आयुर्वेद के प्रति उदासीनता और उपेक्षा को दूर करें - श्री प्रभात झा , आयुर्वेद की समय सिद्व उपचार विधियों पर दो दिवसीय कार्यशाला प्रारंभ
ग्वालियर, 26 अक्टूबर 09/ चिकित्सक प्राकृति का प्रसाद हैं । वह अपने विशिष्ठ ज्ञान से रोग ग्रस्त प्राणी को निरोग बनाकर उसका दुख हरण करते हैं। चिकित्सक एलौपैथी, होम्योपैथी, आयुर्वेद अथवा किसी भी पद्वति का क्यों न हो उसमें रोगी के प्रति सिमपैथी अर्थात सहानुभूति की महती आवश्यकता है । उक्त आश्य के विचार राज्यसभा सांसद श्री प्रभात झा ने आज यहाँ आयुर्वेदिक चिकित्सा विधियों पर केन्द्रित राज्य स्तरीय दो दिवसीय कार्यशाला में व्यक्त किये । संभागायुक्त डा. कोमल सिंह तथा गजराराजा चिकित्सा महाविद्यालय की अधिष्ठाता डा. शैला सप्रे इस अवसर पर विशिष्ठ अतिथि के रूप में उपस्थित थे । कार्यशाला में प्रदेश की सभी चिकित्सा शिक्षण संस्थाओं के प्राचार्य , मुख्य चिकित्सा अधिकारी , जिला आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी तथा यूनानी पद्वति के चिकित्सक शामिल थे ।
अपने उद्धाटन सम्बोधन में आयुर्वेद के प्रति उदासीनता और उपेक्षा के प्रति गहरी चिन्ता व्यक्त करते हुए सांसद श्री प्रभात झा ने कहा कि आजादी के बाद से ही देश में शिक्षा और चिकित्सा की भारी अनदेखी हुई है । जिससे गरीब और अमीर की शिक्षा और उपचार में अहितकारी भिन्नता विद्यमान है । दरअसल देश में सभी की शिक्षा एक सी होनी चाहिये तथा उपचार भी । किन्तु दोनों पर ही ध्यान नहीं दिया गया । स्वास्थ्य के लिये क्रेन्द्रीय बजट में मात्र 2.2 प्रतिशत का ही प्रावधान रखा गया है जो सही नहीं है ।
आयुर्वेद को रोगों को समूल रूप से नष्ट करने वाली विद्या निरूपित करते हुए श्री झा ने चिकित्सकों से पूरी इच्छा शक्ति के साथ इसका लाभ जन जन तक पहुँचाने की अपील की। कार्यशाला को इस दिशा में महत्वपूर्ण पहल बताते हुए उन्होंने कार्यशाला की सफलता की भी कामना की ।
कार्यशाला के विशिष्ठ अतिथि डा. कोमल सिंह ने अपने उद्बोधन में और आयुर्वेद के अध्यात्मक से गहन रिश्तों को उजागर करते हुए भारतीय ऋषि मुनियों के योगदान का स्मरण कराया । उन्होंने कहा कि आयुर्वेद निरोग रहने की जीवन पद्वति का आधार है । अत: चिकित्सक उपचार के साथ प्राणी मात्र के रोगों से बचाव का भी मार्ग प्रशस्त करें । उन्होंने समाज में आयुर्वेद के प्रति जागरूकता लाने तथा आयुर्वेदिक औषधियों की उपलब्धता को सुगम बनाने पर बल दिया । साथ ही उन्होंने रोगों का डायगनोस तथा फालो अप में आधुनिक तकनीक व संसाधनों का उपयोग करने एवं परम्परागत प्राचीन आयुर्वेदिक विधियों के साथ साथ रोगी को त्वरित आराम पहुँचाने की दिशा में भी शोध करने की सलाह दी । डा. कोमल सिंह ने कार्यक्रम के आयोजकों को साधुवाद देते हुए जिला स्तर पर सम्मेलन आयोजित करने पर भरपूर प्रशासनिक सहयोग का भी आश्वासन दिया ।
कार्यशाला की विशिष्ठ अतिथि गजराजा चिकित्सा महाविद्यालय की डीन डा. शैला सप्रे ने गहरी चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा कि पाश्चात्य के प्रभाव में हमारी प्राचीन चिकित्सा पद्वति विलोपित होती जा रही है जिसे बचाने के लिये सामूहिक प्रयास जरूरी है । उन्होंने आगे कहा कि सरकार के साथ-साथ इस दिशा में सामुदायिक हिस्सेदारी भी अर्जित करनी होगी । उन्होंने सभी चिकित्सकों से रोगी को अपने परिवार का सदस्य मानकर उपचार करने की भी अपील की । कार्यक्रम के प्रारम्भ में अतिथियों ने भगवान धनवन्तरी के चित्र के समक्ष दीप प्रज्जवलित किये । कार्यशाला के सह संयोजक शासकीय आयुर्वेद चिकित्सा महाविद्यालय के प्राचार्य डा. एस.एल.शर्मा ने स्वागत भाषण तथा कार्यशाला के संयोजक केन्द्रीय आयुर्वेद अनुसंधान संस्थान के सहायक निदेशक डा. जी. बाबू ने आभार प्रदर्शन किया ।
आयुष विभाग भारत सरकार एवं मध्य प्रदेश शासन के संयुक्त प्रयास से आयोजित 26 एवं 27 अक्टूबर दो दिवसीय इस कार्यशाला में चार वैज्ञानिक सत्र एवं एक खुला सत्र होगा । आजका प्रथम वैज्ञानिक सत्र क्षार सूत्र पद्वति पर तथा दूसरा सत्र जिरियाट्रिक्स एवं क्रोनिक रोगों पर केन्द्रित रहा । प्रथम सत्र में गुदा रोगों, क्षार सूत्र प्रणाली तथा गुदा रोगों के निदान हेतु आधुनिक सर्जरी विधियों पर विशेषज्ञ चिकित्सकों ने व्याख्यान दिये । दूसरे सत्र में जिरियाट्रिक्स, रसायन चिकित्सा, पंचकर्म, मुधमेह उपचार तथा क्रोनिक रोगों के उपचार पर सिलसिलेवार व्याख्यान हुए ।
कार्यशाला के दूसरे दिन कल 27 अक्टूबर को तीसरे वैज्ञानिक सत्र में रक्ताल्पता तथा मातृ एवं शिशु रोग निदान, चौथे सत्र में जिला स्तर पर जरा चिकित्सा केन्द्रों की स्थापना व पांचवा तथा अन्तिम सत्र खुली चर्चा वाला सत्र होगा । खुले सत्र में अध्यक्ष की अनुमति से विषय सम्बन्धी विविध जिज्ञासाओं का भी समाधान होगा । कार्यशाला का समापन कला प्रदेशके स्वास्थ्य मन्त्री श्री अनूप मिश्रा के मार्गदर्शी उद्बोधन से होगा ।
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