गुरुवार, 9 अक्तूबर 2008

स्वामी विवेकानंद के आदर्श आज के युग प्रासंगिक हैं -राज्यपाल डा0 जाखड़

स्वामी विवेकानंद के आदर्श आज के युग प्रासंगिक हैं -राज्यपाल डा0 जाखड़

चुनौतियों का सामना एक जुटता से ही संभव--पूर्व न्यायाधिपति श्री लाहौटी

रामकृष्ण आश्रम में ''रोशनी'' भवन का उद्धाटन

ग्वालियर, 4 अक्टूबर 08 / राज्यपाल डा.बलराम जाखड़ ने कहा है कि स्वामी विवेकानन्द के सिध्दांत  आज के युग में प्रासंगिक है । इसलिये स्वामी जी के सिद्वांतों पर चलने की आवश्यकता है । उन्होंने कहा कि सभी मानव,मानव बनें । क्यों कि सभी ईश्वर के बनाये हुये प्राणी हैं । डा.जाखड़ आज यहाँ रामकृष्ण आश्रम में स्वर्ण जयंती वर्ष के उपलक्ष में आयोजित समारोह में संबोधित कर रहे थे । उन्होंने मानसिक रूप से विकलांग एवं स्नायविक असमर्थताओं से प्रभावग्रस्त बच्चों एवं वयस्कों के प्रशिक्षण भवन ''रोशनी'' का उद्धाटन भी किया । समारोह की अध्यक्षता सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधिपति श्री आर.सी.लाहोटी ने की । इस अवसर पर स्वामी स्वरूपानंद जी, स्वामी आत्मानंद जी, पूर्व महापौर श्री माधव शंकर इंदापुरकर, कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डा. व्ही एस तोमर, आश्रम के सन्यासी, पत्रकार, अधिकारी, शिक्षक-शिक्षिकाए, विद्यालय के बच्चे तथा नगर के गणमान्य नागरिक भी उपस्थित थे ।

       राज्यपाल डा. जाखड़ ने कहा कि अपने लिये तो सभी लोग जीते हैं , लेकिन कुछ लोग दूसरे के लिये जीते हैं, ऐसे लोगों का जीवन सही मायने में सार्थक होता है । उन्होंने कहा कि वेद एवं शास्त्र    साथ-साथ चलने एवं सभी की भलाई करने की शिक्षा देते हैं । घृणा, बेईमानी, अनाचार के लिये प्रजातंत्र नहीं है बल्कि यह मानव सेवा के लिये है । स्वामी विवेकानंद जी के सिध्दातों पर चलकर ही भेदभाव की भावना को मिटाया जा  सकता है । उन्होंने कहा कि धर्म किसी पर ज्यादती नहीं करता है, इसलिये धर्म के नाम पर अनाचार नहीं करें । डा. जाखड़ ने कहा कि कोई एक भाषा किसी दूसरी भाषा से कम नहीं हैं । इसलिये भाषायी नहीं, भारतीय बनें । आपस में प्रेम रखें और गरीबों का सहयोग करें । उन्होंने कहा कि सद्गुणों को ग्रहण नहीं कर पाते हैं तो सुनने नहीं जायें । इस अवसर पर उन्होंने रामकृष्ण आश्रम के लिये एक लाख रूपये देने की घोषणा की ।

       पूर्व मुख्य न्यायाधिपति श्री लाहोटी ने कहा कि वर्तमान में देश अनेक चुनोतियों से जूझ रहा है , ये बाह्य एवं आंतरिक दोनो प्रकार की हैं, लेकिन आंतरिक चुनौती बाह्य चुनौती से गंभीर है। इनका सामना हम एकजुटता से ही कर सकते हैं । पूर्व राष्ट्रपति डा. ए पी जे अब्दुल कलाम के शब्दों की व्याख्या करते हुये श्री लाहोटी ने कहा कि भारत देश 2020 तक प्रगति की पराकाष्ठा पर होना चाहिये । भारत को विश्व में गुरू का स्थान दिलाने के लिये संस्कृत , संस्कृति और संस्कार होना चाहिये । इससे हमने स्वयं को समृध्द तो किया है लेकिन पाश्चात्य विकार भी आये हैं । उन्होंने कहा कि भारतीय भाषाओं के भंडार को समृध्द करना चाहिये । बुध्द, उपनिषद, गीता एवं रामायण को भूल जायेंगें तो भारत, भारत नहीं रहेगा । श्री लाहौटी ने कहा कि जीवनमूल्यों में गिरावट के बावजूद हम चल रहे हैं गिरे नहीं है । संस्कार हमारी सस्कृति की देन है । विश्व को देने के लये हमारे पास प्रचुर मात्रा में सांस्कृतिक विरासत है । उन्होंने कहा कि विश्व मान रहा है कि तीन दशकों में भारत शीर्षस्थ शक्तियों में से एक होगा । विश्व भारत की ओर आशा भरी नजरों से देख रहा है ।

       स्वामी स्वरूपानंद जी ने स्वागत भाषण देते हुये कहा कि संस्था 50 वर्ष से जाति, भाषा एवं पंथ से ऊपर उठकर अध्यात्म तथा लोक कल्याणकारी कार्य कर रही है । यहां शिक्षा, चिकित्सा, व्यायाम, योग , नारी निकेतन , गौशाला , बालग्राम एवं कृषि के कार्य संचालित हो रहे हैं । स्वामी आत्मानंद जी ने प्रगति प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुये कहा कि संस्था की प्रगति में जनसहयोग की अहम भूमिका है । यहां विभिन्न कल्याणकारी गतिविधियां चलाई जा रही हैं ।प्रारंभ में स्वामी स्वरूपानंद जी ने राज्यपाल का परिचय सन्यासियों से कराया तथा सन्यासियों द्वारा शांति पाठ किया गया । राज्यपाल द्वारा संस्था की स्मारिका का विमाचेन किया गया । संस्था की ओर से अतिथियों को स्मृति चिंह भेंट किये गये।

 

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