नि:शक्त बच्चे भी जी सकते हैं स्वतंत्र व पूर्ण जीवन
राष्ट्रीय न्यास की मीडिया कार्यशाला सम्पन्न
(हमें खेद है चम्बल अंचल में चल रही भारी बिजली कटौती के कारण यह प्रेस रिलीज विलम्ब से प्रकाशित हो पा रही है)
ग्वालियर 13 मई 09। स्व. परायणता (ऑटिज्म) सेरीब्रिल पालसी, मानसिक मंदता एवं बहुनि:शक्तता से ग्रसित व्यक्ति भी स्वतंत्र एवं पूर्ण जीवन जी सकते हैं। आवश्यकता इस बात की है उक्त लक्षण वाले बच्चे व व्यक्तियों को समय से विषय विशेषज्ञों से उचित मार्गदर्शन मिल जाये। साथ ही इनके अभिभावकों को बच्चों की सही ढंग से परिवरिश करने की जानकारी मिल जाये। हालांकि सरकार द्वारा राष्ट्रीय न्यास अधिनियम के तहत निशक्तजन के समग्र पुनर्वास के लिये पुनर्वास केन्द्र खोले हैं। साथ ही उक्त प्रकार के निशक्तजन के कल्याण के लिये तमाम योजनायें भी संचालित की जा रहीं हैं। लेकिन इन कार्यक्रमों की सार्थकता तभी सिध्द होगी जब निशक्तजन व उनके अभिभावकों को योजनाओं की जानकारी होगी। यह काम मीडिया बखूबी कर सकता है। उक्त आशय के विचार राष्ट्रीय न्यास एवं उसकी स्टेट नोडल ऐजेन्सी रोशनी रामकृष्ण आश्रम के संयुक्त तत्वावधान में आज रोशनी संस्था के सभागार में आयोजित हुई मीडिया कार्यशाला में सामने आये।
नई दिल्ली से पधारे हैण्डीकेप्ड पेरेंट ऐसोसिएशन के अध्यक्ष एवं लोकल लेवल समिति के सदस्य डॉ. सुशील कुमार ने मुख्य अतिथि की हैसियत से कार्यशाला को संबोधित करते हुये कहा कि भारत सरकार द्वारा 1999 में स्व परायणता, प्रमस्तिष्क घात, मानसिक मंदता एवं बहुनिशक्तता से ग्रस्त व्यक्तियों के कल्याण के लिये राष्ट्रीय न्यास अधिनियम पारित किया। राष्ट्रीय न्यास, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अन्तर्गत कार्यरत है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय न्यास का प्रयास है कि निशक्त जन इस प्रकार से समर्थ व सशक्त बनें, जिससे वे समुदाय के भीतर एवं उसके नजदीक ही स्वतंत्र और पूर्ण जीवन जी सकें। न्यास, नि:शक्त व्यक्तियों को उनके अपने परिवार में रहने में सहायता तो प्रदान करता ही है, साथ ही ऐसे नि:शक्त जन की भी मदद करता है, जिन्हें परिवार का सहारा नहीं है अथवा जिनके माता, पिता या संरक्षक की मृत्यु हो गई है। निशक्त व्यक्तियों के संरक्षक एवं न्यासी की नियुक्ति प्रक्रिया भी राष्ट्रीय न्यास तय करता है। इस प्रकार राष्ट्रीय न्यास निशक्त व्यक्तियों के लिये समान अवसर व अधिकारों का संरक्षण और उन्हें पूर्ण भागीदार बनाने में समग्र योगदान देता है।
डॉ. सुशील कुमार ने निशक्त जन के कल्याण के लिये संचालित निरामय योजना, उद्यमा, प्रभा व घरौंधा योजनाओं पर विस्तार से प्रकाश डाला। साथ ही निशक्त जन के सहयोगी कार्यकर्ताओं के बारे में भी जानकारी दी।
पेरेण्टस सपोर्ट ग्रुप ऑफ चिल्ड्रन से जुड़े डॉ. राजीव मिश्रा ने ऑटिज्म व पेरेण्ट सपोर्ट ग्रुप के प्रमुख श्री एम एल. मल्होत्रा ने राष्ट्रीय न्यास से जुड़े निशक्तजनों के कानूनी अधिकार बताये। डॉ. पी के. जैन ने निशक्त जन के कल्याण के लिये संचालित निरामय हेल्थ इंश्योरेंस स्कीम के बारे में विस्तार से जानकारी दी। श्रीमती एस. घटक ने निशक्त जन द्वारा अपने हाथों से बनाये गये बेग, पेण्ंटिग आदि उत्पादों की मार्केटिंग के बारे में बताया। संयुक्त संचालक जनसंपर्क श्री सुभाष अरोड़ा ने कहा कि निशक्तजन के कल्याण के लिये संचालित योजनाओं के प्रचार प्रसार की दिशा में आज आयोजित हुई कार्यशाला एक सराहनीय पहल है। कार्यशाला के आरंभ में रोशनी की निदेशक श्रीमती मंजुला पाटनकर ने कार्यशाला के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला और अन्त में श्री विवेक शर्मा ने आभार व्यक्त किया।
यदि बच्चे के विकास में देरी हो तो पुनर्वास विशेषज्ञों की सलाह लें
नि:शक्त जन के अधिकारों एवं उनके कल्याण से संबंधित योजनाओं के प्रति जागरूकता लाने के मकसद से आयोजित हुई कार्यशाला में स्नायुविक परिशानियों से ग्रसित बच्चों के लक्षण भी विस्तार से बताये गये। इस विषय की विशेषज्ञ एवं रोशनी संस्था की निदेशक श्रीमती मंजुला पाटनकर ने बताया कि उम्र के अनुसार यदि बच्चे का समय रहते सिर न संभल रहा हो, बच्चा उठना-बैठना समय से प्रारंभ न करे, बच्चे को भोजन खाने,पीने, चबाने व निगलने में समस्या हो, बच्चे की मांसपेशियों में तनाव व ढीलापन हो,तीन-चार साल तक बच्चा बोलने में असमर्थ हो। बच्चे की समझ उम्र के अनुसार न हो व बच्चे को पढ़ने-लिखने में समस्या हो तथा वह स्कूल में अपनी पढ़ाई उम्र के अनुसार नहीं कर रहा हो। बच्चे का व्यवहार सामान्य न हो व अति चंचल (हाइपरएक्टिव) या सुस्त हो। उक्त प्रकार के लक्षण दिखाई देने पर बच्चे का पुनर्मूल्यांकन, पुनर्वास विशेषज्ञों (विशेषज्ञ शिक्षक थेरेपिस्ट अथवा इस कार्य से जुड़े सोशल वर्कर) से कराना चाहिये।
ग्वालियर शहर में राष्ट्रीय न्यास के सहयोग से रामकृष्ण आश्रम में रोशनी पुनर्वास केन्द्र संचालित है। जिसमें बच्चों की जांच के बाद घर के लिये बच्चों के लिये कार्यक्रम दिया जाता है, जिससे बच्चों की क्षमता में विकास होता है।
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