रविवार, 26 अक्टूबर 2008

सरोद की खोज ग्वालियर घराना ने की, सरोद फारसी वाद्य रबाब पर आधारित

सरोद की खोज ग्वालियर घराना ने की, सरोद फारसी वाद्य रबाब पर आधारित

ग्वालियर 25 अक्टूबर 08। सरोद वाद्य की खोज ग्वालियर घराने के संस्थापक उस्ताद हाफिज अली खान द्वारा की गयी। श्री खान के वंशज अफगानिस्तान से भारत आये थे। उन्होंने फारसी वाद्य 'रबाब' की तर्ज पर एक नये वाद्ययन्त्र सरोद की खोज की तथा भारतीय संगीत परम्परा में नया अध्याय और नया घराना शुरू किया। उन्होंने उत्तर भारत के प्रमुख राजाओं के दरबारों में संगीत गीत समारोह आयोजित करवाये तथा भारतीय रागों को नया सुर और नया आयाम व नई दिशा दी। सरोद का शाब्दिक अर्थ फारसी में गीत होता है।

       उन्हें सबसे ज्यादा महत्व सिन्धिया राजवंश द्वारा किया गया। उनके वंशज भोपाल, दिल्ली और लखनऊ में भी रहते हैं। उनकी याद मे ग्वालियर में एक स्मारक 1995 में स्थापित किया गया। जिसका नाम 'सरोद घर' है। इस स्मारक का उद्धाटन 3 जनवरी 1995 को तत्कालीन केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री श्री अर्जुन सिंह और मुख्यमंत्री श्री दिग्विजय सिंह द्वारा किया गया।

       इस घराने के ख्याति में उनके वंशज के मो. हाशमी खान, गुलाम बन्दगीखान बंगस, अमजद अली खान ने देश-विदेश में विस्तारित की। इसके अलावा उस्ताद मुराद अली खान उस्ताद असगर अली खान, उस्ताद फिदा हुसैन, उस्ताद नन्हे खान इस घराने के ख्याति प्राप्त संगीतकार हुये, जिन्होंने ग्वालियर घराने का नाम देश-विदेश में रोशन किया। इस घराने की अब सातवीं पीढ़ी इस घराने का नाम रोशन कर रही है तथा संगीत, गीत और सरोद वादन में उल्लेखनीय योगदान दिया जा रहा है।

       उस्ताद हाफिज अली खान के वंशज अमजद अली खान ग्वालियर घराने का नाम दिल्ली में रोशन कर रहे हैं। इन्ही के वंशज मुबारक अली खान और रहमत अलीखान भोपाल में सरोद वाद्य संगीत कला के विकास का काम कर रहे हैं तथा शिक्षण कार्य व आकाशवाणी से जुड़े हुये हैं। उन्होंने खयाल और ठुमरी गायकी को सरोद पर प्रयुक्त किया है। उस्ताद अमजद अली ने भी सरोद वाद्य परम्परा को जीवित रखा है।

       इस वंश के कलाकारों ने रूस, इंग्लैण्ड और भारत में हैदरावाद, नागपुर, दिल्ली, कलकत्ता, चेन्नई और मुम्बई में कई बार राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगीत समारोहों में शिरकत कर ग्वालियर संगीत घराने का नाम रोशन किया है।

 

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