गुरुवार, 20 नवंबर 2008

परिसीमन का साया : कहीं त्रिकोणीय तो कहीं बहुकोणीय मगर सीधे मुकाबले भी संभव श्रंखलाबद्ध आलेख करवट-7-1

परिसीमन का साया : कहीं त्रिकोणीय तो कहीं बहुकोणीय मगर सीधे मुकाबले भी संभव

श्रंखलाबद्ध आलेख करवट-7-1

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

विशेष नोट- (हम क्षमा चाहते हैं कि मुरैना में चल रही भारी बिजली कटौती के चलते इस आलेख का यह भाग- यह किश्‍त हम पूरी नहीं लिख और प्रकाशित कर पा रहे, किंचिंत भी विद्युत व्‍यवस्‍था अवरोध ठीक होते ही हम इस किश्‍त को पूरी प्रकाशित करेंगें । कृपया स्‍मरण रखें यह आलेख कई दिनों के भीतर विश्‍लेषणात्‍मक रूप से लिखा गया है और इस अधूरी किश्‍त में पूरी तथ्‍य व आंकड़े एवं विश्‍लेषण सम्मिलित नहीं हैं कृपया पूरी किश्‍त वाचन उपरान्‍त ही किसी भी प्रकार से इस भाग-7 के विश्‍लेषण को पूर्ण मानें । इस प्रकार इस किश्‍त आलेख को भाग-7-1 के रूप में पढ़ें व इसके शेष भाग को भाग-7-2 या 7-3 जैसी भी स्थिति हो पढ़ें विनम्रता पूर्वक क्षमायाचना सहित धन्‍यवाद, नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द'' )              

पिछले अंक से जारी ...

अब जब इस आलेख की यह किश्‍त लिखी जा रही है अंचल का परिदृश्‍य काफी हद तक साफ हो चुका है और कांग्रेस भाजपा सहित अधिकतर राजनीतिक दल अंचल की लगभग सभी महत्‍वपूर्ण सीटों पर अपने प्रत्‍याशी घोषित कर चुके हैं ।

पिछले इस श्रंखलाबद्ध आलेख के पश्‍चात अब जो परिदृश्‍य उभर कर सामने आया है वह काफी परिवर्तित और रोचक है । चम्‍बल ग्‍वालियर अंचल में अधिकतर सीटों पर अबकी बार त्रिकोणीय एवं बहुकोणीय संघर्ष होंगें वहीं कुछ सीटें ऐसी हैं जहॉं सीधी व खुली टक्‍कर भी होगी ।

चूंकि दो महत्‍वपूर्ण सीटों मुरैना व दिमनी पर इबारत दीवार पर उकेर कर साफ साफ चमकने लगी है वहीं यह भी साफ हो गया है कि या तो भाजपा का मुकद्दर ठीक था या कांग्रेस का खराब नसीब । हुआ कुछ यूं कि उनकी सरकार जाते जाते बचती जान पड़ रही है और उनकी सरकार का बनने से पहले ही गर्भपात सा जान पड़ रहा है । आप समझ गये होंगें मेरा आशय क्‍या है ।

इस साल के शुरू में यानि जनवरी फरवरी और पिछले साल दिसम्‍बर के महीने में जहॉं प्रदेश की भाजपा सरकार के खिलाफ जबर्दस्‍त विरोधी लहर और वातावरण बन बैठा था, भाजपा को इस डेमेज को नियंत्रित करने के लिये पूरे आठ महीने का समय लगा । उसके बावजूद अक्‍टूबर और नवम्‍बर में यह बात आइने की तरह साफ और एकदम स्‍पष्‍ट हो गयी थी कि भाजपा की सरकार बड़ी बुरी तरह सत्‍ता से बाहर जा रही है । संभवत: आज म.प्र. विधानसभा में जो स्थिति कांग्रेस और भाजपा के विधायकों की है वह संख्‍या एकदम उलट जायेगी और कांग्रेस प्रचण्‍ड बहुमत के साथ सरकार में आयेगी ।

प्रत्‍याशी चयन और उनके टिकिट वितरण के बाद बात फिर एकदम पल्‍टा खा गयी । जहॉं कांग्रेस की पहली सूची 117 जो निकाली गयी थी वह एकदम विर्विवाद और झंझावात से मुक्‍त रही । वहीं भाजपा की पहली सूची 115 में कहीं कहीं किंचित विवाद सामने आये थे ।

मेरी नजर में कांग्रेस व भाजपा दोनों की ही पहली सूचीयां ठीक थीं, भाजपा की आखरी तीसरी सूची तक प्रत्‍याशी चयन जमीनी सच्‍चाई और जनभावनाओं के काफी नजदीक से गुजरता है । मैं इसे सबसे बेहतर प्रत्‍याशी चयन या ठोस जमीनी हकीकत का संतुलन व समन्‍वय कहूं तो शायद ठीक रहेगा । कुल मिला कर भाजपा नेतृत्‍व धरातली हकीकत से काफी ठोस हद तक सुवाकिफ रहा है और आज की तारीख के हिसाब से एक श्रेष्‍ठ सूची देता है यदि अपवाद स्‍वरूप भाजपा के 10 फीसदी प्रत्‍याशीयों को छोड़ दें तो कुल मिला कर प्रत्‍याशी चयन बेहतर पॉलिटिकल इंजीनियरिंग का बेजोड़ उदाहरण है ।

कांग्रेस की बाद वाली दूसरी और तीसरी सूचीयां अधिकांशत: बेहद घटिया उम्‍मीदवारों का चयन मेरी नजर में दर्शातीं हैं । अब वह चाहे किसी भी कारण से रहा हो ।

इस सारी पहलवानी में कांग्रेस की नासमझी या नावाकिफी या वाकिफ होकर भी हकीकत को झुठलाने का सीधा फायदा बहुजन समाज पार्टी को और तिरछा फायदा समाजवादी पार्टी और अन्‍य छोटे दलों व निर्दलीयों को मिलेगा इसमें कोई शक नहीं ।

आज के गणितीय खेल के मुतल्लिक (यानि आज के रूझान के अनुसार) म.प्र में अबकी बार त्रिफट सरकार यानि छितरी हुयी सरकार बनने के आसार नजर आ रहे हैं । यानि अब कांग्रेस और भाजपा के बीच विधायकों के संख्‍या बल का अंतर काफी कम होगा वहीं अब यह सुनिश्चित है कि सरकार अब चाहे कांग्रेस बनाये या भाजपा उन्‍हें अब किसी और के समर्थन की दरकार अवश्‍य रहेगी । बगैर अन्‍य के समर्थन के अबकी बार प्रदेश में किसी को सरकार बना पाना भारी टेढ़ी खीर हो जायेगा ।

तीसरे नंबर पर अबकी बार बहुजन समाज पार्टी और फिर समाजवादी पार्टी के उभरने के आसार है जिसके क्रम में अन्‍य छोटे दल भी शामिल होंगें ।

छोटे दलों या क्षेत्रीय दलों व निर्दलीयों को पटाना अबकी बार कांग्रेस भाजपा दोंनों के लिये ही जरूरी दिखता जान पड़ रहा है ।

हालांकि म.प्र. की प्रमुख राजनीतिक ताकतों भाजपा और कांग्रेस में काफी फेरबदल हुये हैं लेकिन इनके बागी प्रत्‍याशी किसी प्रभावशाली स्थिति में हों यह नहीं कहा जा सकता हॉं इतना जरूर होगा वे इन पार्टीयों के प्रत्‍याशीयों को हरवा जरूर देंगें । और इसका फायदा अन्‍य किसी और को मिलेगा ।

बहुजन समाज पार्टी के प्रत्‍याशी अच्‍छे, लोकप्रिय, ईमानदार या बेदाग हों ऐसा नहीं हैं, कलंक के कई छीटें उनके दामन को भी सराबोर किये हैं । समाजवादी पार्टी ने भी कोई निर्विवाद या निर्दोष प्रत्‍याशी दे दिये हों ऐसा भी नहीं हैं, वे भी पाक दामन और निष्‍कलंक नहीं हैं ।

कुल मिला कर पूरा चुनाव फिर एक बारगी उन्‍हीं सब बाहुबलीयों और धनबलीयों के बीच सिमट गया है जो फिर एक बार सौदेबाजी की और भ्रष्‍टाचार में लिप्‍त त्रिफट सरकार की आशंका को बलवती बनाते हैं ।

भाजपा और कांग्रेस की यह मजबूरी थी कि मुरैना और भिण्‍ड जिला में यदि अपवाद स्‍वरूप एक दो सीटों को छोड़ दें तो कोई भी दमदार प्रत्‍याशी उनके पास था ही नहीं ।

भाजपा को मुरैना विधानसभा पर तमाम शिकवा शिकायतों के बावजूद रूस्‍तम सिंह को लड़ाना मजबूरी थी और उतना वजनदार और अहमियतदार प्रत्‍याशी उसके पास कोई दूसरा नहीं था वहीं कांग्रेस के पास भी लगभग ऐसे ही हालात थे सोवरन सिंह मावई को रिपीट करना उसकी मजबूरी में शामिल था हॉं लेकिन शायद मावई के स्‍थान पर हरस्‍वरूप माहेश्‍वरी होते तो मुरैना विधानसभा पर होने जा रहा त्रिकोणीय संघर्ष सीधे संघर्ष में बदल जाता । और सीधा मुकाबला बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस के बीच होता । लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में यह सारा मुकाबला अब एकदम साफ त्रिकोणीय हो गया है । जहॉं बहुजन समाज पार्टी प्रत्‍याशी परशुराम मुद्गल प्रचार में सबसे आगे निकल गये हैं वहीं लोकप्रियता बटोरने के लिये भी अबकी बार जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं, अब ये वक्‍त बतायेगा कि उनकी मेहनत क्‍या रंग लायेगी । हालांकि अबकी बार जहॉं उनका जाटव समाज का वोट बैंक (यह वोट बैंक पूरी चम्‍बल में अबकी बार बहुजन समाज पार्टी के विरूद्ध जाकर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के खाते में जा रहा है ) इस बार उनके साथ नहीं होगा, लेकिन अन्‍य समाज के कितने वोट वे कबाड़ पायेंगें यही गणित परशुराम मुद्गल का मुकद्दर तय करेगा ।

मुरैना विधानसभा पर प्रचार में यद्यपि अन्‍य पार्टीयों के लोग और निर्दलीय भी जुटे हैं लेकिन कांग्रेस प्रचार में काफी पीछे पिछड़ गयी है ।

विशेष नोट- (हम क्षमा चाहते हैं कि मुरैना में चल रही भारी बिजली कटौती के चलते इस आलेख का यह भाग- यह किश्‍त हम पूरी नहीं लिख और प्रकाशित कर पा रहे, किंचिंत भी विद्युत व्‍यवस्‍था अवरोध ठीक होते ही हम इस किश्‍त को पूरी प्रकाशित करेंगें । कृपया स्‍मरण रखें यह आलेख कई दिनों के भीतर विश्‍लेषणात्‍मक रूप से लिखा गया है और इस अधूरी किश्‍त में पूरी तथ्‍य व आंकड़े एवं विश्‍लेषण सम्मिलित नहीं हैं कृपया पूरी किश्‍त वाचन उपरान्‍त ही किसी भी प्रकार से इस भाग-7 के विश्‍लेषण को पूर्ण मानें । इस प्रकार इस किश्‍त आलेख को भाग-7-1 के रूप में पढ़ें व इसके शेष भाग को भाग-7-2 या 7-3 जैसी भी स्थिति हो पढ़ें विनम्रता पूर्वक क्षमायाचना सहित धन्‍यवाद, नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द'' )               

क्रमश: जारी अगले अंक में .....

 

कोई टिप्पणी नहीं: