गाँवों में कृषि उत्पादों की प्रोसेसिंग कराने की योजना- कुलपति डॉ. तोमर
ग्वालियर 11 सितम्बर 08। किसानों की खुशहाली के लिये उन्हें बेहतर प्रशिक्षण मिले, अच्छा आदान मिले, फसल का उत्पादन बढ़े तथा आय में वृध्दि हो। इसके लिये नव गठित कृषि विश्व विद्यालय ग्वालियर द्वारा गांवों में कृषि उत्पादों की प्रोसेसिंग कराने की योजना पर विचार किया जा रहा है। यह बात ग्वालियर में नव गठित राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. विजय सिंह तोमर ने आज यहां पत्रकारों से चर्चा करते हुये कही।
डॉ तोमर ने कहा कि किसानों की आर्थिक स्थिति सुदृण करने के लिये उन्हें मधु मक्खी पालन, लाख उत्पादन, डेयरी उत्पादन, फूल, सब्जी,उन्नत बीज उत्पादन एवं उद्यानिकी से जोड़ा जा सकता है। उन्हें इस संबंध में प्रशिक्षण देना होगा, ताकि किसानों को खेती का भरपूर लाभ मिले। उन्होने बताया कि विश्वविद्यालय में कृषि अभियांत्रिकी, खाद्य प्रसंस्करण तकनीक के साथ -साथ वाणिज्य प्रशासन जैसे उच्च शिक्षा के विषय लाये जायेंगे। साथ ही मृदा संरक्षण के कार्यक्रम भी शुरू किये जायेंगे तथा किसानों के मृदा स्वास्थ्य पत्रक बनाये जायेंगे। किस स्थान की मिट्टी किन फसलों के लिये उपयुक्त है, यह उल्लेख पत्रक में रहेगा। उन्होंने कहा कि चंबल के बीहड़ों में उद्यानिकी फसलों की अच्छी पैदावार ली जा सकती है।
डॉ. तोमर ने कहा कि प्रदेश के दूरस्थ कृषि अंचलों में निवास करने वाले किसनों को कृषि जलवायु क्षेत्र के आधार पर उनकी स्थानीय कृषि आवश्यकताओं की पूर्ति, समस्याओं के त्वरित निदान, प्रशासनिक सुविधा एवं कृषि शिक्षा के अधिकाधिक प्रसार आदि की दृष्टि से राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्व विद्यालय का गठन किया गया है। जो मध्य भारत, मालवा, निमाड़ तथा पूर्ववर्ती भोपाल राज्य तक फैला हुआ है। विश्वविद्यालय के अन्तर्गत पांच कृषि महाविद्यालय, एक उद्यानिकी तथा एक पशु पालन एवं पशु चिकित्सा महाविद्यालय है। इन सभी में स्नातक स्तर की शिक्षण व्यवस्था है। इसके अलावा ग्वालियर,इन्दौर,सीहोर,मंदसौर एवं महू में कुछ विषयों में स्नातकोत्तर शिक्षा की सुविधा है। ग्वालियर में शीघ्र ही सभी विषयों में डाक्टरेट शोधकार्य तथा स्नातकोत्तर शिक्षा की व्यवस्था की योजना है। उन्होंने बताया कि कृषि शिक्षा के विकास एवं इसकी गुणवत्ता में सुधार के द्वारा प्रदेश को अच्छे कृषि वैज्ञानिक, प्रसार कार्यकर्ता, कृषि आधारित स्वरोजगार करने वाले उद्योजक तथा प्रगतिशील किसान देने की भी योजना है। साथ ही ऐसे पाठयक्रमों को भी संचालित करने की योजना है, जिससे कम पढ़ा लिखा, गरीब किसान का बेटा भी बिना किसी पूर्व परीक्षा के सीधे व्यवसायिक प्रशिक्षण प्राप्त कर सके। इसके अलावा डिप्लोमा कोर्स भी प्रारंभ किये जायेंगे।
कुलपति ने बतया कि विश्वविद्यालय द्वारा संचालित आंचलिक अनुसंधान केन्द्र, क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र, उद्यानिकी एवं लनणीय मृदा के विषय में विशेष अनुसंधान किये जा रहे हैं। साथ ही फसलों की नवीन किस्में, फलोत्पादन, उद्यानिकी एवं औषधीय खेती पर भी ध्यान दिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय के पास उन्नत किस्म के बीज उत्पादन केन्द्र भी हैं।
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