ई.वी.एम. - लोकतंत्र की मजबूती का उपकरण
आर.के. पिल्लई*
भारत दुनिया का सबसे जानदार लोकतंत्र है और रंगारंग त्यौहारों का देश है । यह इस समय एक अलग तरह के उत्सव में डूबा हुआ है । महीने भर लंबा मतदान उत्सव 16 मई को चरम पर पहुंचेगा जब आम चुनाव के नतीजे इस दिन आना शुरू होंगे । पहली बार दुनिया में सबसे बड़ी कवायद यानी हमारा आम चुनाव पांच चरणों में हो रहा है । यह भगीरथी प्रक्रिया कई देशों के लिए निश्चित रूप से अजूबा है और दुनिया भर का मीडिया हमारी निर्वाचन प्रक्रिया के आकार-प्रकार, व्यवस्थित तौर तरीके और उसमें लोगों की भागीदारी के मद्देनजर बहुत रूचि ले रहा है ।
चुनाव डयूटी में लगे सुरक्षा और अन्य कर्मी निश्चित रूप से प्रशंसनीय काम कर रहे हैं । इसी तरह इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानी ई.वी.एम. भी अपना काम कर रही है । वर्ष 2004 के आम चुनाव की तरह मतदान पूरी तरह ई.वी.एम. के माध्यम से ही हो रहा है । इस साधारण से इलेक्ट्रानिक उपकरण ने हमारे देश की चुनावी कवायद को बदलकर रख दिया है । एक तो इससे मतदान जल्दी हो जाता है और दूसरी बात यह कि चुनावी प्रक्रिया की कई अड्चनें इससे दूर हो जाती हैं ।
निर्वाचन आयोग ने पहली बार ई.वी.एम. का इस्तेमाल 1982 में केरल की परावुर विधान सभा सीट के उपचुनाव में किया था । ई.वी.एम. का प्रयोगात्मक उपयोग 50 मतदान केन्द्रों तक ही सीमित था । यहां से निर्वाचन आयोग इस दिशा में लंबी छलांग लगाई । वर्ष 2004 के आम चुनाव के दौरान 10.75 लाख ई.वी.एम. का इस्तेमाल किया गया । मौजूदा चुनाव में और अधिक वोटिंग मशीनों का उपयोग किया जा रहाहै ।
जैसा कि हम जानते हैं , अमान्य और संदिग्ध मतों की संभावना को समाप्त करने के अलावा ई.वी.एम. के बल पर मतों और परिणामों की गणना काफी शीघ्रता से होती है । प्रकृति प्रेमियों के पास भी ई.वी.एम. के इस्तेमाल पर खुश होने के कई कारण हैं । काफी हद तक कागज के इस्तेमाल में कमी होना इस इलेक्ट्रानिक उपकरण का एक बहुत बड़ा फायदा है । वर्ष 1996 और 1999 के आम चुनावों में दोनों मिलाकर ई.वी.एम.के इस्तेमाल के कारण 16,500 मीट्रिक टन कागज की बचत हुई । यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि इससे मतपत्रों की छपाई पर लागत न के बराबर होना एक अन्य बिन्दु है । भारत सरकार के दो उपक्रमों, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और इलेक्ट्रॉनिक्स कारपोरेशन ऑफ इंडिया द्वारा विनिर्मित ई.वी.एम. मशीनों का इस्तेमाल उन दूरस्थ क्षेत्रों में भी किया जा सकता है जहां बिजली न हो, क्योंकि यह उपकरण आल्कलाइन बैटरियों से चालित है । संचालन की सरलता और विश्वसनीयता ई.वी.एम. को और भी अधिक स्वीकार्य बनाते हैं । एक मशीन को किसी प्रकार के नेटवर्क से नहीं जोड़ा जा सकता है और इस कारण इसके प्रोग्रामिंग में न तो किसी प्रकार का हस्तक्षेप किया जा सकता है और न ही इसमें कोई हेरफेर किया जा सकता है । विश्व इस तथ्य को स्वीकार करता है कि भारतीय लोकतंत्र ने कई राष्ट्रों, विशेषकर हमारे निकटवर्ती पड़ोसियों को प्रेरित किया है । भूटान ने विगत चुनावों में भारत में तैयार की गयी ई.वी.एम. मशीनों का इस्तेमाल किया है ।
जिस प्रकार हम सुरक्षा कर्मियों के सर्वोच्च बलिदान और देश के विभिन्न हिस्से में चुनाव की डयूटी में तैनात लाखों अधिकारियों की भावनाओं को सलाम करते हैं, हमें इस सरल इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, ई.वी.एम. का सम्मान भी टोपी उछाल कर करना चाहिए । यह कहने की जरूरत नहीं कि हमारे शक्तिशाली लोकतंत्र को और भी अधिक सशक्त करने हेतु ई.वी.एम. मशीनों का अत्यधिक महत्त्व है ।
· मीडिया और संचार अधिकारी, पसूका, तिरूवनंतपुरम
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