घटनाक्रम - तानसेन  समारोह - संगीत पर राजनीति का ग्रहण -राकेश अचल
संगीत सम्राट तानसेन की समाधि पर होने वाले तीन  दिवसीय संगीत समारोह को राजनीति का ग्रहण लग गया है, स्थानीय निकाय चुनावों के  संदर्भ में लागू आदश््र्रर्ा्र आचार संहिता कीे वरकार तानसेन सम्मान की घोषणा ही  कर रही है।
स्थानीय निकाय चुनावों का कालचक्र कुछ ऐसा बन पड़ा  है कि जब चुनाव प्रक्रिया जारी रहती है उसी समय समारोह की तिथियां भी पड़ती है।  पांच साल पहले भी तानसेन समारोह के अलंकरण की घोषणा चुनावों के कारण नही की गई थी।  एक बार तो समारोह ही स्थगित कर दिया गया था।
पूरे देष में प्रतिष्ठित/तानसेन समारोह की  प्रतीक्षा संगीत प्रेमियों को बेसब्री से रहती है। संगीतज्ञ भी इस समारोह में दिए  जाने वाले तानसेन अलंकरण को लेकर उत्सुक रहते है, लेकिन राजनीति के कारण बार  बार तानसेन समारोह और तानसेन अलंकरण पर लगने वाले ग्रहण से म.प्र. को यह  सांस्कृतिक उत्सव अपनी आभा खोने लगा है।
प्रषन यह है कि क्या संगीत के आयोजनो और अलंकरणों  की घोषणा से चुनाव के लिए बनाई गई आदर्ष आचार संहिता का उल्लंघन होता है। तानसेन  समारोह की तैयारियां 365 दिन पहले से शुरू हो जाती है।  तानसेन अलंकरण के लिए गठित जूरी भी अपना काम बहुत पहले से शुरू कर देती है।  कलाकारो के चयन और अलंकरण के फैसले का राजनीति से कोई लेना देना नहीं होता। यह काम  राजनीति से जुडे लोग भी नहीं करते, इसलिए कलाकारों के फैसलो  की घोषणा से राजनीति के प्रभावित होने अथवा किसी आचार संहिता के उल्लंधन का सवाल  ही कहां उठता है।
तानसेन समारोह प्रदेष का एक मात्र ऐसा संगीत समारोह  है जिस पर कि अब तक राजनीति अपना असर नहीं छोड़ सकी है। प्रदेष मे तीसरी बार बनी  गैर कांग्रेसी सरकार ने भी इस समारोह से न तो छेड़छाड की है और न ही इसका भगवाकरण  करने की कोषिष की है, फिर आदर्ष आचार संहिता की आड़ लेकर  समारोह को आभाहीनन बनाने का क्या औचित्य है।
पहले से निर्धारित, निहांत सांगीतिक समारोह से  न तो मतदाता प्रभावित किए जा सकते है। और न ही ऐसे समारोहो के मंच से कोई राजनीतिक  संदेष दिया, लिया जा सकता है, इसलिए  सरकार और चुनाव आयोग को लंकी का फकीर बनने के बजाय ब्यायहारिक धरातल पर आकर फैसले  लेना चाहिए। तानसेन समारोह ही नहीं, इस जैसे दीगर समारोहो को  भी आदर्ष आचार संहिता से मुक्त रखा जाना चाहिए।
दुर्भाग्य यह है कि संगीत के लिए समर्पित और संगीत को पसंद करने बाला एक  भी व्यक्ति इस मुद्दे पर आवाज नहीं उठाता। किसी ने सरकार और चुनाव आयोग को समझाने  का प्रयास ही नही किया। अर्जी नही लगाई। अपील नहीं की। आखिर ऐसा क्यों नही हुआ? कोई आगे क्यों नहीं आया?  क्या सभी को लगनें लगा है कि राजनीति सबसे ऊपर, सबसे महत्वपूर्ण और सबसे कीमती हो गई है?
तानसेन समारोह में कोई नेता आना चाहे तो नहीं आ सकता, क्योकि आचार संहिता लगी है,  किसी संगीतज्ञ को उसके हिस्से का सम्मान सिर्फ इसलिए नही दिया गए  क्योकि चुनाव हो रहे है।
मैनें केंद्रीय चुनाव आयोग के साथ ही प्रदेष के  चुनाव आयोग द्वारा बनाई गई आर्दष आचार संहिता को पूरे ध्यान से पढ़ा है। पूरी आचार  संहिता में कही भी ध्वनित नही होता कि संगीत समारोहो से इस संहिता का उल्लंघन होता  है कही नही लिखा कि पुरस्कारों की घोषणा चुनावो को प्रभावित करती है।
दसअसल जिन आयोजनो और गतिविधियों से आदर्ष आचार  संहिता का उल्लधंन होता है, उन्हे कोई भी आयोग रोक नही पाता।  चुनावों में धनबल का इस्तेमाल धड़ल्ले से होता है। शराब की नदियां बहती है, मतदाता सूचियों मे घालमेंल किया जाता है चुनाव क्षेत्रों का परिसीमन  मनमाने ठंग से किया जाता है, पर आयोग कुछ भी नहीं कर पाता।
इस मुद्दे पर बहस की जरूरत हैं शुरूवात तानसेन  समारोह के बहाने ही हो सकती है तानसेन समारोह के कलाकारों और अलंकरण का फैसला पहले  से हो चुका है, इसकी घोषणा हर हाल में होना ही चाहिए अन्यथा एक गलत  निर्णय परंपरा का रूप ले लेगा। कभी स्थानीय निकाय चुनाव आड़े आएगें, तो कभी विधान सभा अथवा लोकसभा के चुनाव। चुनाव तो इस देष की नीयति बन चुके  है। देष में चुनावो के अलाव होता ही क्या है?
अपने शताब्दी वर्ष की और कदम बढ़ा रहे तानसेन समारोह  को तानसेन अलंकरण से जोड़ने का काम प्रदेष की तत्कालीन भाजपा सरकार ने की थी। अब यह  समारोह लखटकिया है, किंतु इसकी गरिमा को राजनीति लगातार कम कर रही है,  भाजपा में संस्कृति का ठेका लेने वाली संस्थाए भी इस मामले में गुड़  खाकर बैठी है।
तानसेन समारोह की गरिमा बनाए रखने के अब दो ही  रास्ते है। पहला यह कि चुनावी साल में इस समारोह की तिथियों को आगे बढ़ा दिया जाए  या फिर इस आयोजना और उससे जुडे दूसरे निर्णयों को आर्दष आचार संहिता के मकड़जाल से  हमेषा के लिए मुक्त करने के लिए चुनावी आदर्ष आचार संहिता को ही बदल दिया जाए।  सबको समझना होगा जीवन में संगीत का आगमन राजनीति से पहले हुआ है संगीत व्यक्ति के  जीवन को शांति देता है, राजनीति व्यक्त् िको अषांत करती  है। संगीत सुरीला होता है, राजनीति बेसुरी होती है। संगीत  मनुष्य को ईष्वर से जोड़ता है, राजनीति ईष्वर के नाम पर जाने  क्या-क्या करती है? अब फैसला आपको करना है। कि आप संगीत के  लिए लड़े या फिर राजनीति के लिए (भावार्थ)
                                    एफ/10, न्यूपार्क  होटल
                          पड़ाव  चौराहा, ग्वालियर
                                                email:  achal.rakesh@gmail.com






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