मंगलवार, 27 अक्टूबर 2009

विधान सभा चुनाव परिणाम, ऐसा पहली बार हुआ है .........

विधान सभा चुनाव परिणाम,   ऐसा पहली बार हुआ है .........

निर्मल रानी, 163011, महावीर नगर,  अम्बाला शहर,हरियाणा, फोन -0171-2535628

email: nirmalrani@gmail.com

 

       महाराष्ट्र् ,हरियाणा तथा अरूणाचल प्रदेश विधान सभा के चुनाव परिणाम आ चुके हैं्। अरूणाचल प्रदेश में कांग्रेस  पार्टी 60 सदस्यों की विधान सभा में 40 सीटें जीतकर दो तिहाई बहुमत प्राप्त कर चुकी है,वहीं महाराष्ट्र में कांग्रेस पार्टी पहली बार लगातार सत्ता की तीसरी पारी खेलने जा रही है। यहां भी कांग्रेस व राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी गठंबंधन को स्पष्ट बहुमत प्राप्त हो गया है। उधर हरियाणा में भले ही अत्यधिक आत्मविश्वास में डूबी कांग्रेस को बहुमत का आंकडा न प्राप्त हुआ हो परन्तु 40सीटें जीतकर राज्य की सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उसने अपनी सबसे मंजबूत उपस्थिति एक बार फिर से दजर् कराई है। ंखबर है कि स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में विजयी हुए 7 विधायकों का समर्थन भी कांग्रेस को प्राप्त होने जा रहा है।

       हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री तथा इनेलो नेता ओम प्रकाश चौटाला तो कांग्रेस पार्टी का सूपड़ा साफ करने की रट लगाए हुएथे। परन्तु उसके बावजूद कांग्रेस पार्टी ही सबसे बड़े दल के रूप में उभर कर सामने आई। हां कांग्रेस पार्टी का सूपड़ा âæफ करने की रट लगाने से चौटाला को अपनी पार्टी इनेलो के पक्ष में ंजबरदस्त सकारात्मक परिणाम अवश्य देखने को मिले। इसमें कोई संदेह नहीं कि देश में इस समय मंहगाई विशेष कर दैनिक उपयोगी वस्तुओं की कीमत में आया भारी उछाल पहले कभी देखने को नहीं मिला था। बावजूद इसके कि इस मंहगाई के विषय में केंद्र सरकार द्वारा बार-बार यह बताया जा रहा है कि वर्तमान मंहगाई की समस्या केवल भारतवर्ष की ही नहीं बल्कि यह एक अंतर्राष्ट्रीय समस्या है। पूरी दुनिया इस मंहगाई की चपेट में है। परन्तु उसके बावजूद हरियाणा में  कांग्रेस के विरोधी दलों ने विशेषकर इनेलो ने अपने प्रचार माध्यमों के द्वारा मंहगाईका ऐसा रोना रोया कि आखिरकार इस विलाप ने मृतप्राय होती जा रही इनेलो को गत् विधान सभा में प्राप्त की गई 9 सीटों के स्थान पर नवनिर्वाचित विधानसभा में 32 के आंकडे तक पहुंचा दिया। यहां यह सोचना काफी है कि यदि मंहगाई इतनी अधिक न होती तथा उसका विलाप इस ंकद्र कांग्रेस विरोधियों द्वारा न किया गया होता तो 40 सीटें जीतने वाली कांग्रेस पार्टी दस-पंद्रह सीटों पर और अपनी विजय पताका लहरा सकती थी।

              बहरहाल चौटाला तो कांग्रेस पार्टी का सूपड़ा âæफ नहीं कर सके। परंतु अपना सूपड़ा अवश्य बचा ले गए तथा एक मंजबूत व शानदार विपक्ष के रूप में हरियाणा विधानसभा में अपनीं जबरदस्त  उपस्थिति दर्ज करा दी। परंतु ऐसा भी नहीं है कि हरियाणा विधानसभा चुनाव में किसी का सूपड़ा ही âæफ नहीं हुआ हो। राज्य में सत्ता के सपने देखने वाली बहूजन समाज पार्टी,भारतीय जनता पार्टी तथा हरियाणा जनहित कांग्रेस को उनकी उम्मीदों से कहीं कम सीटें प्राप्त हुईं। बहुजन समाज पार्टी  प्रत्याशी के रूप में जगाधरी से चुनाव जीते अकरम ंखान बसपा के एकमात्र विजयी प्रत्याशी हैं। अकरम खान पुराने कांग्रेसी परिवार से सम्बद्ध होने के अलावा पहले भी कई बार दूसरे क्षेत्रों से विधायक व मंत्री रह चुके हैं। उनकी जीत भी पार्टी की जीत कम उन के अपने व्यक्तित्व व जनाधार की जीत अधिक है। अत:देखना यह है कि अकरम खान बसपा में बने रहते हैं अथवा किसी भी समय बसपा की तन्हाई छोड़कर वे भी घर वापसी की राह पकड़ सकते हैं। अत: राज्य में बसपा का तो सूपड़ा âæफ ही समझना चाहिए ।

             भारतीय जनता पाटी भी  राज्य में कभी अपना मुख्यमंत्री  बनाने तो कभी सत्ता में किंग मेकर की Öêमिका अदा करने के सपने  Áæए बैठी थी। परंतु मात्र 4 सीटें जीत कर भाजपा को अपनी

हैसियत का बखूबी अंदांजा हो गया। इन चार सीटों में एक सीट जहां पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कृष्ण पाल गुर्जर ने जीती है वहीं अंबाला छावनी की सीट पर अनिल विज विजयी हुए है जिनका अंबाला छावनी में स्वयं का अच्छा जनाधार है तथा वे निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में भी दो बार विधायक रह चुके हैं। उधर नवगठित हरियाणा जनहित कांग्रेस के सिर पर से भी इस बात का भूत पूरी तरह उतर गया होगा कि राज्य में कांग्रेस पार्टी चौधरी भजन लाल के दम पर ही चला करती थी। हजकां ने प्रदेश में मात्र 6 सीटें जीती हैं। जिनमें जहां एक सीट स्वयं हजकां प्रमुख कुलदीप बिश्ोई ने जीती है वहीं वे अपनी माताश्री जस्मां देवी तक को जीत नहीं दिलवा सके। लिहांजा इनका भी सूपड़ा साफ ही समझा जाना चाहिए। अब अपनी राजनैतिक हैसियत को आंकने के बाद कुलदीप बिश्ोइ अपने व अपनी राजनैतिक पार्टी के विषय में  क्या फैसला लेते हैं इस पर भी हरियाणा की राजनीति पर नंजर रखने वालों की निगाहें टिकी हुई हैं।

              उधर महाराष्ट्र में भी कई राजनैतिक घटना क्रम इस ताजातरीन विधान सभा चुनाव के मध्य ऐसे देखने को मिले जिनके बारे में सर्वत्र यही कहा जा रहा है कि- ऐसा पहली बार हुआ है। राज्य में इस बार पहली बार शिवसेना को सबसे कम सीटों अर्थात ्44 के अंक पर ही संतोष करना पड़ा है। सत्ता पर अपना दावा ठोकने वाली शिवसेना पहली बार इतनी कम संख्या तक पहुंची है। उधर कांग्रेस पार्टी लगातार तीसरी बार सत्ता पर अपना ंकब्ंजा जमाने जा रही है। ऐसा भी पहली बार होने जा रहा है। वहीं महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी की भी बुरी तरह हवा निकल गई है। भाजपा-शिवसेना गठबंधनको महाराष्ट्र की जनता ने ंखारिज कर साम्प्रदायिकता की विचारधारा रखने वाले दलों को पूरी तरह नंजर अंदांज कर दिया है। बजाए इसके महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना नामक नए राजनैतिक दल ने राज्य में पहली बार 13 सीटें जीतकर न केवल महाराष्ट्र विधानसभा में अपनी मंजबूत उपस्थिति दर्र्ज कराई है बल्कि शिवसेना के अरमानों पर पानी Ȥेरने का बखूबी काम किया है। वहीं अरूणाचल प्रदेश में लगातार दूसरी बार दो तिहाई बहुमत से विधान सभा चुनाव जीतकर कांग्रेस पार्टी ने अन्य सभी विपक्षी दलों का पूरी तरह से सफ़ाया कर दिया है।

              प्रश् यह है कि इन तीनों राज्यों के ताज़ातरीन चुनाव परिणाम हमें क्या संदेश दे रहे हैं। इन विधान सभा चुनावों में विपक्ष के पास कांग्रेस के विरूद्ध ले दे कर एक ही सशक्त मुददा था और वह था केवल मंहगाई का मुददा। तीनों राज्यों में न कहीं भ्रष्टाचार मुददा बना न तो अराजकता या आतंकवाद। मुददा बनी तो  केवल और केवल मंहगाई और वह भी कमरतोड़ मंहगाई। ऐसी मंहगाई जोकि क्या पक्ष क्या विपक्ष क्या कांग्रेसी तो क्या ंगैर कांग्रेसी सभी को अर्थात् आम नागरिकों को झेलनी पड़ रही है। निश्चित रूप से मंहगाई के इस दानव को प्रचारित व जीवंत करने के लिए विपक्षी दलों ने सैकड़ों करोड़ रुपये इस मुददे के प्र्रचार व विज्ञापन में लगा दिए। इन सब के  बावजूद कांग्रेस को हरियाणा में 27 सीटें कम होने जैसा बड़ा झटका ंजरूर लगा परंतु विपक्ष उसे सत्ताा से दूर फिर भी नहीं ले जा सका। इसका अर्थ क्या निकाला जाना चाहिए। दरअसल जनता जहां एक ओर मंहगाई को लेकर कांग्रेस पार्टी से कुछ हद तक नारांज  थी वहीं यही जनता यह भी बंखूबी समझती रही कि मंहगाई का ढोल पीटने वालों का मंकसद केवल सत्ता पर कब्ंजा जमाना है। मंहगाई दूर करना तो इनके वश की भी बात हरगिंज नहीं है। हां यह चुनाव परिणाम यह सवाल ंजरूर छोड़ गए हैं कि यदि इतनी अधिक मंहगाई न बढ़ी होती तो विपक्ष के पास जनता के पास जाने के लिए क्या मुददा रह जाता  और ऐसे में फिर वास्तव में यह देखने वाली बात होती कि किस का सूपड़ा बचा और किस का साफ हुआ। फिलहाल तो वर्तमान चुनाव नतीजे कई राजनैतिक घटनाक्रमों को लेकर यही प्रदर्शित कर रहें हैं,गोया-ऐसा पहली बार हुआ है।

                                                                         निर्मल रानी

 

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