प्रसंगवस : झूठी माया का प्रपंच
राकेश अचल
एफ/10 न्यूपार्क होटल पड़ाव, ग्वालियर 474001
प्रथक तेंलगाना राज्य बनने की सुगबुगाहट के फौरन बाद उ.प्र. की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती ने प्रथक बुदेलखंड और हरित प्रदेश की पुरानी मांग पर अपनी पार्टी और सरकार की सहमति जताकर बहती गंगा में हाथ धोने की कोशिशे शुरू कर दी है।
मायावती का कहना है कि वे उ.प्र. के पुनर्गठन के लिए राजी है। लेकिन इसके लिए पहल केदं सरकार करे। माया की यह कुलांच नाच न जाने आगन टेढा की कहावत को चरितार्थ करती है।
उ.प्र. के पुनर्गठन के प्रति बसपा सुप्रीमो यदि सचमुच गंभीर है तो उन्हे सबसे पहले उ.प्र. विधानसभा मे इस वावत एक प्रस्ताव रखकर उसे सर्वसम्मति से पारित करा कर केंद्र को भेजना चाहिए। ऐसा करने से उन्हे किसने रोका है?
प्रथक तेलंगाना राज्य के लिए केंद्र की सहमति का कोई अर्थ नहीं है इस मुद्दे पर आंध्र में कांग्रेस के भीतर ही फूट पड़ गई है कांगेस के तमाम सांसदों और विधायको ने केंद्र के प्रस्ताव के विरोध में इस्तीफे दे दिए है ऐसे मे केंद्र बुदेलखंड और हरित प्रदेश के लिए सहमति दे भी दे तो उनका क्या महत्व है।
उ.प्र. के पुनर्गठन का काम अकेले उ.प्र. विधानसभा की सहमति से भी पूरा नही होने वाला। इसके लिए म.प्र. विधानसभा और सरकार की सहमति भी अवश्यक है। प्रथक बुदेंलखंड बनाने के लिए उ.प्र. से ज्यादा जमीन म.प्र. की चाहिए। बुदेंलखंड के ज्यादातर जिले म.प्र. में ही है। मायावती को इस बारे में सम्हल कर बोलना चाहिए था।
देश मे ंछह साल पहले जब म.प्र. और उ.प्र. और बिहार का पुनर्गठन कर छत्तीसगढ़, झारखंड, और उत्तरांचल राज्य बनाए गए तब राज्यों और केंद्र सरकार के बीच गहरी सहमति थी। इसी सहमति और दृढ इच्छा शक्ति के बल पर यह नए राज्य बन पाए थे। यूपीए की सरकार इस मुददे पर गंभीर नही दिखाई देती। प्रथक तेलगाना के नाम पर केंद्र सरकार राजनीति करती नजर आ रही है।
केंद्र सरकार अगर प्रथक तेंलगाना के मुददे पर गंभीर होती तो सबसे पहले इस वावत आंध्र विधान सभा से इस वावद प्रस्ताव पारित करा लेती। सबसे पहले अपनी पार्टी में इस प्रस्ताव पर आम सहमति बनाती और प्रथक तेंलगाना राज्य के लिए चंद्रशेखर राव को अनशन करने का अवसर ही नही देती। लेकिन यह सब नही हुआ। क्योकि केंद्र सरकार की नीति में खोट है।
उत्तर प्रदेश के पुनर्गठन के मुददे पर ऐसी खोट मुख्यमंत्री सुश्री मायवती की नीयत में दिखाई दे रही है। उन्होने इस मुददे पर केवल शिगूफा छोड़ा है। उ.प्र. में कांग्रेस की बढत से परेशान मायावती प्रथक राज्यों के आंदोलनो को हवा देकर सहानुभूति बटोरना चाहती है। यदि ऐसा न होता तो वे बुंदेलखंड और हरित प्रदेश के लिए आंदोलन चलाने वालो से सक्रिय होने के लिए न कहती।
छोटे राज्यों के मुददे पर भाजपा की नीति बहुत सुस्पष्ट है जनसंघ के जमाने से छोटे राज्यो की वकालत करने वाले नेताओ ने झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड बनाकर अपनी मंशा साफ भी की। दुर्भाग्य से इस मुददे पर म.प्र. की भाजपा सरकार मौन है। प्रथक बुंदेलखंड के मुददे पर म.प्र. की भाजपा सरकार को भी अपनी नीयत स्पष्ट करना चाहिए। इस मुददे पर भाजपा अब सिध्दांत सहमति की बात तो कर रही है, लेकिन भाजपा की सरकार के मुखिया इस मुददे पर चुप्पी साधकर बैठे है।
म.प्र. और उ.प्र. की सरकार अगर सहमत हो जाए तो हरित प्रदेश न सही कम से कम बुंदेलखंड का बठन तो हो ही सकता है प्रथक बुदेंलखंड की मांग बहुत पुरानी भी है और न्यायोचित भी बिडंबना यह है कि प्रथक बुदेलखंड के आंदोलन के पास कोई बडा नेता नही है स्व. शंकर लाल मेहरोत्रा ने इस आंदोलन को दो दशक तक जीवित रखा। पर उनके बाद यह आंदोलन बिखर गया। फिल्म् अभिनेता राजा बुंदेला प्रथक बुदेलखंड के आंदोलन को गति देने में अभी तक सफल नही हुए है इसी वजह से प्रथक बुदेलखंड को लेकर बसपा और भाजपा को राजनीति करने का मौका मिल रहा है।
प्रथक बुदेलखंड आंदोलन से अगर बुदेलखंड से चुने जाने वाले अलग दलो के विधायक और सांसद जुड जाए तो बात बन सकती है अभी प्रथक बुंदेलखंड की राजधानी का स्वरूप भी अस्पष्ट है इसलिए ज्यादा अच्छा हो कि इस आंदोलन का जनोन्म्ुखी बना कर नए सिरे से प्रथक बुंदेलखंड की मांग की जाए।
बुदेलखंड, भाषा, संस्कृति, खनिज और वनो के अलावा उन्य कई मामलो में आत्म निर्भर राज्य बन सकता है। यहां के संसाधन अब तक लूटखसोट के शिकार है। कुशासन और सरकारी उपेक्षा ने बुंदेलखंड को नर्क बना दिया है। बुंदेलखंड को लेकर कांग्रेस भी राजनीति कर रही है और भाजपा तथा बसपा भी। कोई बुंदेलखंड के विकास अस्मिता और अस्तित्व को लेकर चिंतित नही है।
आने वाले दिनो मे यह मुददा कितना जोर पकड पाएगा, अभी कहना कठिन है, पर संतोष की बात यह है कि मुख्य मुत्री सुश्री मायावती ने जमालो बन कर भूसे में आग तो लगा ही दी है।
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