गुरुवार, 9 अक्तूबर 2008

स्कूली शिक्षा में निजी जनभागीदारी पर चर्चा

स्कूली शिक्षा में निजी जनभागीदारी पर चर्चा

सुधारों के लिए विशेषज्ञों का समर्थन राज्य सरकार गुणवत्ता के लिए तत्पर

भोपाल : 6 अक्टूबर, 08। स्कूली शिक्षा में निजी जनभागीदारी (पब्लिक प्रायव्हेट पार्टनरशिप) लाने के मद्देनज़र राज्य सरकार ने अपनी एक विशेष पहल करके आज इस क्षेत्र के विशेषज्ञों के साथ चर्चा का सिलसिला शुरू कर दिया। विश्व बैंक और डीआईडी इंग्लैंड के प्रतिनिधियों समेत देश के विषय विशेषज्ञों ने मौजूदा संदर्भों में सुधारों को लेकर इस रीति को अपनाए जाने का समर्थन किया है। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि राज्य सरकार शिक्षा में गुणवत्ता लाने के लिए तत्पर है, ऐसे में आने वाले कल की बेहतरी स्पष्टत: रेखांकित हो गई है। भोपाल में चल रहे दो दिनी सम्मेलन में  आज प्रारंभिक सत्र में यही सच्चाई उभरी।

विश्व बैंक के शीर्ष शिक्षा विशेषज्ञ डॉ. सेम कार्लसन ने शिक्षा सेवा के क्षेत्र में गुणवत्ता प्रदान करने के लिए पॉयलट मॉडल की पैरवी की। भारतीय संदर्भ में उनके अध्ययन को लेकर उन्होंने यह तर्क भी दिया कि बोर्ड की परीक्षाओं में बगैर सहायता वाले निजी स्कूलों ने बेहतर भूमिका का प्रदर्शन किया है। उन्होंने यह भी कहा कि इन स्कूलों की इकाई लागत अवश्य कम है लेकिन अकादमिक नतीजों में उन्होंने बराबरी दिखाई है। डॉ. सेम ने लागत की नज़र से भी पब्लिक प्रायव्हेट पार्टनरशिप के जरिए महत्वपूर्ण अवसर उपलब्ध होने की वकालत की। उनका मानना था कि संतोषप्रद गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए भी यह रीति उपयोगी होगी।

डॉ. सेम की दलील यह भी थी कि शिक्षकों के पढ़ाई कराने के तरीके में सुधार के बगैर गुणवत्ता लाना बेमानी है और इस काम को अंजाम तक पहुंचाने में निजी, जनभागीदारी में असीम संभावनाएं हैं। उन्होंने अपनी दलील के समर्थन में अमेरिका, लेटिन अमेरिका, इंग्लैंड, न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया आदि अन्य देशों में इस रीति के विभिन्न प्रयोगों और नतीजों का खुलासा भी किया। डॉ. सेम ने कहा कि इसके लिए प्रदेश को विशेष रणनीति अपनानी होगी और गुणवत्ता सुधार के विभिन्न मॉडलों पर काम करना होगा।

अंतर्राष्ट्रीय विकास विभाग (डीआईडी) इंग्लैंड के शिक्षा विशेषज्ञ डॉ. माईकल वार्ड ने इंग्लैंड में पब्लिक प्रायव्हेट पार्टनरशिप के विभिन्न रूपों के माध्यमिक शिक्षा में हुए प्रयोगों का इस मौके पर खुलासा किया। उन्होंने कहा कि पढ़ाई के स्तर और वर्तमान स्थितियों में इसके समाज पर प्रभाव को लेकर इस रीति के अनुभव फायदेमंद साबित हुए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि विश्व बैंक और डीआईडी ने इस सिलसिले में वित्तीय मदद जुटाने में भी वहां तत्परता दिखाई और सेकण्डरी एज्यूकेशन में पब्लिक प्रायव्हेट पार्टनरशिप के उत्साहपूर्ण नतीजे सामने आए हैं। डॉ. सेम और डॉ. वार्ड दोनों ने ही मध्यप्रदेश के लिये इस प्रयोग को जरूरी बताते हुए कहा कि सर्वशिक्षा अभियान में यहां हुए अच्छे काम ने इसकी सफलता का रास्ता खोल दिया है।

राज्य शिक्षा केन्द्र के आयुक्त श्री मनोज झालानी ने इस वैचारिक विमर्श की महत्ता बताते हुए कहा कि प्रदेश मौजूदा संदर्भ और परिस्थितियों के मद्देनजर स्कूली शिक्षा की बेहतरी का ख्वाहिशमंद है। उन्होंने अपनी दलील में कहा कि यहां इसकी पुख्ता बुनियाद तैयार करने के लिये प्रारंभिक शिक्षा के क्षेत्र में हाल ही के वर्षों में बहुत सारे काम अंजाम दिये जा चुके हैं। लड़के और लड़कियों के बीच का फासला लगभग पाटा जा चुका है तथा अनुसूचित जाति और जनजाति के बच्चों का स्कूलों में तेजी से इजाफा हुआ है। राज्य सरकार यह चाहती है कि प्रारंभिक और माध्यमिक शिक्षा में गुणवत्ता लाकर बच्चों में अवधारणात्मक समझ और विश्लेषणात्मक दक्षता बढ़ाई जाये। इससे समाज मौजूदा और भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिये सक्षम हो सकेगा। उद्देश्य को प्रदेश के दूर-दराज के अंचल तक सुधार लाने पर केन्द्रित किया गया है। इसी परिप्रेक्ष्य में निजी जनभागीदारी के जरिये और संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि हालांकि प्रदेश में इस रीति पर काम करने के व्यापक संसाधन हैं लेकिन इसे अपनाए जाने का नजरिया व्यापारिक बिल्कुल नहीं रहेगा।

पब्लिक प्रायव्हेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मध्यप्रदेश प्रकोष्ठ की संचालक श्रीमती पल्लवी जैन ने कहा कि प्रदेश इस रीति पर एक विस्तृत और सुविचारित प्रक्रिया में काम के लिए आगे बढ़ रहा है। इसके मद्देनज़र विश्वव्यापी प्रयोगों और अनुभवों की टोह ली जा रही है।

सम्मेलन के शुभारंभ सत्र में प्रमुख सचिव स्कूली शिक्षा श्री एम.एम. उपाध्याय, आयुक्त लोक शिक्षण श्री बी.आर. नायडू और केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय की पूर्व सचिव डॉ. कुमुद बंसल के साथ ही केन्द्र और अन्य राज्यों के अधिकारी, स्वैच्छिक संगठनों के प्रतिनिधि भी मौजूद थे।

 

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