्य का उन्होने देश- विदेशों  में सफल प्रदर्शन किया है । इराक के बेबिलोन सम्मेलन में चित्रकार ,कवियों को लेकर वह भरत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं । लंदन में दो बार भारत  के साहित्य , संस्कृति  का प्रतिनिधित्व किया है ।






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